सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
औरतें अपनी उम्र नहीं बतातीं पर आ. ऋता जी ने इतना तो बता ही दिया है कि मैं उनसे थोड़ा सा छोटा हूँ यानि वे मेरी 'दीदी सा' हैं - बस इतना काफ़ी है यार:)!
अंतर्जालीय संसार में एक दूसरे से कभी न मिले हम सभी लोग एक-दूसरे के कितने क़रीब आ जाते हैं, फिर दूर भी हो जाते हैं और फिर से कुम्भ के मेले में खोये भाई-बहनों की तरह से मिल भी जाते हैं - है न मज़े की बात - तो ये मान लिया जाये कि वर्च्युअल संसार मुकम्मल होने लगा है !!!!!!!!!!!!!
संभवत: हरिगीतिका छंद वाले समस्या-पूर्ति आयोजन के दौरान ऋता जी से कम्यूनिकेशन शुरू हुआ था। तब से इन का छंदों के प्रति लगाव देख कर मैं हतप्रभ हूँ। सदैव कुछ करने को तत्पर और हाँ एक बात और कह दूँ कि इन्हें लगता है कि ये वक्रोक्ति वाला दोहा नहीं कह सकतीं - पर इन के ईमेल वार्तालाप पर ग़ौर करूँ तो ये वक्रोक्ति का श्रेष्ठ दोहा लिख सकती हैं। इन के साथ काम करना सुखद अनुभव रहा है, अब तक। ये अपनी तरफ़ से सभी सम्भव प्रयास करती हैं और बेहतर परिणामों के लिये समर्पित भी रहती हैं। हेट्स ऑफ टू हर। आइये अब पढ़ते हैं वर्तमान आयोजन की ग्यारहवीं यानि समापन पोस्ट में मंच की 40 वीं पार्टिसिपेंट यानि ऋता शेखर मधु [दीदी] के दोहे
अंतर्जालीय संसार में एक दूसरे से कभी न मिले हम सभी लोग एक-दूसरे के कितने क़रीब आ जाते हैं, फिर दूर भी हो जाते हैं और फिर से कुम्भ के मेले में खोये भाई-बहनों की तरह से मिल भी जाते हैं - है न मज़े की बात - तो ये मान लिया जाये कि वर्च्युअल संसार मुकम्मल होने लगा है !!!!!!!!!!!!!
संभवत: हरिगीतिका छंद वाले समस्या-पूर्ति आयोजन के दौरान ऋता जी से कम्यूनिकेशन शुरू हुआ था। तब से इन का छंदों के प्रति लगाव देख कर मैं हतप्रभ हूँ। सदैव कुछ करने को तत्पर और हाँ एक बात और कह दूँ कि इन्हें लगता है कि ये वक्रोक्ति वाला दोहा नहीं कह सकतीं - पर इन के ईमेल वार्तालाप पर ग़ौर करूँ तो ये वक्रोक्ति का श्रेष्ठ दोहा लिख सकती हैं। इन के साथ काम करना सुखद अनुभव रहा है, अब तक। ये अपनी तरफ़ से सभी सम्भव प्रयास करती हैं और बेहतर परिणामों के लिये समर्पित भी रहती हैं। हेट्स ऑफ टू हर। आइये अब पढ़ते हैं वर्तमान आयोजन की ग्यारहवीं यानि समापन पोस्ट में मंच की 40 वीं पार्टिसिपेंट यानि ऋता शेखर मधु [दीदी] के दोहे
धिया, जँवाई ले गये, वह, उन की सौगात
उम्मीद
बूढ़ी आँखें है विकल, कब आएगा लाल
रात कटे उम्मीद में, अब पूछेगा हाल
सौन्दर्य
"गर्भवती मुख-रूप" का, कैसे करूँ बखान
रविकर जैसा तेज, पर, शीतल चंद्र समान
आश्चर्य
अजब अजूबों से भरा, ब्रह्मा का संसार
कोमल जिह्वा क्रोध में, उगल पड़े अंगार
विरोधाभास
गूँज उठे कुछ शब्द यूँ, भजो राम का नाम
संतन की टोली चली, या अरथी हरि-धाम
सीख
तरु फल-फूलों से लदे, सब को दें यह ज्ञान
जिन में भरी विनम्रता, वही लोग विद्वान
