25 जुलाई 2023

वंदन शुभ अभिवन्दन - रमेश कँवल

 हमारे यहाँ बहुत पहले से गणपति, सरस्वती और गुरुवन्दन की परिपाटी रही है . किसी भी कवि गोष्ठी या कवि सम्मलेन का श्रीगणेश विधिवत दीप प्रज्ज्वलित करने के उपरान्त माँ शारदे की वन्दना के साथ होता रहा है. किसी भी कवि की प्रथम परीक्षा यही मानी जाती थी कि उसने माँ शारदे की वन्दना में क्या लिखा है. नवोदितों से कार्यक्रमों के आरम्भ में गुरू, गणपति, सरस्वती एवं अन्य ईश आराधनाएँ करवाना सामान्य बात होती थी. परन्तु समय की लीला कुछ ऐसी रही कि अब उस बारे में टिपण्णी करना उचित नहीं लगता. 

मुशायरों, नशिस्तों में पढ़ी जाने वाली हम्दों-नातों से प्रभावित होकर, ठीक मुशायरों-नशिस्तों के दरमियान अजान के वक्त वाणी को विराम देने की प्रथा से अभिभूत होकर रमेश कँवल जी के मन में आया कि हम सनातन धर्मावलम्बी भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते और बस वहीं से इस अद्भुत ग्रन्थ ‘वंदन! शुभ अभिवन्दन’ का श्रीगणेश हो गया. जहाँ बहुत सारे लोग इन बातों को बातों तक ही सीमित रखते हैं वहीं रमेश जी ने उपदेश देने या वाग्विलाप करने के स्थान पर कार्य-निष्पादन का मार्ग चुना. रमेश जी को पुनः-पुनः साधुवाद. 


इस पुस्तक में १. वाणी २. गणेश ३. हनुमान ४. शिव ५. राम ६. कृष्ण ७. बलराम ८. जगदम्बिके एवं ९. ईश्वर की वन्दनाओं में कुल ५२ कवियों / कवयत्रियों ने वन्दनाएँ प्रस्तुत की हैं . साथ ही ‘माँ’ शीर्षक के अन्तर्गत भी ११ कवियों / कवयत्रियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं . लगभग ३०० पृष्ठ वाली इस पुस्तक को रमेश जी ने वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी, उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी एवं गृह मंत्री अमित शाह जी को समर्पित किया है . पुस्तक के अन्त में रमेश जी ने सभी रचनाधर्मियों के नाम और उनके मोबाइल नम्बर भी दिये हैं . प्रसिद्ध काव्याचार्य श्री कृष्ण कुमार नाज़ सहित द्विजेन्द्र द्विज, डॉ. कुमार प्रजापति एवं डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’ जैसे ख्यातिनाम शारदात्मजों ने इस पुस्तक के महत्त्व पर प्रकाश डाला है. 

पुस्तक पाने के लिए सम्पर्क 

रमेश कँवल – 8789761287 

श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली -8447540078 

22 जुलाई 2023

ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है - पवन कुमार

ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है

अभी परिन्दे के अन्दर उड़ान बाक़ी है

 

बधाई तुमको कि पहुँचे तो इस बुलन्दी पर

मगर ये ध्यान भी रखना ढलान बाक़ी है

 

मैं अपनी नींद से क़िस्तें चुकाऊँगा कब तक

तुम्हारी याद का कितना लगान बाक़ी है

 

मैं एक मोम का बुत हूँ तू धूप का चेहरा

बचेगी किसकी अना इम्तेहान बाक़ी है

 

मुझे यक़ीन है हो जाऊँगा बरी एक दिन

मेरे बचाव में उसका बयान बाक़ी है

 

ये बात कह न दे सैलाब से कोई जाकर

तमाम शहर में मेरा मकान बाक़ी है

 

पवन कुमार

 

सबब पूछो न क्यों हैरतज़दा हूँ - शेषधर तिवारी

सबब पूछो न क्यों हैरतज़दा हूँ

मैं अपनी चीख सुनकर डर गया हूँ

 

वाही पीछे पड़े हैं ले के पत्थर

मैं जिनकी फ़िक्र में पागल हुआ हूँ

 

