ग़ज़ल - गुज़रने वाले सालों की न आने वाले सालों की - भवेश दिलशाद


 गुज़रने वाले सालों की न आने वाले सालों की

अगर कुछ बात करनी है तो कीजै ख़स्ताहालों की

 है अपना जुर्म देहाती तो क़ानून उनका शहरी है

तमाशा देखिए बनती नहीं बीजों से डालों की

 

हमारा मुल्क सबका था और अब भी गाँव सबके हैं

मगर ये दिल्लियाँ कमबख़्त हैं बस दिल्ली वालों की

 

हमारे ख़्वाब और वादे सभी कुछ झूठ हैं बच्चो

वसीयत तो है नदियों की विरासत है तो नालों की

 

मुसाफ़िर लोग हैं ख़ानाबदोश आयेंगे जायेंगे

अजब भी है ग़ज़ब भी है ये दुनिया पाये वालों की


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