शाम ए हिज्र, पुरवाई, और फिर ये तन्हाई
जान ओ दिल पे बन आई और फिर ये तन्हाई
वक़्त ने ली अँगड़ाई, और फिर ये तन्हाई
हो न जाये रुस्वाई, और फिर ये तन्हाई
दरबदर फिराती है तेरी जुस्तजू तौबा
साथ दे न बीनाई और फिर ये तन्हाई
दिल तड़पने लगता है, दर्द बढ़ने लगता है,
तिश्नगी कहाँ लाई और फिर ये तन्हाई
दर्द ए दिल के घेरे में, इस जहाँ के मेले में,
कौन तेरा सौदाई? और फिर ये तन्हाई
कैसी तीरगी छाई "रौशनी" के धोखे में
ज़िन्दगी तमाशाई और फिर ये तन्हाई
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🌹
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