हाइकु

[१]
सत्य की खोज
आईने का सामना
सब ग़लत.................

[२]
दुग्ध नदियाँ
जल स्रोतों की खोज
जल पे जंग  

[३]
आई लव यू
औरत बुरी बला
आई मिस यू.....................

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - मयंक अवस्थी जी [६] और रवि कांत पाण्डेजी [७]

सम्माननीय साहित्य रसिको

पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|


भाई श्री मयंक अवस्थी जी:-

श्री मयंक अवस्थी जी रिजर्व बॅंक, नागपुर में कार्यरत हैं| शे'रो शायरी का बहुत ही जबरदस्त ज्ञान है आपको| और अब देखिए उन की अनुभवी लेखनी ने चौपाइयों के माध्यम से क्या जलवे बिखेरे हैं:-

निर्निमेष तुमको निहारती|
विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी|
तुम चन्दा, मैं एक चकोरी|१|

खत भी तुमको भिजवाया पर|
शलभ, वर्तिका तक आया पर|
कब सुनते हो शून्य कथायें|
महाअशन में ये समिधायें|२|

तुम बादल मैं प्यासी धरती|
तुम बिन मैं सिँगार क्या करती|
बन जाते माथे पर कुमकुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
शलभ=पतंगा, वर्तिका=शम्मा, महाअशन=यज्ञ की विकराल अग्नि



भाई श्री रविकान्त पाण्डे जी:-

भाई रवि कांत पाण्डे जी हम से पहली बार जुड़े हैं| उन के बारे में मुझे विशेष जानकारी नहीं है, परंतु उनकी लेखनी स्वयँ ही उनका परिचय दे रही है:-

मौसम के हाथों दुत्कारे|पतझड़ के कष्टों के मारे|सुमन हृदय के जब मुरझाये|
तुम वसंत बनकर प्रिय आये|१|


नूतन किसलय तुमसे पाकर|
जीर्ण-शीर्ण सब पात हटाकर|

मस्ती में होकर मतवाली|

झूम रही उपवन की डाली|२|


लोग कहें घर दूर तुम्हारा|

किंतु नहीं मैने स्वीकारा|

दिल में मेरे बसते हो तुम|

कितने अच्छे लगते हो तुम|३|


भाई श्री मयंक जी और भाई श्री रवि कांत जी को बहुत बहुत बधाई इतने सुंदर्र और स-रस चौपाइयों को पढ़ने का सु-अवसर प्रदान करने के लिए|

इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई

कुछ मुश्किलें, कुछ उलझनें, कुछ खामियाँ भी हैं हुज़ूर - नवीन

कुछ मुश्किलें, कुछ उलझनें, कुछ खामियाँ भी हैं हुज़ूर
आवाज़ है आवाज़ पर ख़ामोशियाँ भी हैं हुज़ूर

अपनी बपौती जान कर, जंगल नहीं काटें कोई
इन जंगलों में, जन्तुओं की बस्तियाँ भी हैं हुज़ूर

जिस सोच ने, तुहफ़े दिये हैं, 'ताज़महलों' से हमें
उस सोच में, "क़ारीगरों की उँगलियाँ" भी हैं हुज़ूर

ये ज़िन्दगी अन्धा कुँआ है, जानते हैं सब 'नवीन'
पर इस कुँए में, हौसलों की रस्सियाँ भी हैं हुज़ूर


बहरे रजज मुसम्मन सालिम 
मुस्तफ़ इलुन x 4 
2212 x 4 

लोनावाला, महाराष्ट्र स्थित सहारा सिटी, एम्बे वेली के प्राकृतिक सौंदर्य पर

पर्वतों के बीच फैली घाटियां
घाटियों में मुस्कुराती वादियां
वादियों में तैरती चंचल हवा
और हवा कहती तमाम कहानियाँ

कितने हैं नजदीक धरती - आसमाँ
एक दूजे पे हों जैसे मेहरबाँ
ये नज़ारा देख के रब दी कसम
ज़िस्म-ओ-जाँ लेने लगें अँगङाइयाँ

देखते बनती है तारों की चमक
करती है मदहोश फूलों की महक
ज़िन्दगी बन के परी नाचे यहाँ
इस सिरे से उस सिरे तक बेधङक

