ख़ुद भले ही झेली हो त्रासदी पहाड़ों ने - द्विजेन्द्र ‘द्विज’


 ख़ुद भले ही झेली हो त्रासदी पहाड़ों ने ।

बस्तियों को दी लेकिन हर ख़ुशी पहाड़ों ने ॥

 

ख़ुद तो जी अज़ल ही से तिश्नगी पहाड़ों ने ।

सागरों को दी लेकिन हर नदी पहाड़ों ने ॥

 

आदमी को बख़्शी है ज़िंदगी पहाड़ों ने ।

आदमी से पायी है बेबसी पहाड़ों ने ॥

 

मौसमों से टकरा कर हर कदम पै दी यारो ।

जीने के इरादों को पुख़्तगी पहाड़ों ने ॥

 

देख हौसला इनका और शक्ति सहने की ।

टूट कर उचट कर भी उफ़ न की पहाड़ों ने ॥

 

विश स्वयं पिये सारे नीलकण्ठ शैली में ।

पर हवा को बख़्शी है ताज़गी पहाड़ों ने ॥

 

बादलों के आवारा कारवाँ के गर्जन को ।

बारिशों सी बख़्शी है नग़मगी पहाड़ों ने ॥

 

त्याग और तपस्या से योगियों की भाषा में ।

ज़िन्दगी की बदली है वर्तनी पहाड़ों ने ॥

 

सबको देते आये हैं नेमतें अज़ल से ये ।

द्विज को भी सिखायी है शायरी पहाड़ों ने ॥

 

द्विजेन्द्र द्विज

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 26 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ! बहुत ही उम्दा, आदरणीय.

    जवाब देंहटाएं
  3. त्याग और तपस्या से योगियों की भाषा में ।
    ज़िन्दगी की बदली है वर्तनी पहाड़ों ने ॥
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    जवाब देंहटाएं

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