किस तरह कह दें कि माली थक गया है साहिबान - नवीन

किस तरह कह दें कि माली थक गया है साहिबान। 
हमको अन्देशा खिज़ां का हो रहा है साहिबान।।

पेड़-पौधेफूल-पत्तेगुंचा-ओ-बुलबुल उदास। 
ग़मज़दा हैं सब - चमन सबका लुटा है साहिबान।।

फिर न दीवारें उठेंफिर से न टूटे दिल कोई। 
कुछ बरस पहले ही अपना घर बँटा है साहिबान।।

खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा। 
अब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान।।

ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब। 
हमने भी साहित्य का अमृत पिया है साहिबान।। 


:- नवीन सी. चतुर्वेदी


बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन

2122 2122 2122 212

बुलबुलों से तितलियों से जुगनुओं से हो लगाव - नवीन

बुलबुलों से तितलियों से जुगनुओं से हो लगाव
बागवाँ तो वो है जिसको ख़ुश्बुओं से हो लगाव १

जब कोई गुलशन उजड़ता है तो खिल उठते हैं वो
है बहुत मुमकिन कि उनको उल्लुओं से हो लगाव २ 

दे के सब तालीम बेटी से कहा माँ-बाप ने
उस से रहना दूर जिसको घुँघरुओं से हो लगाव ३

हसरतों के आशियाँ को बस उसी की है तलाश
जिसको खुशियों से ज़ियादा आँसुओं से हो लगाव ४

लोग दानिशमंद इशारा भाँप लेते हैं तुरंत
उनसे क्या कहिये जिन्हें पिछलग्गुओं से हो लगाव ५

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212

जब तुम बसंत बन थीं आयीं - आ. संजीव वर्मा 'सलिल'



स्मृति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा, नीरस, सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को - नवीन

सच्ची श्रद्धा व सबूरी की सदारत देखी
मैं जो शिर्डी को गया मैंने ये जन्नत देखी
उस के दर पे जो गया मैंने ये जन्नत देखी

कोई मुज़रिम न सिपाही न वक़ीलों की बहस
ऐसी तो एक ही साहिब की अदालत देखी

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

बीसियों श़क्लों में हर और से मिट्टी की तरह
उस के चरणों से लिपटती हुयी दौलत देखी

मैंने जैसे ही ये सोचा कि फिर आना है यहाँ
उस की नज़रों में भी फिर मिलने की चाहत देखी

बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन

२१२२ ११२२ ११२२ २२

मौसम हुआ कोंपल - कुमार रवीन्द्र

कुमार रवीन्द्र
नए साल में वरिष्ट विद्वतजन का आशीर्वाद मिले,  इस से बड़े सौभाग्य की बात और हो भी क्या सकती है| इस साल की पहली पोस्ट के लिए आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी ने अपना नया नवेला नवगीत भेज कर हमें अनुग्रहीत किया है| आइये पढ़ते हैं उन का नवगीत - नववर्ष के सन्दर्भों तथा आदरणीय की शुभेच्छाओं के साथ:-