खुशियों
से उस दिलबर का घर रँग देना
गम
से मेरे दीवारोदर
रँग देना
उम्मीदों के सूरज
! ढलने से पहले
देहातों का धूसर मंज़र रँग
देना
साये
का तन काला ही तुम पाओगे
रंग
न लायेगा कुछ पैकर रँग देना
याद
बहुत आये हर होली पर ज़ालिम
तेरा
मुझको पास बुलाकर रँग देना
शीश
झुकाऊं मातृधरा की रज तुझको
आशीषों
से तू मेरा सर रँग देना
एक
परेवा गीत कफ़स में गाता है
‘परवाज़ों
से फिर मेरे पर रँग देना ’
ज्ञान
युगों से काग़ज़ काले करता है
श्रद्धा
चाहे केवल पत्थर रँग देना
रंग
चढ़ा है मुझ पर साजन का श्यामल
व्यर्थ
रहेगा यारों मुझ पर रँग देना
सुन
‘खुरशीद’ बुझाना मत अश्कों से
आग
अगर दिल में हो आखर रँग देना
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