विद्या वो भली है जो हो क्षमता के अनुसार,
मान व सम्मान भला लगे सद-रीत का|
रिश्ते हों या नाते सभी, सीमा तक लगें भले,
गायन रसीला भला, भव-हित गीत का|
शूरता लगे है भली समय की 'कविदास',
उम्र की जवानी भली, संग सच्चे मीत का|
श्रद्धा वाली भक्ति भली, सम्भव विरक्ति भली,
रोना भला मौके का व गौना भला शीत का||
समस्या पूर्ति मंच पर आगामी समस्या पूर्ति के मद्देनजर, अपने अग्रजों के परामर्श के अनुसार, अपने एक पुराने ब्रज भाषा के छन्द को हिन्दी में परिवर्तित करते हुए - अक्षर गणना विधान के एक और उदाहरण के तौर पर इसे यहाँ प्रस्तुत किया गया है| यह अक्षर गणना घनाक्षरी छन्द के प्रचलित आधुनिक प्रारूप [फॉर्मेट] के मुताबिक है:-
विद्या वो भली है जो हो
११ १ ११ १ १ १ = ८
क्षमता के अनुसार,
१११ १ ११११ = ८
मान व सम्मान भला
११ १ १११ ११ = ८
लगे सद-रीत का|
११ ११ ११ १ = ७
रिश्ते हों या नाते सभी,
११ १ १ ११ ११ = ८
सीमा तक लगें भले,
११ ११ ११ ११ = ८
गायन रसीला भला,
१११ १११ ११ = ८
भव-हित गीत का|
११ ११ ११ १ = ७
शूरता लगे है भली
१११ ११ १ ११ = ८
समय की 'कविदास',
१११ १ ११११ = ८
उम्र की जवानी भली,
११ १ १११ ११ = ८
संग सच्चे मीत का|
११ ११ ११ १ = ७
श्रद्धा वाली भक्ति भली,
११ ११ ११ ११ = ८
सम्भव विरक्ति भली,
१११ १११ ११ = ८
रोना भला मौके का व
११ ११ ११ १ १ = ८
गौना भला शीत का||
११ ११ ११ १ = ७
गौना - गवना -
ज़्यादातर लोगों को पता होगा कि पहले समय में विवाह के बाद कन्या कि विदाई नहीं होती थी| कुछ सालों बाद जब लड़का योग्य हो जाता, तब लड़की को उस के ससुराल गृहस्थ जीवन जीने के लिए भेजा जाता था| उस विदाई को ही हमारे यहाँ मथुरा में गौना यानि कि गवना कहते हैं|
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इस छन्द को वर्तमान दौर में आदरणीय सोम ठाकुर जी ने प्रचुर मात्र में लिखा और बोला / गाया है| आज कल कवि सम्मेलनों में भी इस छन्द की धूम रहती है|
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आचार्य सलिल जी के परामर्श के अनुसार इस छन्द के दूसरे चरण के पहले अर्ध भाग में थोड़ा सुधार किया है:-
पहले यूँ था:-
मान व सम्मान भी भ-
-ला है सद-रीत का
अब यूँ है:-
मान व सम्मान भला
लगे सद-रीत का
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आदरणीय तिलक भाई साब अपनी आवाज़ में इस छन्द की एक ऑडियो क्लिप यहीं इस पोस्ट पर लगाने वाले हैं, जिस से इस छन्द की रचना और गेयता को समझने में हमें और भी सुविधा होगी|
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इस छन्द को वर्तमान दौर में आदरणीय सोम ठाकुर जी ने प्रचुर मात्र में लिखा और बोला / गाया है| आज कल कवि सम्मेलनों में भी इस छन्द की धूम रहती है|
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आचार्य सलिल जी के परामर्श के अनुसार इस छन्द के दूसरे चरण के पहले अर्ध भाग में थोड़ा सुधार किया है:-
पहले यूँ था:-
मान व सम्मान भी भ-
-ला है सद-रीत का
अब यूँ है:-
मान व सम्मान भला
लगे सद-रीत का
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आदरणीय तिलक भाई साब अपनी आवाज़ में इस छन्द की एक ऑडियो क्लिप यहीं इस पोस्ट पर लगाने वाले हैं, जिस से इस छन्द की रचना और गेयता को समझने में हमें और भी सुविधा होगी|
मुझे तो यह समझ आया कि यह वर्णिक छंद है जिसमें हलन्त वाले अक्षर को गिना नहीं जाता है। क्या इस तरह का काव्य अब प्रचलन में है, मुझे नहीं लगता कि यह अब सहज स्वीकार्य हो।
जवाब देंहटाएंहॉं यमाताराजभानसलगा का पालन करते हुए वर्ण वृत्त छंद आज भी चल सकते हैं।
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमात्रा का विधान तो समझ में आ गया। पर बताएं एसे घनाक्षरी क्यों कहा जाता है, शब्द 'घनाक्षरी' का क्या अर्थ है।
जवाब देंहटाएंपहले तीन पद में तुकांत आवश्यक नहीं?
