टैक्स
को कर कहा गया है। यही करदाता के करों से किसी कर्ता के हाथों में आकर उसे कुछ
करने की प्रेरणा और शक्ति देता है। कर सभी देते हैं, वो
भी जिनकी कमर कर के बोझ से टूटी हुई होती है, मगर कर्ता गिने चुने
ही होते हैं जिन्हें करों की राशि से संपन्न होने वाले काजों से अच्छा कट प्राप्त
होता है। कर चाहे कड़ाई से वसूला जाता हो, उससे संपन्न होने
वाले काज से करवसूलक को यश की प्राप्ति होती है। अधिकतर कर्मठ कल्याणकर्ताओं के कर
कमल हो जाया करते हैं।
शायर करों के व्यूह में घिरा
किसी तरह खुद को बचाए रखने में कामयाब हुआ था कि फिर एक बजट आ गया और कर के शर फिर
उसे छेदने लगे। उसे याद आया कि दिल बड़े काम की चीज़ है। टूट जाय तो भी। जब पुल
टूट रहे थे तब दिल ही ने याद दिलाया था कि कैसे एक दिन सब कुछ टूट जाता है। उस रोज़
जब संसद भवन की छत टपकी तो फिर अपना दिया टैक्स याद आया। दिल की जगह वही कर यानि
टैक्स और दिलदार की जगह सरकार (छंद की मज़बूरी) रख दिया तो
देखा वही हाल- ओ- हवाल है।
दिल को समझाया कि - कर लेना
काम है सरकार का, यही नियम है इस संसार का..
दिल नाराज़ होकर उलाहने देने
लगा - कर तुझे दिया था (कुछ) करने को, तूने कर को पचाके रख
लिया...
नाम लिए बिना वह कर संग्राहक
की ओर इशारा कर रोता रहा....ले गई कर .. (खाली स्थान की पूर्ति करें) ..की, दिवाला मुझे कर दिया....
आखिरी चीत्कार तो दर्दनाक
था....कर का भंवर चढ़े बुखार, दोहरी मार सहाे, तिहरी मार सहो रे... हू हू हू...
शायर दिल से खेलता है तो
ग़मों के साथ आशिक़ी भी करता है। दिल की दुर्गत देख कर उसे अपने शेरों में गुँथे ग़म
से भी टैक्स की बू आने लगी।
उसे साफ़ नज़र आया कि....कर
बढ़े आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह।
तुम छुपा लो कुछ पैसे मेरी
आहों की तरह।
...और ये भी कि
करों ने बांट लिया है मुझे
यूं आपस में
के जैसे मैं कोई लूटा हुआ
ख़ज़ाना था।
एक करदाता जोड़े के
उद्गार...
ये तेरा कर ये मेरा कर दोनों
को जोड़ दें अगर
इससे तो अच्छा मांग लें, वो तेरा सर व मेरा सर।
फिर शायर को मर मिटने के
मिडिल क्लासी जज़्बे के साथ चंद आहें सुनाई दीं.....कर चुकाने के लिए मैं तो जिए
जाऊंगा... देश के नाम पे दे दे के मैं मिट जाऊंगा...
कर के नाम एक लम्बी कराह के
साथ शायर ने इस महफ़िल को खत्म किया