हवा के सिवा है जो रफ़्तार में
असर उसका डाल अपने किरदार में 
हदें हम पे हँसती रहीं और हम 
तलाशा किये तर्क तकरार में 
भला हो भरम का जो भरमा लिया 
वगरना धरा क्या है संसार में 
हमें यूँ अज़ल ही से मालूम था 
है किस-किस का इसरार इस रार में 
मगर क्या करें हम भी फँस ही गये 
ख़ला की बलाओं की गुफ़्तार में 
अज़ल - आदि / पहले से, इसरार - हठ, जिद, रार - लड़ाई, ख़ला - अन्तरिक्ष, गुफ़्तार - बातचीत 
चला चाक अपना ख़ला के कुम्हार
कई अक़्स हैं अनगढ़े, ग़ार में 
मुहब्बत की रंगत में वहशत भी घोल  
उजाला तो हो कूचा-ए-यार में 
ग़ार - गड्ढा, सूरज जहाँ डूबता है उस के संदर्भ में, वहशत - पागलपन / दीवानगी
वो लावा जो दुनिया बनाता भी है
न कुहसार पे है न कुहसार में 
नया नूर जिस का ढिंढोरा पिटा 
न रुख़सार पे है न रुख़सार में 
कुहसार - पहाड़, रुख़्सार - गाल 
कहाँ सब ज़हीनों को दिखती है खाद 
जी हाँ! ज़र्द पत्तों के अम्बार में 
तेरी बातें हैं “शुद्ध-कूड़ा” ‘नवीन’
इन्हें कौन पूछेगा बाज़ार में
ज़हीन - बुद्धिमान , ज़र्द पत्ते - सूखे पत्ते
ज़हीन - बुद्धिमान , ज़र्द पत्ते - सूखे पत्ते
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल 
122 122 122 12 
इस ग़ज़ल को पूरी तरह से प्रयोग के तौर पर कहने की कोशिश की है। यह एक क़ताबन्द ग़ज़ल है। इस में वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास और अंत्यनुप्रास अलङ्कार का प्रयोग किया गया है। ग़ज़ल में अलङ्कारों का प्रयोग पहले के शायर भी करते रहे हैं। 
 
हमें यूँ अज़ल ही से मालूम था
जवाब देंहटाएंहै किस-किस का इसरार इस रार में ..
गज़ल चाहे विभिन्न अनुप्रासों को जोड़ के, कताबंद प्रयोगात्मक तरीके से लिक्खी गई हो पर इसका आनंद लेते लेते ये बात दिमाग में नहीं आई ... अंत आते आते जब समझ आया तो लगा की आपकी मेहनत हर स्तर पे सफल रही ... हर शेर लाजवाब बन पड़ा है ...
अच्छी ग़ज़ल है....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
कहाँ सब ज़हीनों को दिखती है खाद
जवाब देंहटाएंजी हाँ! ज़र्द पत्तों के अम्बार में
तेरी बातें हैं “शुद्ध-कूड़ा” ‘नवीन’
इन्हें कौन पूछेगा बाज़ार में
ज़हीन - बुद्धिमान , ज़र्द पत्ते - सूखे पत्ते
नवीन साहब बढ़िया गजल कही है।