मेरे सीने पै रख के पाँव बढ़ जा

तेरी मंज़िल नहीं मैं रास्ता हूँ

 

मुझे अपनों ने क्यों ठुकरा दिया है

ये ग़ैरों से लिपट कर पूछता हूँ

 

किसी को भी बना सकता हूँ पानी

बज़ाहिर यूं तो पत्थर दिख रहा हूँ

 

सबब दरिया है या बेचारगी है

जो पत्थर हो के भी मैं बह चला हूँ

 

सहम कर चल रही है नब्ज़ मेरी

उसे लगता है मैं उससे ख़फ़ा हूँ

 

शेषधर तिवारी 

 

जब भी कोई अपनों में दिल का राज़ खोलेगा - ज़ाहिद अबरोल

जब भी कोई अपनों में दिल का राज़ खोलेगा

आँसुओं को समझेगा आँसुओं से बोलेगा

 

क्यूँ बढ़ाये रखता है उसकी याद का नाख़ुन

रोते रोते अपनी ही आँख में चुभो लेगा

 

ताजिराने- मज़हब को नींद ही नहीं आती

आदमी तो बरसों से सो रहा है सो लेगा

 

आँख, कान, ज़हनो-दिल बेज़ुबाँ नहीं कोई

जिस पै हाथ रख दोगे ख़ुद ब ख़ुद ही बोलेगा

 

आज ही कि मुश्किल है लड़ रहे हैं हम तनहा

कल तो यह जहाँ सारा अपने साथ हो लेगा

 

तू ख़िरद के गुलशन से फल चुरा तो लाया है

उम्र भर तू अब ख़ुद को ख़ुद में ही टटोलेगा

 

मैं उस एक लमहे का मुन्तज़िर हूँ ऐ ‘ज़ाहिद’

जब हर इक का ग़म उसके सर पै चढ़ के बोलेगा

 

ज़ाहिद अबरोल

 

शैख़ साहिब! शराब पी लीजै - विजय ‘अरुण’

 शैख़ साहिब! शराब पी लीजै

मेरे आली जनाब पी लीजै

 

कीजिए कोई भी न इस पै सवाल

चीज़ है लाजवाब पी लीजै

 

इसमें नश्शा है और महक भी है

ये नशीला गुलाब पी लीजै

 

अब तो पीने पिलाने के दिन हैं

जोश पर है शबाब पी लीजै

 

आप को भी है पीने की ख़्वाहिश

छोड़िए सब हिजाब पी लीजै

 

आप के नाम की ‘अरुण’ साहिब

कुछ बची है शराब पी लीजै

 

विजय ‘अरुण’

रोक नहीं फ़रमाने दे - रवि खण्डेलवाल

रोक नहीं फ़रमाने दे

मन की बात बताने दे

 

सच का साथ न छोडूँगा

चाहे जितने ताने दे

 

मुँह मत खुलवा अब मेरा

बेहतर होगा जाने दे

 

सुर में गायेगा एक दिन

जैसा भी है गाने दे

 

खुद का केवल सोच न तू

पंछी को भी दाने दे

 

आने वाले की मर्ज़ी

आता है तो आने दे 


रवि खण्डेलवाल 

कोई बदलाव की सूरत नहीं थी - सचिन अग्रवाल

 

कोई बदलाव की सूरत नहीं थी

बुतों के पास भी फ़ुर्सत नहीं थी

 

अब उनका हक़ है सारे आसमाँ पर

कभी जिनके सरों पर छत नहीं थी

 

वफ़ा, चाहत, मुरव्वत सब थे मुझमें

बस इतनी बात थी दौलत नहीं थी

 

फ़क़त प्याले ही प्याले क़ीमती थे

शराबों की कोई क़ीमत नहीं थी

 

मैं अब तक ख़ुद से ही बेहद ख़फ़ा हूँ

मुझे तुमसे कभी नफ़रत नहीं थी

 

गये हैं पार हम भी आसमाँ के

वहाँ लेकिन कोई जन्नत नहीं थी

 

वहाँ झुकना पड़ा फिर आसमाँ को

ज़मीं को उठने की आदत नहीं थी

 