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी, धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंभई हम तो यहां सीखने आते हैं और बहुत कुछ सीख कर जा रहे हैं। ये और इस तरह के ब्लॉग और इसके चिट्ठाकार ब्लॉगजगत के ध्वज को नई ऊंचाइयां प्रदान कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंधीरे धीरे छन्द भी हृदय में उतर रहा है।
जवाब देंहटाएंआप सभी ने जिस तरह रूचि दर्शाई है, साबित होता है क़ि आप सभी वाकई साहित्य के सच्चे प्रेमी हैं| कुछ शंकाएँ सामने आई हैं, उन पर निज मति अनुसार:-
जवाब देंहटाएंघनाक्षरी छन्द में मात्रा गणना:-
यह वर्णिक छन्द है - मात्रिक नहीं|
इस में वर्णों / अक्षरों की गणना करते हैं - मात्राओं की नहीं|
घनाक्षरी छन्द में हलन्त / आधे अक्षरों की गणना बाबत:-
वर्णिक होने के कारण- चूँकि अक्षरों को गिना जाता है - लिहाजा हलन्त या आधे अक्षरों का गणना में प्रभाव नहीं पड़ता| अलबत्ता गेयता का महत्व ज़्यादा होता है|
घनाक्षरी छन्द के चरणों के अंत में तुक:-
स्वाभाविक है क़ि चारों चरणों के अंत में तुक समान होनी चाहिए|
घनाक्षरी छन्द की प्रासंगिकता:-
यह छन्द आज भी कवि सम्मेलनों में सबसे ज़्यादा बोला जाने वाला छन्द है| सोम ठाकुर जी तो इस छन्द के ख़ासे एक्सपर्ट रहे हैं| उन के अलावा कविता किरण तथा और भी कई कवि / कवियत्री इस को इस्तेमाल कर रहे हैं| ये बात दीगर है क़ि उन में से कुछ कभी कभी छन्द विधान से कुछ दूर नज़र आते हैं| पर संतोष की बात ये है क़ि वो कम से कम किसी न किसी रूप में पाठक / स्रोता माई-बाप के बीच इस विधा को जीवंत बनाए रखने में मददगार हैं| छन्द शिल्प के लिए ग्रंथ और अनुभवी व्यक्ति मौजूद हैं ही|
घनाक्षरी शब्द का क्या अर्थ है?
आचार्य सलिल जी इस बाबत हमें बताने वाले हैं| मुझसे कहीं बेहतर वो इस विषय पर प्रकाश डाल सकते हैं - इसलिए हम उन के उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं|
achchha chhnad,
जवाब देंहटाएंbehtrin jaankari
अत्यंत उपयोगी सामग्री के साथ सुंदर ढंग चलाई जा रही पिंगल शास्त्र की इस पाठशाला में मेरी रूचि स्वाभाविक रूप से बढ़ी है
जवाब देंहटाएंईश्वर करे यह मंच सदा सर्वदा ऐसे ही चलता रहे व फूले फ़ले...
