क़रीब 10-15 साल पहले संझा जनसत्ता में प्रकाशित
किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फ़रमाया, अंगूर हैं खट्टे
जनता के तारनहार बड़े मासूम, बड़े दरिया दिल हैं
तर जाएँगी सातौं पीढ़ी, लिख डाले हैं इतने पट्टे
मज़हब हो या फिर राजनीति ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल तन से होंगे हट्टे-कट्टे
जनता की ख़ातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही -
जनता के हाथों जनसेवक सब खेल रहे खुल कर सट्टे
किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फ़रमाया, अंगूर हैं खट्टे
जनता के तारनहार बड़े मासूम, बड़े दरिया दिल हैं
तर जाएँगी सातौं पीढ़ी, लिख डाले हैं इतने पट्टे
मज़हब हो या फिर राजनीति ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल तन से होंगे हट्टे-कट्टे
जनता की ख़ातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही -
जनता के हाथों जनसेवक सब खेल रहे खुल कर सट्टे
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