ऋता शेखर 'मधु' |
इंसान अगर मन में
ठान ले तो क्या नहीं कर सकता.....!!! ऋता शेखर 'मधु' जी ने इस का उदाहरण
हमारे सामने पेश किया है। समस्या-पूर्ति मंच द्वारा छंद साहित्य सेवा
स्वरूप आयोजनों की शुरुआत के वक़्त से ही बहुतेरे कह रहे थे "भाई ये
तो बड़ा ही मुश्किल है, हम से न होगा" - बट - ऋता जी ने समस्या पूर्ति मंच
पर की कवियों / कवयित्रियों द्वारा दी गई प्रस्तुतियों को पढ़-पढ़ कर और करीब
एक महीने तक अथक परिश्रम कर के हरिगीतिका छंद लिखना सीखा है। हिन्दी हाइगा और मधुर गुंजन नामक दो ब्लोग चलाने वाली ऋता जी से परिचय अंतर्जाल पर ही हुआ है। आइये पढ़ते हैं उन के हरिगीतिका छंद:-
वसुधा मिली थी भोर से जब, ओढ़ चुनरी लाल सी।
पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।।
पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।।
इत वो ठिठोली कर रही थी, गोपियों के साथ में ।
नटखट कन्हैया उत छुपे थे, कंकड़ी ले हाथ में ।१।
भर नीर मटकी को उठाया, किन्तु भय था साथ में ।
चंचल चपल इत उत निहारें, हों न कान्हा घात में।।
ये भी दबी सी लालसा थी, मीत के दर्शन करूँ।
उनकी मधुर मुस्कान पर निज, प्रीत को अर्पण करूँ।२।
धर धीर, मंथर चाल से वो, मंद मुस्काती चली ।
पर क्या पता था राधिके को, ये न विपदा है टली ।।
तब ही अचानक, गागरी में, झन्न से कँकरी लगी ।
फूटी गगरिया, नीर फैला, रह गई राधा ठगी ।३।
कान्हा नजर के सामने थे, राधिका थी चुप खड़ी।
अपमान से मुख लाल था अरु, आँख धरती पर गड़ी ।।
बोलूँ न कान्हा से कभी मैं, सोच कर के वह अड़ी ।
इस दृश्य को लख कर किसन की, जान साँसत में पड़ी।४।
चितचोर ने झटपट मनाया, अब न छेडूंगा तुझे ।
ओ राधिके, अब मान भी जा, माफ़ भी कर दे मुझे ।।
झट से मधुर मुरली बजाई, वो करिश्मा हो गया ।
मनमीत की मनुहार सुनकर, क्रोध सारा खो गया ।५।
मनुहार सुनकर सांवरे की, राधिका विचलित हुई ।
थी नार नखरीली बहुत, पर, प्रीत से प्रेरित हुई ।।
ये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
बहुत ही सुन्दर रचनायें, आभार परिचय का।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर है यहाँ पर, छंद की धारा बही
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण राधा की कहानी, प्रेम की थाती रही
मन मुग्ध है तनमन प्रफुल्लित, चेतना गाती यही
जब प्रेम पावन जागता, जग, पी बिना भाता नहीं
बहुत सुन्दर काव्य कथा सृजित की है आदरणीया मधु जी ने.... वे सच कहती हैं "बड़ा ही मुश्किल काम है" पर वे इस मुश्किल को कितनी सुन्दरता से पार कर गईं हैं वे... मुझे तो निरंतर प्रयास के बाद भी हासिल शून्य है...
आदरणीय मधु जी को सादर बधाई...
सादर आभार आदरणीय नविन भाई जी.
क्या शानदार छंद कहे हैं। मुझे तो ये आयोजन के सबसे अच्छे छंदों में लगे। बहुत बहुत बधाई ऋता जी को।
जवाब देंहटाएं‘इंसान अगर ठान ले तो क्या नहीं कर सकता,’ ये प्रोत्साहन भरे शब्द नवीन जी के ही हैं|
जवाब देंहटाएंसाहित्य साधना के इस मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार|
मधु जी को उनके ब्लॉग पे तो अक्सर पढता हूँ आज इनके छंद भी पढ़ लिए ... भाई कमाल का शिप्ल है ...
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने !
जवाब देंहटाएंऋता शेखर ’मधु’ जी ने तो हरिगीतिका छंद में दृश्य-रचना कर समा ही बाँध दिया है. सही ही कहा गया है कि प्रारम्भ में अनुशासित रचना-प्रक्रिया कठिन ही लगती है. परन्तु निरन्तरता के साथ प्रयासरत होना क्या-क्या सध जाने का कारण नहीं बन जाता !
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत छंद के सभी बंद सधे हुए हैं और कहन अत्यंत ही मनोहारी है.
ये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते
वाह.. वाह !!
इस सफल प्रयास पर मधु जी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
बहुत ही सुन्दर रचनायें|बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंvaah vaah....वाह वाह ...वाह ...
जवाब देंहटाएंये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जो प्रेम से बढ़ कर जगत में,और कुछ ना मानते।
--क्या बात है....मधुरतम..
"इस प्रेम से बढकर जगत में,
और सुन्दर क्या भला।
उस प्रेम के ईशत-अहं से,
जगत-जीवन क्रम चला ॥"
ऋता दी की कवितायें...हईगा...सब मुझे बड़े पसंद हैं...और ये तो बहुत सुन्दर लिखा है....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा!!!
वाह ..बहुत सुन्दर ... बधाई
जवाब देंहटाएंदृश्य क्या खींचा 'ऋता' ने, ज्यों पहुँच ब्रज में गया मैं.
