ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है - पवन कुमार

ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है

अभी परिन्दे के अन्दर उड़ान बाक़ी है

 

बधाई तुमको कि पहुँचे तो इस बुलन्दी पर

मगर ये ध्यान भी रखना ढलान बाक़ी है

 

मैं अपनी नींद से क़िस्तें चुकाऊँगा कब तक

तुम्हारी याद का कितना लगान बाक़ी है

 

मैं एक मोम का बुत हूँ तू धूप का चेहरा

बचेगी किसकी अना इम्तेहान बाक़ी है

 

मुझे यक़ीन है हो जाऊँगा बरी एक दिन

मेरे बचाव में उसका बयान बाक़ी है

 

ये बात कह न दे सैलाब से कोई जाकर

तमाम शहर में मेरा मकान बाक़ी है

 

पवन कुमार

 

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