कहते उसी को घर


बच्चे - बड़े - बूढ़े   जहाँ  पर,  प्यार  से  बातें  करें|
अपनत्व के तरु* से अहर्निश*, फूल खुशियों के झरें|
मृदुहास मय परिहास एवम आपसी विश्वास हो|
कहते उसी को 'घर', जहाँ, सुख - शांति का आभास हो||

*
तरु - पेड़, वृक्ष 
अहर्निश - रात-दिन, हमेशा  
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मात्रिक छन्द - हरिगीतिका

  • १६+१२=२८मात्रा
  • प्रत्येक चरण में १६ मात्रा के बाद यति / ध्वनी विराम [बोलते हुए रुकना]
  • चार चरण वाला छंद 
  • पहले-दूसरे तथा तीसरे-चौथे चरणों का तुकांत समान होना चाहिए 
  • चारों चरणों का तुकांत भी समान हो सकता है 
  • हर चरण के अंत में लघु-गुरु [१२] अनिवार्य


[छंद संदर्भ - श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं]
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उपरोक्त हरिगीतिका छन्द की मात्रा गणना:-

पहला चरण:-
बच्चे-बड़े-बूढ़े जहाँ पर,
२२    १२  २२  १२  ११ = १६ मात्रा तथा यति
प्यार से बातें करें|
२१  २  २२   १२  = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

दूसरा चरण:-
अपनत्व के तरु से अहर्निश, 
११२१   २   ११  २   १२११ = १६ मात्रा तथा यतिफूल खुशियों के झरें|२१   ११२     २  १२ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

तीसरा चरण:-
मृदुहास मय परिहास एवम
११२१   ११   ११२१   २११ = १६ मात्रा तथा यति
आपसी विश्वास हो|
२१२    २२१     २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

चौथा चरण:-
कहते उसी को घर जहाँ, सुख-
११२   १२   २   ११  १२  ११ = १६ मात्रा तथा यति
शांति का आभास हो||
२१   २     २२१   २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु

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14 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर संदेश युक्त, छंद शिक्षा!!

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  2. बिल्कुल सही व्याख्या की है घर की।

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  3. काव्य शास्त्र का विज्ञान आपके चरणों में बैठ कर सीखना होगा... बहुत सुन्दर...

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  4. "कहते उसी को 'घर' जहाँ सुख-शांति का आभास हो"

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  5. कविताओं की मात्रा तो नहीं समझा पर अर्थ में आनन्द की मात्रा कहीं अधिक थी।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. हर गीतिका को स्पष्ट करती पंक्तियाँ |
    आशा

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