घरों में ज़ीनतें बिखरी थीं हर सू

मकानों में कोई औरत नहीं थी

 

सचिन अग्रवाल


28 जून 2023

एक और कदम हिंदी गज़ल की ओर – एम. एल. गुप्ता आदित्य

कुछ सप्ताह पहले  हिंदी गजलों की एक पुस्तक आई है “धानी चुनर। इस पुस्तक के लेखक हैं नवीन सी चतुर्वेदी, जो अनेक विधाओं व भाषाओँ में सृजन करने वाले कवि / लेखक हैं। इस पुस्तक का श्रीगणेश गणपति, शारदे, शिव, राम, कृष्ण, जगदम्बा एवं गुरू वन्दना जैसी ईश आराधनाओं के साथ किया गया है, जो हमें पुरातन सनातन सरोकारों की याद दिलाता है । शायर नवीन सी चतुर्वेदी ने अपनी हिंदी गजलों में अरबी, फारसी शब्दों का न्यूनतम प्रयोग किया है। बहुत सारे ऐसे शब्द हैं जो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं और शायरी में जिनका धड़ल्ले से इस्तेमाल होते हैं मगर शायर ने उनके ऐसे विकल्प प्रस्तुत किये जो हमारे लिये अजनबी नहीं हैं  जैसे कि 

 

हुजूर, जनाब, साहब के लिए  मान्यवर, महोदय, आदरणीय, श्रीमान

शायद के लिए क्वचित, कदाचित 

दरअसल के लिए वस्तुतः

 अक्सर के लिए बहुधा

 वरना के लिए अन्यथा

 आखिरकार के लिए अन्ततोगत्वा

 उसके बाद के लिए तदोपरान्त

लफ्फाज के लिए शब्द-सन्धानी (यह नया शब्द प्रयोग है)

 सुबूत के लिए साक्ष्य

एक बार के लिए एकदा

हासिल के लिए हस्तगत आदि आदि। 

 

आवश्यकतानुसार जहाँ क्रियाकलाप, शून्यकाल, निम्नांकित, आयुक्त, उच्चायुक्त, जैसे तकनीकी शब्दों से भी काम लिया है वहीँ अन्तर्भुक्त, श्रेयस्कर, दग्ध-अन्तस, स्वयमेव, योग कीजिए, सदृश, सर्वमान्य जैसे शब्दों को भी बड़ी ही चतुराई के साथ बरता है। 


भारतीय चरित्रों की बात करें तो विश्वामित्र, सहस्रबाहु, परशुराम, धृतराष्ट्र, भीष्म, दुष्यंत-शकुन्तला, वेदव्यास, भारद्वाज, युयुत्सु, चरक, सुभद्रा, आम्रपाली, पद्मिनी,  द्रौपदी, तारा, अहिल्या, रुक्मिणी, मन्दोदरी, मन्थरा, कैकेइ, भर्तृहरि, आर्यभट्ट, दधीची, दुर्वासा, चार्वाक, भरत-मुनि, उर्मिला, सौमित्र, चित्रगुप्त, इन्द्र, जरासंध के पुत्र सहदेव, रुकमी, रुक्मणि, शिशुपाल, जयद्रथ, अभिमन्यु, अरावन जैसे चरित्रों के माध्यम से भी शेर कहे गये हैं ।

 



