हिन्दी गजल - अविश्वास का कोई कारण नहीं - राजमूर्ति 'सौरभ

 


अविश्वास का कोई कारण नहीं

कभी बोलता झूठ दर्पण नहीं।

 

जो शंकालु है ही स्वभाव आपका,

तो इस रोग का है निवारण नहीं

 

मुखौटा लगाया है श्री राम का

हृदय में छुपा क्या है रावण नहीं

 

समझ लीजिए लेखनी व्यर्थ है

हुआ सत्य का यदि निरूपण नहीं

 

कभी की न सेवा जो माँ-बाप की

किसी काम का फिर है तर्पण नहीं

 

जिन्हें ज्ञान पर अपने विश्वास है

वो करते कभी पिष्टपेषण नहीं

 

पधारेंगे भगवान कैसे भला 

हृदय का है यदि स्वच्छ प्रांगण नहीं


2 टिप्‍पणियां:

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