रमेश शर्मा
करता जाता आदमी, ऐसे
भी कुछ काम !
ज़हर खिलाता बेझिझक, तरकारी के नाम !!
इंजेक्शन से सब्जियां, पकती आज तमाम !
सरे आम बाजार में, बिकती ऊँचे दाम !!
पड़े नहीं जब खेत में,.. गोबर वाला खाद !
कैसे दें फिर सब्जियां, वही पुराना स्वाद !!
जहर हो रही सब्जियाँ, ..जनता है लाचार !
तंत्र निकम्मा हो गया,पनपा छल व्यापार !!
ऐसी हालत देख कर, शासन
भी है मौन !
रही लेखनी चुप अगर, तो पूछेगा कौन !!
आँगन में तुलसी खड़ी,गलियारे में नीम !
मेरे घर में हीं रहें ,... दो दो वैद्य हकीम !!
क्या धनमंतर वैद्य हो, क्या लुकमान हकीम।
दोनों सिर-माथे चढ़ी,...... रही हमेशा नीम॥
रसा-बसा है नीम में,...... औषधि का भंडार ।
मानव पर इसने किए, कोटि-कोटि उपकार !!
लगा नीम का वृक्ष है, जिसके घर के पास।
जहरीले कीडे वहां,..... करते नहीं निवास॥
दंत-सफ़ाई के लिए, मिले
मुफ़्त दातून।
पैसों का होता नहीं,. जिसमें कोई खून॥
कडुवी है तो क्या हुआ, गुण तो इसके नेक।
नीम छाँव में बैठे के,.. जाग्रत करो विवेक॥
देशभक्ति पर पड़ रही, राजनीति की
गाज !
नारे हिन्दुस्तान के, ......अर्थ
नए पर आज !!
सीधी सच्ची सोच हो,सहज सरल हों
भाव !
जल्दी से फटके नही,..निश्चित
वहां तनाव !!
मिला विरासत मे मुझे,....केवल
आशीर्वाद !
मैने उसको रख लिया,उनका समझ
प्रसाद!!
मिले देखने आजकल ,खबरें कई
अजीब !
भूल गये इस दौर में, शायद हम
तहजीब !!
जुडे मीडिया से सदा,राजनीति के
तार!
वही दिखाता है हमे,.जो चाहे
सरकार !!
करें उसी से दोस्ती, ....रखें
उसे ही पास !
जो गलती का आपको, करवाता
आभास!!
ऐसों को रखना नहीं, तुम अपना
हमराज !
जो गलती को आपकी, करें नजर
अंदाज !!
बढी गरीबी देश मे,....दो का
दूना चार!
कारण इसका मूल है,बढता
भ्रस्टाचार !!
इक दूजे पर कर रहे,सभी सियासी
वार !
लोकतंत्र का अर्थ है,जनता का
उपकार !!
सेवा करने को चले,..बनकर
सेवादार !
राजनीति का कर रहे,वो देखो
व्यापार !!
जिनके ऊपर देश को,,कभी बहुत था
नाज़ !
देशद्रोह का कर रहे,....वही
समर्थन आज !!
वादा इसके साथ कर, थामा उसका
हाथ !
कैसे होगा पार यूं , जीवन का यह
पाथ !
वादों की दहलीज पर,रखना कदम
सम्हाल !
यहाँ गिरा इक बार जो, उठा नही बहु
साल !!
खुश्बू है ये प्रेम की, ....या
समझूँ उपहार !
गुच्छे के हर फूल में, लिखा हुआ है
प्यार !!
किसे कहें ये चोर है, कहें किसे
हम नेक!
अपनी अपनी रोटियाँ,सभी रहे जब
सेक !!
मंदिर सी खुश्बू मिले,मृदल गंध की
टेर!
जब बासन्ती धूप मे,खिलता फूल
कनेर!!
दिया अंगूठा द्रोण को, ....एकलव्य
ने काट !
रहे न ऐसे शिष्य अब, जिनका ह्रदय
विराट!!
हुआ सुदामा सा कभी,,कब किसका सत्कार!
कान्हा जैसा दूसरा,.....हुआ नही
फिर यार!
हमने मिलकर कर दिया, हरियाली का
अंत !
धीरे धीरे रो रहा ,........ देखो
आज बसंत !!
इत देखूं किरदार या, उत देखूं
परिवार !
दोनों ही ज़िंदा रहें, ....मेरे मन
के द्वार !!
चाहे जितना कीजिए, इसका आप
इलाज !
लौटे नहीं जुबान से,निकलें जो
अलफ़ाज़ !!
हुआ नहाना ओस में, तेरा जब जब
रात !
कोहरे में लिपटी मिली, तब तब सर्द
प्रभात !!
चाहे धन्ना सेठ हो,...........चाहे
रहे गरीब !
हुआ सभी को एक सा,यारों कफन
नसीब !!
सच को यदि सच के लिये, देनी पडे
दलील!
तो होगा सन्सार में, ....निश्चय
सत्य जलील!|
पत्रकार करता सदा ,...विज्ञापन
का काम !!
जनहित की पहचान है,साहित्यिक
संग्राम !!
उडो भले आकाश मे,..बन कर के
इक बाज!
मगर न करना भूमि को, कभी नजर
अंदाज !!
विधि -विरुद्ध अभिमान से, किया हुआ हर
काम !
कर देगा निश्चित तुम्हे, ....... एक
रोज बदनाम !!
दहशतगर्दों का कभी,..हुआ नहीं
ईमान !
कैसे समझे हम इन्हें, मानव की
संतान !!
सच्चाई की पीठ पर,जो भी हुआ
सवार!
पडा झेलना कष्ट का,उनको सदा
प्रहार !!
उपजें नहीं खयाल में,.. वहाँ
विषैले बीज !
संस्कार की ली पहन,जिसने जहाँ
कमीज !!
गलती का जो आपकी,रखे हमेशा
ध्यान!
वही हितैषी आपका,सत्य समझ
इंसान!!
कथित सुखनवर-मीडिया,अध्यापक ये
तीन !
ये तीनों इस दौर मे, .....दिखें
स्वार्थ मे लीन!!
पाखंडी समझे नही, ना ही करे
विचार !
चढे न हांडी काठ की,चूल्हे पर दो
बार!!
दिल के जैसा आज तक, नजर न आया
खेत !
कुछ भी बो कर देख लो, मिलता सूद
समेत !!
दोहे
रमेश शर्मा
9820525940
waah
जवाब देंहटाएं