आदमी खुद आदमी की टाँग खींचे जा रहा

बात आदम काल की, या बात फिर होवे नई।
वज़्ह है हर बात की,  हर - वज़्ह के मंज़र कई।।

खुद यहाँ  इंसान रुचि अनुसार साँचों में ढले।
किन्तु और परंतु के आधार पर जीवन चले।१।


आदमी खुद चुन रहा हरपल स्वयं की राह है।
किस तरह बोलें भला यह आदमी गुमराह है।।

श्रेष्ठतम-सर्वोच्च निज अस्तित्व को बतला रहा।
आदमी खुद आदमी की टाँग खींचे जा रहा।२।

===========
गीतिका छंद

14+12=26 मात्रा वाला मात्रिक छंद
कुल चार चरण
प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु 
अलिखित रूप से इस छंद की लय 'ला ल ला ला' के अनुरूप चलती है 
यहाँ इस लय वाले 'ला' का अर्थ गुरु अक्षर नहीं 
लय वाले इस 'ला' की जगह 2 मात्रा भार वाला 1 गुरु अक्षर आ सकता है 
या 1-1 मात्रा भार वाले दो लघु अक्षर भी आ सकते हैं
कुछ कवि इस लय को मान्यता न भी दें, 
परंतु इस लय के साथ ही इस छंद की गेयता श्रवणीय लगती है

उदाहरण:-
हे प्रभों आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हम से कीजिये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.