तीन दिए, तेरह गिने, लिखे तिरासी नाम - डा. विष्णु विराट

पानी में पानी नहीं , नहीं अन्न में अन्न
मन्न मन्न जोरौ तऊ, देह न लागौ कन्न १

मोहि न भावै लीक कछु, मोहि नहीं आधार
मैं मेरी मंजिल भयौ, मैं मेरौ निरधार २

स्यार लोमड़ी जुरि गए, गीदड़ मारें डींग
कवि 'विराट' ऊगन लगे , खरगोसन कै सींग ३

तीन दिए, तेरह गिने, लिखे तिरासी नाम
बड़े जोर सौं ह्वै रहे, राहत काम तमाम ४

भौजी कें लल्ला भयौ, नौमों, नंदकिशोर
भैया कालू राम के, टूटन लागे जोर ५

राम चरन कौ भानजौ, लायौ चीज़ चुराय
अम्मा आँखन में रिसै, आँचर लेय दुराय ६

रम्मा कौ छोरा भयौ, ऐसौ बी. ए. पास
दाँत भींच कै खेत की, दिनभर काटै घास ७

करै दुबइ में नौकरी, दुलहन बड़ी उदास
गोनौ करि कें भजि गए, लाला लछमन दास ८

फिर मेघा बरसन लगे, नद-नारे गहरान
बाढ़ पहारन पै चढ़ी, हलकन लागे प्रान ९

सास बहू कौं संग लै, गई ठकुर के द्वार
किरपा, मालिक नें करी, करि कें बंद किबार १०

रामबहोरी नें कियौ, ऐसौ कन्यादान
छोरी बारह बर्स की , साठ बरस कौ ज्वान ११

हरित-हँसी में दुरि रही, रक्त-रंग सौगात
हम, बँगला की हद्द पे, हैं मेंहदी के पात १२
डा. विष्णु विराट

इन दोहों को उपलब्ध करवाने के लिये शेखर चतुर्वेदी का सहृदय आभार

6 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ को उकेरते सशक्त सटीक धारदार दोहे ! बहुत सुन्दर !

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