इक दिन तुम पर गीत लिखूंगा
तुमको मन का मीत
लिखूंगा
सांसें बंसी
की पुरवाई
तन में मुरकी की
अंगड़ाई
पग-पग में ज्यों बजे पखावज
स्वर खां साहब की शहनाई
तुमको ढालूँगा सुर लय
में
शब्दों में
संगीत लिखूंगा
सपनों का संसार
तुम्हारा
चिंतन में विस्तार तुम्हारा
सीना मेरा, दिल
भी मेरा
धड़कन पर अधिकार तुम्हारा
तुममें अपना जीवन जी कर
प्रेम की अद्भुत रीत लिखूंगा
लड़ना और झगड़ना कैसा
मिलना और बिछड़ना कैसा
जीवन की इस शेष डगर पर
अब संशय में पड़ना कैसा
संग तुम्हारे जीवन पथ पर
हार लिखूंगा जीत लिखूंगा
तुम मेरे शब्दों
का जीवन
तुम ही गीतों का उत्सर्जन
तुमसे ही प्रेरित हो
सुभगे
खुलते भावों
के वातायन
तुम हो यदि सम्मुख तो सुमुखी
कुछ तो कालातीत लिखूंगा
प्रेम का
पारावार नहीं है
तुमसा कोई
यार नहीं है
जितना तुम करती
हो मुझसे
संभव इतना
प्यार नहीं है
कुछ भी
नाम तुम्हें दे
दुनिया
मैं तुमको बस
'प्रीत' लिखूंगा

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