हो पूरब की या पश्चिमी रौशनी
अँधेरों से लड़ती रही रौशनी
क़तारों से क़तरे उलझते रहे
ज़मानों को मिलती रही रौशनी
इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी
किसी नूर की छूट है हर चमक
ज़मीं पर भला कब उगी रौशनी
अँधेरों पे दुनिया का दिल आ गया
फ़ना हो गई बावली रौशनी
सितारों पे जा कर करोगे भी क्या
जो हासिल नहीं पास की रौशनी
उजालों में भी सूझता कुछ नहीं
तू रुख़सत हुआ, छिन गई रौशनी
गमकती-चमकती रही राह भर
परी थी वो या संदली रौशनी
वो घर, घर नहीं; वो तो है कहकशाँ
जहाँ तन धरे लाड़ली रौशनी
ये चर्चा बहुत चाँद-तारों में है
मुनव्वर को किस से मिली रौशनी
बहुत जा रहे हो वहाँ आजकल
तो क्या तुम पे भी मर मिटी रौशनी
नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122
122 122 12
इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल करें, नवीनभाईजी.
जवाब देंहटाएंइन दो शेरों पर विशेष बधाई स्वीकारें -
उजालों में भी सूझता कुछ नहीं
तू रुख़सत हुआ, छिन गई रौशनी
बहुत जा रहे हो वहाँ आजकल
तो क्या तुम पे भी मर मिटी रौशनी
सादर
बेहद भावपूर्ण रचना ....आभार !
जवाब देंहटाएंआज 17- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ..नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप.
बहुत जा रहे हो वहाँ आजकल
जवाब देंहटाएंतो क्या तुम पे भी मर मिटी रौशनी,,,
खूबशूरत शेर,,,बधाई स्वीकारे,,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
बहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
जवाब देंहटाएंइसे भी अवश्य देखें!
चर्चामंच पर एक पोस्ट का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढमति और न जाने क्या क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से नवाज़ा आदरणीय ग़ाफ़िल जी को हम उस आलेख का लिंक तथा उन तथाकथित हिन्दूवादियों की टिप्पणयों यहां पोस्ट कर रहे हैं आप सभी से अपेक्षा है कि उस लिंक को भी पढ़ें जिस पर इन्होंने विवाद पैदा किया और इनकी प्रतिक्रियायें भी पढ़ें फिर अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें कि कौन क्या है? सादर -रविकर
राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
बहुत सुन्दर रचना है नवीन जी |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत गहरी और भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
:-)
आ. नवीन जी,
जवाब देंहटाएंरौशनी हम पर मर मिटी या नहीं इसे राम जाने मगर हम रसिकों का दिल इस गजल पर जरुर मर मिटने को चाह रहा है.
धन्यवाद,
सुन्दर ग़ज़ल है नवीन जी बधाई ...
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