नवगीत - बहुत दिनो के बाद मिली हो कैसी हो कमला - सीमा अग्रवाल

 


बहुत दिनो के बाद मिली हो

कैसी हो कमला?

 क्या बतलाऊँकुछ दिन पहले

झाड़ू-खटका छोड़ चुकी हूँ

सोचा अब आराम करूँगी

ख़ुद को बहुत निचोड़ चुकी हूँ

 

लेकिन इस मुँहजले  भाग ने

ढंग नहीं बदला

 

बेटे की नौकरी लग गयी

बेटी का भी ब्याह हो गया

पहले ही कम कब थाजीवन

थोड़ा और तबाह हो गया

 

अगला क़िस्सा भी वैसा है

जैसा था पहला

 

दारूगाली,मार-पीट से

सुबह शाम घर भर देता है

कसर बाप जो रखता है वो

बेटा पूरी कर देता है

 

पिछला नहला था तो दूजा

नहले पर दहला

 

पात्र महज़ बदले हैंलेकिन

सब कुछ जैसे का तैसा है

पगलीजो तब था वो रोना

अब भी वैसे का वैसा है

 

तेरी रामकथा का क्यों कर

रावण नहीं जला


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