अवधी गजल - बदला बहुत जबाना ,अबहीं कहब त कहब्या - राजमुर्ति सौरभ

 


बदला बहुत जबाना, अबहीं कहब त कहब्या

केउ का न कुछ ठेकाना, अबहीं कहब त कहब्या

 

एतनी उमिर क बाटीं अब्बउ ठसक उहइ बा

बूढ़ा चलइँ उताना,अबहीं कहब त कहब्या

 

अनपढ़ बा गाँउ  पूरा  बुधुआ पढ़े बा अठुईं

अन्हरन के बीच काना,अबहीं कहब त कहब्या

 

झाबर बची न सोर्रा गायेब भवा अखाड़ा

किरकिट म सब दिवाना, अबहीं कहब त कहब्या

 

मोटवार जे रहइ ऊ निमरा का मूड़ काटइ

अपुना बनइ सयाना,अबहीं कहब त कहब्या

 

दुनिया म आजु भैवा सच्चे क के पुछत्तर

झुट्ठन क बाति माना, अबहीं कहब त कहब्या

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