गीत - आवरण मन के सारे हटा दीजिए – डॉ. राखी कटियार

 


आवरण मन के सारे हटा दीजिए

आवरण युक्त मन मिल सकेंगे नहीं

बाग़ सम्वेदना के लगेंगे  मगर

प्यार के फूल तो खिल सकेंगे नहीं

 प्रेम का एक क्षण भी बहुत है प्रिय

जी लिया, जो इसी में मगन हो गया

जिसका अस्तित्व था एक कण की तरह

प्रेम वरदान पाकर गगन हो गया

जिनके चरणों को अंगद-सा आशीष है

लाख चाहे कोई हिल सकेंगे नहीं

आवरण मन के सारे हटा दीजिए -------------

 

प्रीत जिसमें बसे, उसपे दुनिया हँसे

जो सरल बनके कठिनाइयों को डसे

प्रेमी की याद के, स्वच्छ संवाद के

बिखरे भावों को तो प्रेम बंधन कसे

आप पहरे बिठायेंगे आलाप पर

मौन के होठों को सिल सकेंगे नहीं

आवरण मन के सारे हटा दीजिए -------------

 

ये है मीठी चुभन, मत भिगोना नयन

मन को शीतल रखो मत लगाओ अगन

'राखी' भाषा कोई भी समझती न हो

प्रेम की भाषा लेकिन समझता है मन

घाव दो-चार देंगे तुम्हें लोग सब

घाव सारे मगर छिल सकेंगे नहीं

आवरण मन के सारे हटा दीजिए -------------

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर गीत,प्रेम की असीमित पराकाष्ठा, मन की नाजुक छुअन,को बहुत कुशलता से शब्दों में पिरोया है,,, यही तो राखी की वैषिष्ट शैली है,, प्यार भरी बधाइयां

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