कॉर्पोरेट वर्ल्ड हो या लिटरेचर महिलाएं ग़ज़ब कर रही हैं। "धिया जँवाई ले गये", "गर्भवती मुख रूप" - अद्भुत अभिव्यक्ति, वाह। काश हम दौनों के पास पर्याप्त समय होता तो ये पोस्ट कुछ अलग होती। इस आयोजन ने हमें सात नए साथी दिये हैं जिन से आने वाले आयोजनों में और भी उम्मीदें की जा सकती हैं। बाकी तारीफ़ [और कमियाँ भी :)] आप लोगों के हवाले।
ये मैं नहीं कह रहा बल्कि मुझ तक संदेशे पहुँचे हैं कि आप सभी के सहयोग से समस्या-पूर्ति मंच के दूसरे चक्र के पहले आयोजन ने ब्लॉग जगत का ध्यानाकर्षण किया है। हमारी टीम की हर एक इकाई इस उपलब्धि की स्वामिनी है। साहित्यानुरागियों का सहयोग मिलता रहा तो हम भविष्य में और भी ऐसे आयोजन करेंगे पर उस से पहले दिवाली के दोहे वाली दिवाली स्पेशल पोस्ट यानि दिवाली पर्व के बाद वर्तमान आयोजन पर एक अलग पोस्ट के माध्यम से हम सभी आपस में विचार विमर्श भी करेंगे। विचार-विमर्श सदैव लाभकारी रहता है।
आप सभी के सहयोग के लिए पुन: पुन: कोटि-कोटि आभार, आप का स्नेह बना रहे .................... नमन
ये मैं नहीं कह रहा बल्कि मुझ तक संदेशे पहुँचे हैं कि आप सभी के सहयोग से समस्या-पूर्ति मंच के दूसरे चक्र के पहले आयोजन ने ब्लॉग जगत का ध्यानाकर्षण किया है। हमारी टीम की हर एक इकाई इस उपलब्धि की स्वामिनी है। साहित्यानुरागियों का सहयोग मिलता रहा तो हम भविष्य में और भी ऐसे आयोजन करेंगे पर उस से पहले दिवाली के दोहे वाली दिवाली स्पेशल पोस्ट यानि दिवाली पर्व के बाद वर्तमान आयोजन पर एक अलग पोस्ट के माध्यम से हम सभी आपस में विचार विमर्श भी करेंगे। विचार-विमर्श सदैव लाभकारी रहता है।
आप सभी के सहयोग के लिए पुन: पुन: कोटि-कोटि आभार, आप का स्नेह बना रहे .................... नमन
दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए दोहे भेजने की तारीख़ दो दिन आगे बढ़ा दी गई है
बतौर रिवाज़ दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए रिमाइन्डर:-
- संभवत: अपने घर की भाषा / बोली में दोहे रचें
- दिवाली विषय केंद्र में होना चाहिये, यानि दिवाली शब्द भले ही दोहे में न आये, परंतु दोहा पढ़ कर प्रतीत होना चाहिये कि बात दिवाली की हो रही है - भाव - कथ्य आप की रुचि अनुसार
- प्रत्येक रचनाधर्मी कम से कम एक [1] और अधिक से अधिक तीन [3] दोहे प्रस्तुत करें, मंच की अपेक्षा है कि आप अपने तमाम दोहों में से छांट कर उत्तम दोहे ही भेजें
- दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर अपनी डिटेल, फोटो, भाषा / बोली / प्रांत का उल्लेख करते हुये 7 नवंबर तक भेजने की कृपा करें
- यदि आप को हमारा भाषा / बोलियों के सम्मान में किया जा रहा यह दूसरा प्रयास उचित लगे, तो हमारा निवेदन योग्य व्यक्तियों तक पहुंचाने की कृपा करें
!जय माँ शारदे!
"गर्भवती मुख-रूप" का, कैसे करूँ बखान
जवाब देंहटाएंरविकर जैसा तेज, पर, शीतल चंद्र समान
अद्भुत्त है। अच्छा लगा। शुभकामनाएँ।
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जवाब देंहटाएंऋता शेखर मधु जी की क़लम के कमाल का कायल मैं भी हूं
:)
बहुत सुंदर दोहे लिखे हैं …
हार्दिक बधाई !