हिन्दी में छंद के तीन मुख्य प्रकार मुझे समझ आये। एक तो मात्रिक जो कि प्रत्येक चरण में मात्रा की कुल संख्या पर आधारित होते हैं और चरण के अंत में लघु अथवा गुरू की आवश्यकता भी जिनमें हो सकती है। दूसरे वर्ण-वृत्त जो यमाताराजभानसलगा के क्रम से निर्धारित होते हैं और ग़ज़ल की बह्र के काफ़ी करीब होते हुए भी इसलिये भिन्न होते हैं कि इनमें जहौं गुरु आना है वहॉं दो लघु की छूट नहीं होती है जो कि ग़ज़ल में जुज़ के आधार पर उपलब्ध रहती है। तीसरी प्रकार है वर्ण छन्दों की जिनमें वर्णों की कुल संख्या निर्धारित रहती है लेकिन मात्राओं का कोई महत्व नहीं होता और मात्रा का महत्व न होने के कारण प्रकृति से साकिन स्वरविहीन वर्ण गिना नहीं जाता है।
जवाब देंहटाएंघन के कई अर्थ हैं जिनमें से 'घना' भी एक है और पत्थर तोड़ने वाले, लोहा पीटने वाला हथौड़ा भी। अब घनाक्षरी घन और अक्षर की सन्धि है या नहीं आदरणीय सलिल जी बतायेंगे।
नवीन जी!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम.
आपके सत्प्रयास का अभिनन्दन करते हुए आपको समर्पित हास्य-व्यंग्य से सराबोर पंक्तियाँ. इनका छंद कौन सा है या ये छंद हीन हैं?
सत्ता जो मिली है तो जनता को लूट खाओ,
मोह होता है बहुत घूस मिले धन का|
नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
चाल चल लूट लेना धन जन-जन का|
घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
फागुन लगे है भला, साली-समधन का|
विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
चौर्य कर्म भी भला है आँख-अंजन का||
*
घन के ४ अर्थ हैं हिन्दी में १. बादल, २. सघन/गहन, ३. लोहा पीटने का बड़ा हथौड़ा, ४. किसी अंक का उसी
में ३ बार गुणा, अंग्रेजी में क्यूब.
प्रयोग:
१. गरज-गरज घन घोर बरसते...
२. घने वन में पथ न सूझे
३. घन से पिट लोहा मोम बना
४. एक का घन एक लेकिन दो का घन है आठ क्यों?
घनानंद को घनानंद लख घनानंद है...
सुज्ञ जी!
मुझ अज्ञ पर नवीन जी ने गुरुतर भार डाल दिया है.
मुझे घनाक्षरी: में उक्त सभी अर्थों की प्रतीति होती है.
१. घनाक्षरी के सस्वर गायन से मेघ-गर्जन की सी अनुभूति होती है.
२. घनाक्षरी में शब्दों का सघन संगुफन (बुनाव) होता है जिससे सकल छंद एक इकाई प्रतीत होता है.
३. घन जिस पर पड़े उसका दमन कर देता है, घनाक्षरी भी श्रोता/पाठक के मन पर छा कर उसे अपने अनुकूल बना लेती है.
४. घनाक्षरी में नौ अक्षरी चर चरणांश की तीन आवृत्तियाँ हैं. ९+९+९+८=३५.
तिलक जी!
निवेदन है कि दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है. अन्य प्रकार भी हैं.
सराहनीय कार्य....
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार विमर्श ...
छंदबद्ध कविता की यह कार्यशाला हिंदी साहित्य को समृद्ध ही करेगी |
सलिल जी की व्याख्या से अब आधार भी समझ में आने लगा है। मैनें आडियो क्लिप का जो प्रयास किया वह सफ़ल नहीं रहा आज रात की शॉंति में फिर प्रयास करता हूँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी के अनुदेशानुसार उन की टिप्पणी के बिन्दु क्रमांक 4 को कृपया निमन्वत पढ़ें:-
जवाब देंहटाएंघनाक्षरी में चार चरण होते हैं -
आवृती ८+८+८+७ = ३१
=================================
विशेष:-
घनाक्षरी के और भी कई सारे रूप हैं, परंतु फिलहाल हम सर्व ज्ञात प्रचलित प्रारूप के बारे में बतिया रहे हैं|
