तज़मीनी (मुख़म्मस) ग़ज़ल - के पी अनमोल


फूल अपने हार पर भारी पड़ा

सुर मधुर झंकार पर भारी पड़ा

हाथ ख़ुद पतवार पर भारी पड़ा

"काम ज़िम्मेदार पर भारी पड़ा

यार का ग़म यार पर भारी पड़ा"

 मीलों-मीलों तनहा चल कर आ गया

शक्ल में पानी की ढल कर आ गया

क्या हुआ ये क्यूँ मचल कर आ गया

"आँसू पलकों से निकल कर आ गया

चोर पहरेदार पर भारी पड़ा"

 

हाय नहरें खींच लीं कमबख़्त ने

प्यासी लहरें खींच लीं कमबख़्त ने

कितनी ख़बरें खींच लीं कमबख़्त ने

"सबकी नज़रें खींच लीं कमबख़्त ने

एक तिल रुख़सार पर भारी पड़ा"

 

वक़्त के हाथों में लाखों थे सितम

खेल क़िस्मत ने भी खेले थे न कम

पर मेरे हाथों में भी तो था क़लम

"धुन्ध, तनहाई, उदासी, उसका ग़म

मैं अकेला चार पर भारी पड़ा"

 

चूक कर दी किस तरह दमदार ने

ख़ौफ़ भी खाया नहीं इस वार ने

तोड़ डाला होगा ऐसी हार ने

"साए को आँका था कम दीवार ने

और वही दीवार पर भारी पड़ा"

 

मूल शायर - फ़ानी जोधपुरी

तज़मीनकार -  के. पी. अनमोल


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