मूल रूप से मथुरा वाले मगर हाल में इन्दौर निवासी श्री रवि खण्डेलवाल जी उन चुनिन्दा रचनाधर्मियों में शामिल हैं जिन्होंने पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए अपने शौक़ को भले ही संदूकी में बंद कर दिया मगर अपने अन्दर के क्रिएटिव आदमी को मरने नहीं दिया.
समय
आने पर जैसे पहाड़ों के बीच एकत्रित पानी जगह पाते ही निर्झरों का रूप धारण कर के
चतुर्दिक प्रवाहित होने लगता है वैसे ही रवि खण्डेलवाल जी ने भी अवसर पाते ही एक
के बाद एक लगातार अपनी अनेक संग्रहित रचनाओं को विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से जनता
जनार्दन की अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर दिया बल्कि अभी भी कुछ पुस्तकें प्रकाशन के
लिए क़तार में हैं. पिछले दिनों इनके रिसेंटली पब्लिश्ड ग़ज़ल संग्रह “तज कर चुप्पी हल्ला बोल” को पढने का मौक़ा मिला. रवि जी मूलतः दुष्यन्त कुमार की धारा के कवि /
शायर हैं. इनके यहाँ भी भावनाओं को प्रधानता दी जाती है. अवाम के कष्टों का वर्णन
करने में इनकी लेखनी सदैव मुखर रहती है. इनके विवेच्य ग़ज़ल संग्रह से कुछ अशआर
साहित्यम् के पाठकों के लिए यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं.
वे खा रहे हैं एकता की क़समें
बारहा
हाथों में जिनके अपने अपने
इश्तेहार हैं
आख़िरी मौक़ा मिला है
आसमाँ सर पर उठा लो
काँच का मन्दिर बना है
और पत्थर पूजना है
आइए ख़ुशियाँ मनाएं
आँख ने आँसू जना है
पश्चिमी तालीम के पेशे-नज़र
अब
घर का मुखिया, घर का कोना हो गया है
रात की गोद में जागरण क्या
किया
दिन हमारे बहुत चिड़चिड़े हो
गये
आप चीखेंगे तो चीखेगा ज़माना
साथ में
चीख गूँजेगी तो सन्नाटा नहीं
रह जायेगा
आम लोगों के लिए यह सोचने की
बात है
हुक्मुरानों के क़दम मुस्तैद
कैसे हो गये
सुर में गायेगा इकदिन
जैसा भी है, गाने दे
छींके तलक न हाथ जो पहुँचा
तो ये किया
मक्खन गिरा लिया वहीँ मटकी
को फोड़ कर
बेख़ुदी में कहोगे, जी लेंगे
होश में अब जिया नहीं जाता
आँधियाँ ख़ुद ब ख़ुद ही आती
हैं
आँधियों तक दिया नहीं जाता
तुम जिसे दुर्गन्ध का पर्याय
कहते हो
हो रहे पैदा नगीने उस पसीने
से
जिसे कहते हैं काला धन बनाने
में लगे हैं ये
जजों की नाक के नीचे कमाने
में लगे हैं ये
कौन जाने क्या हुआ कैसे हुआ
सब राज़ है
दो अचानक दौड़ते वाहन कहीं
टकरा गये
क्या कहें हम शायरी पर आपकी
आपका हर शब्द ख़ंजर सा लगे
हकीक़त को समझो हकीक़त को जानो
हकीक़त के पीछे छुपी है सचाई
ग़ज़ल संग्रह का नाम – तज कर
चुप्पी हल्ला बोल
शायर – रवि खण्डेलवाल, फोन
नम्बर 7697900225
प्रकाशक – श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली, फोन नम्बर 8447540078

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