'
धानी चुनरके चुनिंदा शेर आप के रसास्वादन के लिए-

हास परिहास


उसने पूछा प्रीत है तो कह दिया हाँ प्रीत है,

हम भलेमानुस हैं हमको झोलझाल आते नहीं

 
व्यर्थ साधो बन रहे हो कामना तो कर चुके हो,

उर्वशी से प्रेम की तुम याचना तो कर चुके हो


कटाक्ष वाले शेर


कौओं के कुल में जब कुहू-कुहू होती है,

सारे क्रिया-कलाप समझ आने लगते हैं


ध्यान कर रहे हैं किन्तु वासना में हैं मगन

आजकल तो जाने कैसे-कैसे व्यक्ति बुद्ध हैं


नारीशक्ति को सम्बोधित करते शेर


क्या तुम्हें अनुभव नहीं नारी का बैरी कौन है,

फिर भी लड़ना है परस्पर तो प्रभंजन मत करो


किसलिए तारा, अहिल्या, द्रौपदी बनती हो तुम

मानिनी ऐसे स्वयं का मानमर्दन मत करो


अपनी रूचि के वस्त्र पहनने का अधिकार सभी को है

किन्तु अकारण अंग प्रदर्शन करते रहना अनुचित है


भारतीय दर्शन के शेर


चिता पर हो पिता और पुत्र सिर को चोट पहुँचाये

ये ऐसा कृत्य है जो उच्चतम सम्मान जैसा है


आधुनिकता के वकीलो आधुनिक तब भी थे हम,

जब कराया था जगत को सृष्टि-दर्शन झाग में


छोटी बहर का जादू


पृष्ठ तो पूरा धवल था

रंग उकेरे तूलिका ने

 

बन चुके होते सूर या तुलसी

शारदे की कृपाएँ होतीं तो

 
बड़ी बहर के शेर


हर नवीन लड़ने वाला असमंजस में पड़ ही जाता है

किस-किस अर्जुन को कब तक गीता के पाठ पढ़ाएँ कान्हा


लाड़ली बेटी सुनो तुम मात्र लैला ही नहीं हो, तुम सुभद्रा, आम्रपाली, पद्मिनी भी हो

बस तुहिन-कण ही नहीं हो, बस झमाझम ही नहीं हो, तुम हिमालय की सुता मन्दाकिनी भी हो


जब-जब सत्ता धृतराष्ट्रों की दासी बनती है

तब-तब सर-शय्या पर भीष्म लिटाये जाते हैं

 

इस पुस्तक को पढने के बाद याद आता है कि आपातकाल के दौरान दुष्यंत के शेर बहुत प्रसिद्ध हुए जिनके चलते लोगों ने दुष्यंत को हिंदी का पहला मशहूर शायर माना मतलब दुष्यंत की शायरी को हिंदी की शायरी माना गया   हिंदी और अंग्रेजी की गजल में क्या अंतर है, इसे लेकर भी उहापोह रही है।  यह देखने में आया कि देवनागरी लिपि में लिखे गए शेर हिंदी के शेर और फारसी लिपि में लिखे गए शेर उर्दू के शेर माने जाते रहे हैं ।  पर लिपि मात्र बदलने से तो भाषा नहीं बदलती।

 

इस विषय पर बहुभाषी गजलकार नवीन सी. चतुर्वेदी प्रश्न

उठाते हैं कि अगर गीता के श्लोकों को रोमन लिपि में लिख दिया जाए तो क्या वे अंग्रेजी के श्लोक हो जायेंगेअवधी की रामायण को फारसी लिपि में लिखने से क्या वह अरबी या फारसी या उर्दू की हो जायेगी ? क्या मीर और गालिब के शेर देवनागरी लिपि में लिख देने भर से हिंदी के शेर हो जायेंगे ? और अपनी 'धानी चुनर' की हिन्दीगजलों के माध्यम से उत्तर भी देते हैं कि भाषा और लिपि दो अलग बातें हैं । यदि गजलें हिंदी भाषा में हैं तो हिंदी परिवेश जैसे कि शब्द, चरित्र, कथानक आदि भी हिंदी पृष्ठभूमि के होने चाहिए । फिर भी सत्य यही है कि  हमलोग पिछले कई दशकों से अदम गोंडवी, चंद्रसेन विराट, जहीर कुरैशी सहित सैंकड़ों गजलकारों की देवनागरी लिपि में लिखी गयी गजलों को हिंदी गजलें मान कर पढ़ते रहे हैं । ऐसे में हिन्दीगजल के क्षेत्र में नवीन सी. चतुर्वेदी का यह प्रयोग लोगों को कैसा लगता है तथा और कितने शायर इस शैली को अपनाते हैं इन बातों का उत्तर भविष्य ही दे पायेगा । मैं इस अभिनव और साहसिक प्रयोग के लिए नवीन सी. चतुर्वेदी को बधाई देता हूँ ।


एम एल गुप्ता ‘आदित्य’

निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन 


शायर सम्पर्क - 9967024593 

Amazon link 

Dhaani Chunar https://amzn.eu/d/bdqMrz6