पहले, एक बार सभी छंदों के आधारभूत सर्व ज्ञात प्रारूपों पर काम हो जाए, उस के बाद आप सभी के रुझान को देखते हुए विधिवत वृहद अध्ययन की तरफ भी बढ़ सकते हैं|
सलिल जी
जवाब देंहटाएंसलिल जी चाहते हैं कि हम उन के छन्द में छुपी गलती को पकड़ें|
उन से हुई बात के अनुसार, उन के छंद पर :-
"सत्ता जो मिली है तो जनता को लूट खाओ"
इस पंक्ति के पहले हिस्से में ७ और दूसरे हिस्से में ८ अक्षर होने के कारण यह सही नहीं है| होना चाहिए ८+८
मोह होता है बहुत घूस मिले धन का|
छन्द विधान के हिसाब से यह सही है ८+७, पर आप तो ऐसे नहीं है श्रीमान
नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
८+८ एक्यूरेट, यही चल रहा है आजकल
चाल चल लूट लेना धन जन-जन का|
८+७ सही है सर जी
अब तो हिंदुस्तान की जनता भी आदती हो गई है
घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
८+८ बिलकुल सही श्रीमान - मेरा मतलब छन्द विधान| बाकी बात सही है या नहीं एक बार हमारी ताई जी से पूछ के बताता हूँ|
फागुन लगे है भला, साली-समधन का|
८+७ छन्द विधान के साथ साथ आप का तजुरबा भी एकदम फिट्टम फिट्ट है आचार्य जी
विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
८+८ सही - जय बम भोले - जय महाकाल
चौर्य कर्म भी भला है आँख-अंजन का||
८+६ - ये गलत है सर जी - दूसरे हिस्से में आप ने ६ अक्षर लिए हैं, जबकि होने चाहिए ७|
दो प्रस्तावित सुधारों के उपरांत, निज मति अनुसार - यह चर्चित घनाक्षरी छन्द हुआ| यदि आप के अनुसार हमारे समझने में कोई त्रुटि हो तो सुधार करने की कृपा करें|
लो आप की आज्ञा का पालन हो गया
उपयोगी और सुंदर जानकारी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसबैय्या के बारे में बहुत बढ़िया ढंग से समझाया है आपने।
जवाब देंहटाएंप्रियवर नवीन जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सर्वप्रथम छंद के भले के लिए आप द्वारा किए जा रहे बहुत अच्छे कार्य के लिए साधुवाद !
अब कुछ बात करें -
इस वार्णिक छंद के साथ मेरा प्रथम परिचय मनहरण कवित्त के रूप में ही हुआ ।
बाद में पाया कि इसे घनाक्षरी भी कहते हैं अधिकांशतः कवि सम्मेलनों के कवि और रसिक श्रोता ।
…और ज़्यादा चारों ओर के रचनाकारों से संपृक्त हुआ तो लगा कि बहुत से लोग मनहरण कवित्त नाम से परिचित भी नहीं ।
मनहरण कवित्त के लिए जो मैं जानता हूं उसके अनुसार
* यह छंद चार चरणों का होता है ।
* प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं ।
* हर चरण दो पंक्तियों में लिखा जाता है ।
* हर चरण में पहले 16 और फिर 15 के बाद यति का नियम है ।
कभी कभी यति का क्रम 8-8-8-7 वर्ण भी होता है ।
# अर्थात् … यति के क्रम में 8-8-8-7 वर्ण की अनिवार्यता नहीं ! #
निस्संदेह इस क्रम को व्यवहार में ले'कर रचे गए कवित्त को विशिष्ट माना जा सकता है ।
एक कवित्त का उदाहरण देखें -
पात भरी सहरी सकल सुत बारे-बारे ,
केवट की जाति कछु वेद न पढ़ाइहौं ।
सब परिवार मेरो याहि लगि राजाजू , हौं ,
दीन वित्तहीन कैसे दूसरी गढ़ाइहौं ॥
गौतम की घरनी ज्यों तरनी तरैगी मोरी,
प्रभु सों निषाद ह्वै कै बाद न बढ़ाइहौं ।
तुलसी के इस राम रावरै सौ सांची कहौं ,
बिना पग धोये नाथ ! नाव न चढ़ाइहौं ॥
अब यहां यति की स्थिति देखें
# पात भरी सहरी ,सकल सुत बारे-बारे ,
1 1 1 1 1 1 1, 1 1 1 1 1 1 1 1 1 ,
