घेतला आकार आणिक भंग झाले तक्षणी
शोधती का नेत्र माझे स्वप्न ते जागेपणी
बांधुनी तुजला शरीरी बांधला
तुज दावणी
काय जंगी थाट मांडुन खेळण्या
मी बैसलो
अन् क्षणाचा खेळ सारा
मृत्तिकेची खेळणी
जे सुगंधी पुष्प शोधुनी
जाहलो वेडा पिसा
झाड त्याचे मज गवसले आज
माझ्या अंगणी
पेरिले जे ते उगवते न्याय
मातीचा असा
पेरणी केलीस मग हो सज्ज
करण्या कापणी
या जगाला ऊब द्याया लाकडे तो
शोधतो
जी जळोनी भस्म झाली लागली
सत्कारणी
चित्र तो रेखाटतो हातात
घेऊनी मला
काल होतो कुंचला मी आज आहे लेखणी

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