झुंड में झरने करें अठखेलियाँ
झीलों का साम्राज्य फैला है यहाँ
बस यहीं पे रंज़ोगम शिक़वे - गिले
बारहों महीने मनाते छुट्टियाँ

धूप की दादागिरी है बेअसर
शबनमी कालीन फैली हर डगर
कानों में बजती हों जैसे घंटियाँ
बादलों के बीच होता है सफर

मन थका, आराम पाता है यहां
दिल खुशी के गीत, गाता है यहाँ
आप भी महसूस कर के देख लो
ज़िन्दगी का लुत्फ़ आता है यहाँ

सड़क पर

चलें रीति से
नीति निभाते
मीत सड़क पर

हौले हौले कदम उठायें
इधर उधर भी नज़र फिरायें
बेमतलब ना दौड़ लगायें
अवरोधक पे
पल भर थम जायें
सोचें फिर रुक कर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

जीवन है मारग जैसा ही
रखवाली की गरज इसे भी
जिसने इसकी अनदेखी की
उसकी हालत
सब जानें, होती
बद से भी बदतर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

दौनों होते नये पुराने
दौनों के सँग लोग सयाने
दौनों 'निविदा' के दीवाने
दौनों सब से
लेते हैं हक से
अपना-अपना 'कर'
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

परतन्तर की हार हुई, हमने परजातन्तर पाया

गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ

हर इक हिन्दुस्तानी जब खुल कर अपनी ज़िद पर आया|
परतन्तर की हार हुई, हमने परजातन्तर पाया|१|

जिनके नाम पता उनको तो दिल्ली याद करेगी ही|
हम उनको भी याद करें दिल्ली ने जिनको बिसराया|२|

वंदे माSतरम को गा कर अजब सुकूँ सा मिलता है|
उस का रौब अलग होता जिसने कि तिरंगा फहराया|३|

छुट्टी का कारण बन के रह जाए ना गणतंत्र दिवस|
इसीलिए मैने बच्चों सँग राष्ट्र-गान तन कर गाया|४|

कभी भूल के भी भुलाना न यारा

जता प्रेम को, आप ने जो पुकारा।
हमारे दृगों से बही अश्रुधारा।।
कभी भूल के भी भुलाना न यारा।
हमारे लिए आप सा कौन प्यारा।१।



भुजंग प्रयात छंद


वर्णिक छंद
चार चरण
प्रतेयक चरण में चार बार यगण
यमाता यमाता यमाता यमाता
लघु गुरु गुरु x ४
ल ला ला  -  ल ला ला  -  ल ला ला  -  ल ला ला 
यहाँ लिखे गए ला का अर्थ सिर्फ दीर्घ / गुरु अक्षर है

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - राणा प्रताप सिंह जी [5]

सम्माननीय साहित्य रसिको

आइए इस बार पढ़ते हैं आज के दौर के नौजवान रचनाधर्मी बन्धु राणा प्रताप सिंह जी को| इलाहाबाद में जन्मे राणा प्रताप जी वायु सेना में कार्य रत हैं| आप अपना एक ब्लॉग [http://www.rp-sara.blogspot.com] भी चलाते हैं| शे'रोशायरी के जबरदस्त शौकीन राणा प्रताप जी ने हिन्दुस्तानी छंद साहित्य सेवा के उद्देश्य से इस समस्या-पूर्ति में भाग लेते हुए अपनी प्रस्तुति भेजी है|

मुझसे कटे कटे रहते हो|
औरों संग अविरल बहते हो|
सबके नाज उठाते हो तुम|
पर मुझको तरसाते हो तुम|१|

जितना मुझको तरसाओगे|
उतना निकट मुझे पाओगे|
तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो|
मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो|२|

मिट जायेगा भेद हमारा|
जैसे गंग जमुन जल धारा|
हो मेरी स्मृतियों में गुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|


देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-

समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"

छंद है चौपाई
हर चरण में १६ मात्रा

अधिक जानकरी इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है|इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - शेष धर तिवारी जी [4]

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - शेष धर तिवारी जी

सम्माननीय साहित्य रसिको

पहली और फिर पहली से दूसरी रचना आते आते काफ़ी वक्त लगा| अब साहित्य रसिकों को जैसे जैसे पता चल रहा है, वो अपनी अपनी रचनाएँ भेजने लगे हैं| इस शुभ कार्य में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए आप सभी का पुन: पुन: आभार|

पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' की चौथी रचना हाजिर है आपके सामने| इस बार हम पढ़ते हैं एक ऐसे व्यक्ति को जो कि व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद साहित्य सेवा में लगे हुए हैं| इलाहाबाद की मिट्टी से जुड़े भाई श्री शेष धर तिवारी जी और मंचों से भी साहित्य की सेवा कर रहे हैं| आप अपना एक ब्लॉग [http://sheshdt.blogspot.com] भी चलाते हैं| प्रस्तुत रचना में आप के अनुभव की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टि गोचर होती है|

एक दिवस आँगन में मेरे |
उतरे दो कलहंस सबेरे|
कितने सुन्दर कितने भोले |
सारे आंगन में वो डोले |१|

मैंने उनको खूब रिझाया |
दाना दुनका खूब खिलाया|
पर जब छूना चाहा मैंने |
फैलाए दोनों ने डैने |२|

उड़े गगन को छूना चाहें |
पायीं जैसे अपनी राहें|
अच्छी है यह प्रीत जगत की |
जैसे भगवन और भगत की |३|

दिल को मेरे तुम भाते हो |
जब भी मेरे घर आते हो|
दिल में मेरे रहते हो तुम |
कितने अच्छे लगते हो तुम|४|


सप्ताहांत में हम पढ़ेंगे एक नौजवान शायर की चौपाइयाँ|


देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-

समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"

छंद है चौपाई
हर चरण में १६ मात्रा

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सभी साहित्य रसिकों का पुन: ध्यनाकर्षण करना चाहूँगा कि मैं स्वयँ यहाँ एक विद्यार्थी हूँ, और इस ब्लॉग पर सभी स्थापित विद्वतजन का सहर्ष स्वागत है उनके अपने-अपने 'ज्ञान और अनुभवों' को हम विद्यार्थियों के बीच बाँटने हेतु| इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

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पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' जी [3]

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' जी

सम्माननीय साहित्य रसिको

आइए आज पढ़ते हैं मित्र धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' जी को| आप की 'सज्जन की मधुशाला' [http://sajjankimadhushala.blogspot.com] ने काफ़ी प्रभावित किया है| आपका कल्पना लोक {http://dkspoet.blogspot.com] भी काफ़ी रुचिकर है| आइए पढ़ते हैं कि समस्या पूर्ति की पंक्ति 'कितने अच्छे लगते हो तुम' को कितने प्रभावशाली और रोचक ढँग से पिरोया है आपने अपने कथ्य में|

नन्हें मुन्हें हाथों से जब ।
छूते हो मेरा तन मन तब॥
मुझको बेसुध करते हो तुम।
कितने अच्छे लगते हो तुम |१|

रोम रोम पुलकित करते हो।
जीवन में अमृत भरते हो॥
जब जब खुलकर हँसते हो तुम।
कितने अच्छे लगते हो तुम |२|

पकड़ उँगलियाँ धीरे धीरे।
जब जीवन यमुना के तीरे|
'बाल-कृष्ण' से चलते हो तुम।
कितने अच्छे लगते हो तुम।३|

देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-

समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"

छंद है चौपाई
हर चरण में १६ मात्रा

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पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलील' जी [2]

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी

सम्माननीय साहित्य रसिको

आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी ने इस समस्या पूर्ति 'कितने अच्छे लगते हो तुम' को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए, अपनी रचना भेजी है| विस्मय की बात है कि आचार्य जी ने 'चूहे' जैसे विषय पर समस्या की पूर्ति की है, जो कि सहज प्रशंसनीय है| आप लोग भी इस अद्भुत कृति का आनंद लीजिएगा:-

कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||

नहीं किसी को ठगते हो तुम |

सदा प्रेम में पगते हो तुम ||

दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |

चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||

आलस कैसे तजते हो तुम?

क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?

चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |

बिल्ली से डर बचते हो तुम ||

क्या माला भी जपते हो तुम?

शीत लगे तो कँपते हो तुम?

