चन्द अशआर - अमीर कज़लबाश

मेरे साये में सब हैं मेरे सिवा
कोई तो मेरी सायबानी  करे

मुझको अक्सर ये हुआ है महसूस
कोई कुछ पूछ रहा हो जैसे

हो रहा है अगर जुदा मुझसे
मेरी आँखों पे उँगलियाँ रख जा

फल दरख़्तों से तोड़ लो ख़ुद ही
जाने कब आयें आँधियाँ यारो

बड़ा बेशक़ीमत है सच बोलना

सोचता रहता हूँ उसको देखकर - आलम खुर्शीद

आलम खुर्शीद
ज़िन्दगी में अब तक न जाने कितने सारे 'अच्छे' रचनाधर्मी मिले हैं पर याद करने बैठूँ तो सहसा याद नहीं आते। इसीलिए अपने ब्लॉग पर वातायन के अंतर्गत ऐसे ख़ास रचनाधर्मियों को सहेजना शुरू किया है ताकि आप सभी के साथ मैं भी जब चाहूँ अलबम की तरह समय-समय पर गुजरे लमहात का आनंद ले सकूँ। आइये एक मतला पढ़ते हैं :-

देख रहा है दरिया भी हैरानी से।
हमने पार किया कितनी आसानी से।।

ये मतला पढ़ते ही मैं मुरीद हो गया था इस दौर के एक अज़ीम शायर मुहतरम आलम खुर्शीद साहब का। देश-विदेश में छपने वाले इस शायर की

चन्द अशआर - शकेब जलाली

Shakeb Jalali
शकेब जलाली [Oct'1, 1934 - Nov'12, 1966] नाम है उस शायर का जिस ने धारणाओं को बदला, अपनी पहिचान कायम की और अल्पायु में ही ज़ियादा शोरशराबा किये बिना अपने असली घर लौट गया। लफ़्ज़ के पाँचवें अंक से चुने हैं उन के चन्द अशआर। शकेब की शायरी में अधिकांश जगह पर श्रीमदभगवद्गीता की छाप दिखती है। गत का गहन चिंतन और आगत को ध्यान में रखते हुये उत्कृष्ट मूल्यांकन, विवेचनयक़ीन न आये तो इस पोस्ट में 'जलवारेज़ - निगाहेशौक़' वाले शेर को पढ़ लीजिये। हालाँकि उन का हर एक मिसरा बार-बार अपनी तरफ़ लौटने को मज़बूर करता है, मगर आज़ जब सब कुछ माइक्रो होता जा रहा है, इतने अशआर भी काफ़ी हैं, अगर पढ़ लिये जायें तो ......

ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ-कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है 
अब्र - बादल
दश्त - जंगल

तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप, मुझे डूबते भी देख

क्या शाखेबासमर है, जो तकता है फ़र्श को

सूरज मेरा दुश्मन [संगीता सहजवाणी] - समीक्षा देवी नागरानी

संगीता सहजवाणी



   आस्थाओं  की व्यापकता व अनुभवों की गहराई से उजला "सूरज मेरा दुश्मन"

       हिंदी साहित्य के आकाश में एक और नया सितारा रौशन नज़र आ रहा है,  जो अपना परिचय अपनी सहजता से अपनी कविताओं में दे रहा है.  जी हां यह है संगीता सहजवाणी जो एक नये सूरज से हमें रौ ब रू करा रही है जो मानवता का दुशमन है. अपने प्ररिवेश की परिधि में संगीता ने जितनी सरलता से दोस्ती का दावा किया है,  उतनी ही सहजता से निभाया भी है.  पर इस दोस्ती के दाइरे में उन्वान ''सूरज मेरा दुश्मन''  इस इन्द्र धनुषी आकाश पर कुछ और ही रंग बिखेर रहा है . अपने अस्तित्व की अभिव्यक्ति को जानना और जानकर कम से कम शब्दों में परिभाषित करना,  अपने आप में  एक अनुभूति है. कविता, सच में  देखा जाये तो  संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है और शब्द उसी कविता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधिः जिनका आधार लेकर संगीता जी की निशब्द सोच शब्दों के सहारे अपने कवि हृदय से झर झर कर बहती हुई काव्य धारा में हमें बहा लेने में परिपूर्ण है. उनकी अभिव्यक्ति की शिद्दत को उनके ही शब्दों में  सुनिये-

शुक्रिया ज़िन्दगी [डा. श्याम सखा श्याम] - समीक्षा - मयंक अवस्थी


डा. श्याम सखा श्याम का ग़ज़ल संग्रह "शुक्रिया ज़िन्दगी '
शुक्रिया ज़िन्दगी” के लिये शुक्रिया। सकारात्मक होना इस अवसाद के दौर में एक महती और दुर्लभ उपलब्धि है। बीस में से उन्नीस प्रकाशित ग़ज़ल –संग्रहों के उन्वान में हताशा , अवसाद या पलायन का अर्थ रखने वाले शब्द मिलते हैं। इसलिये यदि किसी पुस्तक का शीर्षक “शुक्रिया-ज़िन्दगी” दिखाई दे तो नि:सन्देह हर्षमिश्रित कौतूहल का भाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है। लेकिन इसके फौरन बाद ग़ज़लकार का नाम डा. श्याम सखा “श्याम” देखने के बाद एक गहरी आश्वस्ति भी हो जाती है क्योंकि साहित्य के क्ष्रेत्र में यह नाम अपनी पुख़्तगी के साथ साथ अपनी सकारात्मक सोच के लिये भी विख्यात है। डा श्याम सखा “श्याम” साहित्य के खितमतगार ही नहीं संरक्षक , उत्प्रेरक और दिशा –निर्देशक भी हैं और उनके व्यक्तित्व के इन आयामो के आलोक में उनके इस  गज़ल –संग्रह को पढा जाय तो यह ग़ज़ल

तुम्हारा भोलापन....... ओह्हो - कविता गुप्ता

कविता गुप्ता
शब्द की सामर्थ्य का  विलक्षण उदाहरण बक़ौल कविता गुप्ता :- 

चार-छह साल की दो नन्ही-नन्ही बेटियों को अपने से उस वक़्त दूर करना जब उन्हें माँ की सख़्त ज़ुरूरत होती है; किसी भी माँ के लिये बहुत मुश्किल समय होता है। परन्तु जीवन है ही ऐसा जो कि मज़बूरियों के बग़ैर चल ही नहीं सकता। उसी वक़्त की यह ख़तनुमा कविता है। तब मैंने इसे अपनी बच्चियों को यह सोच कर नहीं भेजा कि उन का बाल-सुलभ कोमल हृदय टूट