दीवाली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
.
जवाब देंहटाएंवर्तमान आयोजन की ग्यारहवीं यानी समापन पोस्ट !
…अर्थात दोहा छंद की शृंखला का समापन ?
नवीन जी !
ध्यान ही नहीं रहा , समय जल्दी बीत गया …
ॠता शेखर मधु जी को बहुत-बहुत बधाई ! बहुत ही सुन्दर दोहे रचे हैं उन्होंने ! हर दोहे की जितनी भी दाद दूँ कम ही होगी ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंगजब के दोहे हैं भाई। सौंदर्य का दोहा कालजयी दोहा है। बाकी के दोहे भी बहुत अच्छे हैं। बहुत बहुत बधाई ऋता जी को।
जवाब देंहटाएं----सभी दोहे सुन्दर, सटीक व एक विशिष्ट भाव-विषय व कथ्य-सौंदर्य युक्त हैं --बधाई
जवाब देंहटाएंधिया, जँवाई ले गये, वह, उन की सौगात|
बेटे, बहुओं के हुये, चुप देखें पित(=पितु)-मात |
---यद्यपि सही तथ्य है, परन्तु स्त्रियों के बारे में पुरातन मान्यताओं कि कन्या 'पराया-धन' होती है को पोषित करती जान पडती है...
ऋता जी को सुंदर दोहों के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंऋता जी को पढ़ना सचमुच मधुपान करने जैसा है...यथा नाम तथा गुण..
जवाब देंहटाएंउनको हर विधा में महारत हासिल है..
बहुत सुन्दर दोहे...
बधाई!!!
आभार
अनु
आपके दोहे मुझे बहुत अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंकथ्य और भावों की नवीनता से युक्त दोहे बरबस ध्यानाकर्षित करते हैं।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
ऋता जी के दोहे पढ़ कर मन झूम उटा.
जवाब देंहटाएंबधाई !
आ० जनविजय जी,आ० राजेन्द्र सर,आ० धर्मेन्द्र जी, आ साधना जी,आ० श्यामगुप्त जी, आ० संगीता दी, प्यारी अनु, आ० महेन्द्र सर, आ० प्रतिभा जी...उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभारी हूँ !!!
जवाब देंहटाएं@आ० श्यामगुप्त सर
पित के स्थान पर पितु ज्यादा सही है, इस बात से सहमत हूँ|
अब आते हैं मान्यताओं की बात पर...मेरे ख्याल से कुछ मान्यताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं|
सीता जी विवाह करके राम जी के घर गई थीं|आज भी सीताएँ विवाहोपरांत अपने राम के घर ही जाती हैं|मण्डप पर एक रस्म होता है 'कन्या दान'का|इस रस्म को दिल पर पत्थर रखकर पिता को निभाना होता है...आज भी|आजकल की self dependent लड़कियाँ और उनकी पढ़ी लिखी माँएँ इस बात को दिल से स्वीकार नहीं कर पातीं कि लड़की को एक वस्तु की तरह दान किया जाए...फिर भी कहीं कुछ बंधन तो है कि चाह कर भी कोई इसका विरोध नहीं कर पाता|बेटी को दामाद की सौगात ही मानना पड़ेगा...दुख तब होता है जब बेटे जिसे अपना माना जाता है वे पराए हो जाते हैं( शायद बेटों की भी मजबूरी रहती होगी...घर में शांति स्थापित करने के लिए:))
सादर
@ नवीन सी चतुर्वेदी जी
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आभार दोहो को यहाँ पर स्थान देने के लिए
द्वितीय आभार 'दीदी सा'सम्बोधन से सुशोभित करने के लिए
तृतीय बात...मैं आपको याद दिला दूँ कि सबसे पहले हमारा कम्युनिकेशन हाइगा बनाने के दौरान हुआ था और उस वक्त आपने पाँच बार फोटो को रिजेक्ट किया था जैसे अभी छंदों को वापस कर देते हैं कुछ और अच्छा लिखने के लिए...और लिखते लिखते सच में कुछ और अच्छा सामने आ ही जाता है...इस आयोजन में सभी की उत्कृष्ट रचनाएँ सामने आई हैं|
