(संस्कृत गज्जलिका भावानुवाद सहिता)
वञ्चनारीतेःकृतं केन कदा
सम्पादनम्
नीयते हृदयं समोदं दीयते
सन्तापनम्
रीति यह किसने चलाई और कबसे
बोल तो
मुस्कुराते दिल को लेकर भेंट करना पीर को
चक्षुषोःस्वप्नाः शिलायन्ते
कथं जाने नहि
देहतो बहिरागतोSहं
दर्शनार्थं जीवनम्
स्वप्न आँखों में तिरे थे
जाने क्यों पथरा गये
देह से बाहर मैं आया जिन्दगी
की खोज में
शिक्षितोSहं
वञ्चकैर्भूयोSधुना तस्मादिह
प्रस्तुतोSहं
दातुमेभ्यो हार्दिकं वर्धापनम्
वंचनाओं ने पढ़ाया पाठ जीवन
का मुझे
चल रहा हूँ मैं छलावों को
दुआएं बांटने
कल्पिते स्थातुं निशान्तं
विश्रमे प्रियसंगमे
केन तन्नियतं मदर्थं
यन्निदाघे धावनम्
फिर अकेले में तुम्हें बस
याद करना था मगर
उफ ये किसने धूप का चलना
जरूरी कर दिया
सञ्चितानि सादरं मध्वक्षराणि
दैवतः
वर्तते नगरेSधुना
किं पद्यतासम्पादनम्
भाग्य से कुछ इक मधुर अक्षर
मिले हैं पीर में
क्या तुम्हारे शहर में गीतों
का मौसम है अभी
पुस्तकानां पाठनं पारायणं
बहु दर्शितम्
शिष्टमधुना वर्तते
यज्जीवनस्याध्यापनम्
पोथियों ने और भी उलझा दिया
है इसलिए
आजकल बस जिन्दगी को पढ़ रहा
हूँ रातदिन
शिक्षयन्ति स्म सदा ये
कर्मणा ते निर्गता
नाधुना ब्रूते नरो ब्रूतेSधुना विज्ञापनम्
खप गयी पीढ़ी वो जो जीना
सिखाती थी हमें
आजकल का आदमी विज्ञापनों में बोलता है
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
वंदन