जवाब देंहटाएं'शिखर' पर पहुँची ऋता, बस देखता ही रह गया मैं.
ये छंद हैं या फंद या छल-छंद कान्हाँ के रचाए.
हर छंद से 'मधु' झर रहा, हो मौन बस पीता गया मैं .
ऋता जी को पहली बार पढ़ा ....आनंद में डूब गया ....शुभकामनाएं ....
एक छोटी सी शंका है ऋता जी!
जवाब देंहटाएंराधा की गगरिया यदि किसी धातु की थी तब तो झन्न की आवाज़ आयी होगी ..किन्तु यदि माटी की थी तो ठन्न या ढन्न की आवाज़ आयी होगी
ये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जवाब देंहटाएंजो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
wah, kya khoob kahi...bahut sundar lekhni hai inki....
Padhvane ke liye dhanyavaad...
मनभावन!
जवाब देंहटाएंसादर
कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
bahut him pyaare chand likhe hain pahli bar madhu ji ko padh rahi hoon .aapke blog par aana sarthak raha.
जवाब देंहटाएंअप्रतिम और विलक्षण ऋता जी !! कमाल कर दिया आपने !! आयोजन की श्रेष्ठ रचना -- यह रचना देर से आयी लेकिन समाम बाँध दिया !! बहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
आदरणीय,
जवाब देंहटाएं@प्रवीण जी-धन्यवाद!
@संजय जी-आभारी हूँ!
@चन्द्र भूषण जी-आभार!
@धर्मेन्द्र जी-धन्यवाद!
@दिगम्बर जी-धन्यवाद!
@संतोष जी-धन्यवाद!
@सौरभ सर-आभार!
@पटालि-द-विलेज जी-धन्यवाद!
@श्याम गुप्त सर-आभार!
@अभि-धन्यवाद!
@संगीता जी-धन्यवाद!
@कौशलेन्द्र जी-आभार!
गगरिया जब कंकरी से फूटी है तो
निस्सन्देह माटी की ही रही होगी|
जो स्वर सूट करे वही लगाकर पढ़ें|
हरिगीतिका के गणित और भाव वही रहेंगे|
@प्रकाश जी-धन्यवाद!
@यशवन्त जी-धन्यवाद एवं आभार!
@राजेश जी-धन्यवाद!
@मयंक जी-धन्यवाद एवं आभार!
@रतन जी-धन्यवाद!
@नवीन जी-कृतज्ञ हूँ!
ak sundar rachana ... vaki bahut achha likha hai ap ne . rachana padhane ke bad drishy swath hi mn men ankurit hone lagate hain .abhar.
जवाब देंहटाएंथी नार नखरीली बहुत,पर प्रेम से प्रेरित हुई—बहुत सुंदर,राधा-कान्हा का शाश्वत प्रेम नये अंदाज़ में.
जवाब देंहटाएंॠता शेखर मूलत; कवयित्री हैं, भाव-विभूति से परिपूर्ण! हाइकु हाइगा और तांका छन्द में आपने बहुत कम समय में बहुत अच्छा रचा है । हरिगीतिका छन्द में भी आपने केवल छान्दस् निपुणता ही हासिल नहीं की है , बल्कि काव्य के माधुर्य को भी बरकरार रखा है । यदि रचनाकार के पास काव्यगुण नहीं है तो छन्द को साध लेना भी कठिन है ।केवल छन्द रच देना पर्याप्त नहीं , उसमें से काव्य की सुगन्ध और भाव =रस बी भरे हों , तभी पूर्ण कविता बनती है । सफल रचना के लिए ॠता जी को मेरी हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुती,मधु जी,को बहुत२ बधाई.....
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....
मेरे पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--बेटी और पेड़-- मे click करे
ऋता जी बहुत सुन्दर शब्दावली है |
जवाब देंहटाएंरचना को शब्दों में इतनी सुंदरता से बांधा गया है कि बार बार पढने का मन करता है |
आशा
bahut hi sundar...baar baar padhne ka mn kar raha hai....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर छंद हैं...। ऋता जी अपने कार्य के प्रति बहुत समर्पित रहती हैं और उनकी यही लगन और मेहनत उनकी सुन्दर रचनाओं के रूप में सामने आती हैं...।
जवाब देंहटाएंबधाई...।
प्रियंका
ये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जवाब देंहटाएंजो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
बहुत सही बात.प्रेम को वही समझ सकता है जिसे प्रेम हुआ हो...
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ...सुन्दर शब्द कोष के साथ
जवाब देंहटाएंये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जवाब देंहटाएंजो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
वाह वाह वाह …………गज़ब का लिखा है दिल मे उतर गया ………आप तो इसी अन्दाज़ मे लिखती रहिये………आनन्द आ गया।
ऋता जी, बहुत ही सुंदर छंद लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंहरिगीतिका में जैसा प्रवाह होना चाहिए, वह इसमें है।
बधाई, इतना सुंदर सृजन के लिए।
उत्तम हरिगीतिका लिखने एवं इतनी अच्छी-अच्छी प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने के लिए बधाई|
जवाब देंहटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएं@नवीन मणि जी-धन्यवाद!
@मनके जी-धन्यवाद!
@हिमांशु सर (सहज साहित्य)-आभार!
@धीरेन्द्र सर -धन्यवाद!
@आशा जी-धन्यवाद!
@कनु जी-धन्यवाद!
@प्रियंका जी-धन्यवाद!
@निधि जी-धन्यवाद!
@अंजु जी-धन्यवाद!
@वंदना जी-आभार एवं धन्यवाद!
@महेन्द्र सर-आभार!
@रवि जी-धन्यवाद!
बहुत सुन्दर छंद हैं ऋता जी………।
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