आप इस तरह के सार्थक आयोजन करते रहें...शुभकामनाएँ और शूभाशीष(दीदी कहा है तो आशीर्वाद भी देना ही पड़ेगा:))
निस्संदेह 'पितु-मातु' ही सही शब्द-समूह है
जवाब देंहटाएंपरंतु जब हम ऊपर की पंक्ति के 'सौगात' के साथ नीचे की पंक्ति के 'मातु' को 'मात' कर रहे होते हैं तो ऐसे में 'पितु-मातु' का समास 'पित-मात' स्वरूप में न सिर्फ़ अधिक खाँटी देशज लगता है बल्कि अर्थ में व्यवधान भी उत्पन्न नहीं करता
उचित बिन्दुओं पर लाभकारी चर्चाएँ ही उत्कृष्ट - वंदनीय तथा अनुकरणीय प्रतीत होती हैं
नवीन जी --- वैसे दोनों ही समूह शब्द सही लगते हैं ---क्योंकि पिता के लिए पित शब्द का कहीं प्रयोग नहीं होता ...पितु प्रयोग होता है| अकेले माता के लिए मातु शब्द का प्रायः प्रयोग कम होता अपितु मात शब्द अधिक प्रयोग होता है |
जवाब देंहटाएं---- धन्यवाद ऋता जी ...आपने बहुत सटीक विश्लेषण किया है शत प्रतिशत सहमत ...पर यह बात नारी मन व बचन से सुनना अधिक सटीक, सत्य, तार्किक व अच्छा लगता है ...आभार ..
ॠता शेखर जी के दोहे सुन्दर और सराहनीय है
जवाब देंहटाएंकमल
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर दोहों की प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
आदरणीया ऋता शेखर जी हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसभी दोहे लाजवाब हैं
उम्दा भाव प्रदर्शित हो रहे हैं
ठेस-टीस
जवाब देंहटाएंधिया, जँवाई ले गये, वह, उन की सौगात
बेटे, बहुओं के हुये, चुप देखें पित-मात
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सास यही कल थी बहू,यही पिता था पूत
बोये पेड़ बबूल के , चाह रहे शहतूत |
उम्मीद
जवाब देंहटाएंबूढ़ी आँखें है विकल, कब आएगा लाल
रात कटे उम्मीद में, अब पूछेगा हाल
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मरने भी देती नहीं ,उम्मीदों की डोर
रातें ढाढस बाँधती , धीर बँधाते भोर |
सौन्दर्य
जवाब देंहटाएं"गर्भवती मुख-रूप" का, कैसे करूँ बखान
रविकर जैसा तेज, पर, शीतल चंद्र समान
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"गर्भवती मुख-रूप" की, सुंदरतम तस्वीर
संग-संग खिलते दिखें,मुखपर अरुण सुमीर|
आश्चर्य
जवाब देंहटाएंअजब अजूबों से भरा, ब्रह्मा का संसार
कोमल जिह्वा क्रोध में, उगल पड़े अंगार
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लपट नहीं दिखती कभी,और न उठता धूम्र
सुनने वाला आग में , जलता सारी उम्र |
आ० कमल सर,राजेश दी, सत्यनायायण जी, उमाशंकर जी...उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार|
जवाब देंहटाएं@ आ० अरुण सर
प्रतिक्रियास्वरूप रचे गए सारे दोहे लाजवाब !!!!
ठेस/टीस वाला सच्चाई का दर्पण...बोया पेड़ बबूल का:)
बहुत बहुत आभार!!
ऋता भीतर क्षमताओं और संभावनाओं के असंख्य दीपक प्रज्ज्वलित हैं .... आपका आरम्भ भी प्रशंसनीय है . दोहे बहुत कुछ कह जाते हैं और कह भी गए हैं
जवाब देंहटाएंऋता दी आपका जबाब नहीं, हर दोहे सटीक…..
जवाब देंहटाएंक्षणिका, दोहे, हाइकु जैसे रचनाओं के विधाओं मे आपका जबाब नहीं
बूढ़ी आँखें है विकल, कब आएगा लाल
रात कटे उम्मीद में, अब पूछेगा हाल:)))