सारा
जीवन दे कर कुछ एक लम्हे माँगे थे
दुनिया तुझ से हम ने कौन ख़ज़ाने माँगे थे
दुनिया तुझ से हम ने कौन ख़ज़ाने माँगे थे
थके-बदन की आह कहाँ सुनती है ये दुनिया
इसीलिये तलुवों ने कुछ अङ्गारे माँगे थे
इसीलिये तलुवों ने कुछ अङ्गारे माँगे थे
एक और गहरी नींद हमारा मरकज़ थी ही नहीं
नींद उचट पाये इस ख़ातिर सपने माँगे थे
नींद उचट पाये इस ख़ातिर सपने माँगे थे
सच तो ये है हम ही थाम सके न पुराने पेड़
आँधी ने तो पेड़ नहीं बस पत्ते माँगे थे
आँधी ने तो पेड़ नहीं बस पत्ते माँगे थे
हैवानो कुछ रह्म करो खुल कर जीने दो हमें
भूल गये क्या क्यूँ चेहरों ने परदे माँगे थे
भूल गये क्या क्यूँ चेहरों ने परदे माँगे थे
ऐसा लगा जैसे गोदी में बैठ गया वो ख़ुद
किसन-कन्हैया से जब हम ने बच्चे माँगे थे
किसन-कन्हैया से जब हम ने बच्चे माँगे थे
रद्दी जैसा ही कुछ-कुछ दे पाया ‘नवीन’ हमें
हमने जब उस से उस के मज़मूये माँगे थे
हमने जब उस से उस के मज़मूये माँगे थे
नवीन सी चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.
विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.