सुना न मैंने हंसते हो तुम |

चूजे भाई! रुचते हो तुम |



आचार्य जी स्वयं भी एक ब्लॉग चलाते हैं| उन के ब्लॉग का पता है:- http://divyanarmada.blogspot.com

समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"

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छंद - नव-कुण्डलिया - IND SA 2nd ODI 15.01.11

बल्लेबाज़ों ने किया, पहले बन्टाधार|
फिर अफ्रीका ने करी, बेटिँग धुँआधार||
बेटिँग धुँआधार, हार का देखा मंज़र|
टी वी कर के ऑफ, लगाया हमने बिस्तर|
नीरू* ने फिर डेढ़ बजे जब फ़ोन लगाया|
तब जाना कि मुनाफ़ पटेल ने बेंड बजाया||

* my friend's name

छन्द - अमृत-ध्वनि - मकर संक्रांति

जीवन हिल मिल कर जियो, दूर करो हर भ्रांति|
सब से ये ही कह रहा, पर्व मकर संक्रांति||
पर्व मकर संक्रांति, सु-लायक, शांति प्रदायक|
नीति विधायक, प्रीति सु-भायक, रीति निभायक|
शुभ वरदायक, मंगल गायक, नायक जन-मन|
सदगुणदायक, दोष नशायक, दायक जीवन||

'क्लासिक' रहा है आदमी

IPL में खिलाड़ियों के Gladiators की तरह बिकने पर संसदीय टिप्पणी के सन्दर्भ में:-,


हर दौर में 'अपने लिए माफिक' रहा है आदमी|
संक्षेप में कहिए अगर 'क्लासिक' रहा है आदमी|
किस दौर में खोए हो तुम, किस के लिए बेचैन हो|
अब तो स्वयँ बाजार में जा, बिक रहा है आदमी||






IND SA 1 DAY SERIES - JAN 11

ट्वेन्टी-ट्वेन्टी, टेस्ट में; स्वप्न हुए साकार|
इकदिवसी अब आ रहे, साथ लिए ललकार||
साथ लिए ललकार, करो स्वीकार चुनौती|
जाँबाज़ो इस बार, दरो दे धार दरौंती|
विश्व चषक है द्वार खड़ा देखे तुम सबको|
विजय वरो तुम यार, मनाएँ हम सब रब को||

IPL Sale पर एक छंद

बीती बीते वीक में, आय्पीयल की सेल
खड़े रह गये टापते, लारा, सौरव, गेल
लारा, सौरव, गेल, सनथ भी फेल हो गये
कई तजुर्बेकार, यहाँ बेमेल हो गये
मोदी, पाकिस्तान, तजुर्बे की इ फजीती
दिला गयी फिर याद, अनगिनत बातें बीती

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - श्री कंचन बनारसी जी [1]

मित्रो इस साहित्यिक प्रयास के पहले प्रतिभागी बनने का गौरव प्राप्त हुआ है भाई उमा शंकर चतुर्वेदी उर्फ कंचन बनारसी जी को| आप स्वयँ देखिएगा कितनी सहज-सरस-सुंदर-सुमधुर चौपाइयाँ प्रस्तुत की हैं आपने| भारतीय छंद शास्त्र विधा के क्षेत्र में एक नया प्रयास रूप आरम्भ हुए इस प्रायोजन में अपनी सहभागिता दर्ज करा कर आपने सहज वन्दनीय कार्य किया है| आपको बहुत बहुत आभार| आशा है अन्य साहित्य रसिक भी इस दिशा में अपना अमूल्य योगदान अवश्य प्रदान करेंगे|

खुद अपनेंपन से भगते हो ।
पता नहीं किसको ठगते हो ॥
रात - रात भर जब जगते हो ।
अंतर मन से तब भजते हो ॥
प्रीत पाग में पगते हो तुम ।
कितने अच्छे लगते हो तुम ॥
प्रस्तुतिकर्त्ता: श्री उमा शंकर चतुर्वेदी उर्फ कंचन बनारसी
आपका ब्लॉग:- http://kanchanbanarshi.blogspot.com/

कोई तो बताए कि ये कैसा लोकतंत्र है

सुखियों को और सुखी करने की है जुगाड़
दुखियों को और दुखी करने का मंत्र है|

खुलेआम लूटपाट करने का लाइसेंस
जन-धन हरने का स्व-चालित यंत्र है|

जेल [jail] वाला बेल [bail] वाला हर एक नागरिक
इलेक्शन लड़ने का जहाँ पे स्वतंत्र है|

लोकपाल जहाँ करे गोलमाल दे धमाल
कोई तो बताए कि ये कैसा लोकतंत्र है||