अर्थात् 7-9 पर यति है ।
सकल को इधर लें तो यति क्रम 10-6 हो जाता है जो हर हाल में त्रुटिपूर्ण है ।
एक अन्य कवित्त का उदाहरण प्रस्तुत है -
हाथिन सों हाथी मारे घोड़े घोड़े सों संहारे ,
रथनि सों रथ बिदरनि बलवान की ।
चंचल चपेट चोट चरन चकोट चाहैं ,
हहरानी फौजें महारानी जातुधान की ॥
बार-बार सेवक-सराहना करन राम ,
तुलसी सराहे रीति साहेब सुजान की ।
लांबी लूम लसत लपेटि पटकत भट ,
देखो देखो , लखन ! करनि हनुमान की ॥
इसमें यति का हाल जानें
# रथनि सों रथ, बिदरनि बलवान की ।
111111,111111111,
अर्थात् यति क्रम 6-9
# हहरानी फौजें , महारानी जातुधान की ।
111111,111111111
अर्थात् यति क्रम 6-9
# बार-बार सेवक ,-सराहना करन राम ,
1111111,111111111,
अर्थात् यति क्रम 7-9
# लांबी लूम लसत , लपेटि पटकत भट ,
1111111,111111111,
अर्थात् यति क्रम 7-9
# देखो देखो , लखन ! करनि हनुमान की ,
1111111,11111111,
सारांश यह कि 8-8-8-7 की यति योजना नहीं निभती प्रतीत हो रही,
लेकिन 16-15 हर हाल में आता है ।
आशा है इन उदाहरणों से गुणीजन लाभान्वित होंगे ।
अतएव मेरा मंतव्य यह है कि
परम आदरणीय आचार्य सलिल जी के परामर्श के बाद
नवीन जी द्वारा शुरू में लिखे गए छन्द के दूसरे चरण के पहले अर्ध भाग में
थोड़ा सुधार किया गया वह पहले भी ग़लत नहीं था ,
अब भी ग़लत नहीं है । … क्योंकि यति क्रम 16-15 का ही विधान है ।
गुणीजन अपनी राय रखेंगे तो हमें उचित निष्कर्ष पर पहुंचने में सुविधा रहेगी ।
सादर
राजेन्द्र स्वर्णकार
… निम्नांकित उदाहरण में यति क्रम जो छूट गया वह यूं है-
जवाब देंहटाएं# देखो देखो , लखन ! करनि हनुमान की ,
1111111,11111111,
अर्थात् यति क्रम 7-8
काफी कन्फ़्यूजन हो गया है गुणीजनों से निवेदन है कि वे ससंदर्भ सोदाहरण व्याख्या प्रस्तुत करें। जिससे नए लोगों का उचित मार्गदर्शन हो।
जवाब देंहटाएंविचार मंथन जरूरी होता है| आप सभी की सक्रियता से हमारे उत्साह में अभिवृद्धि हुई है|
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट समस्या पूर्ति मंच पर जो आएगी, वहाँ इस चर्चा का सारांश रहेगा, और समस्या पूर्ति की पंक्ति भी घोषित की जाएगी|
यदि आप के दिमाग में कोई पंक्ति बन रही हो तो कृपया navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें
राजेन्द्र भाई और तिलक राज जी दोनों प्रयास कर रहे हैं औडियो क्लिप भेजने का, यदि संभव हुआ तो उस पोस्ट में इन औडियो क्लिप्स को भी जोड़ा जाएगा
तब तक के लिए घनाक्षरी छन्द के बारे में बस इतना नोट कर लें
प्राचीन प्रारूप के अनुसार १६+१५=३१ अक्षर
प्रचलित आधुनिक प्रारूप के अनुसार ८+८+८+७=३१ अक्षर
बहुत अच्छा प्रयास और जानकारी भी मिली...
जवाब देंहटाएंयह एक ऐतिहासिक क्षण है। आप वह कर रहे हैं जो सदा याद रखा जाएगा।
जवाब देंहटाएंआप जानकारी देकर एक समाधान दे रहे हैं और वह भी मुफ़्त। इससे आपको भी ख़ुशी मिलती होगी और आपसे जानकारी पाने वालों को भी।
धन्यवाद !
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
षडऋतु वर्णन : मनहरण घनाक्षरी/कवित्त छंद
जवाब देंहटाएंसंजीव 'सलिल'
*
वर्षा :
गरज-बरस मेघ, धरती का ताप हर, बिजली गिराता जल, देता हरषाता है.
शरद:
हरी चादर ओढ़ भू, लाज से सँकुचती है, देख रवि किरण से, संदेशा पठाता है.
शिशिर:
प्रीत भीत हो तो शीत, हौसलों पर बर्फ की, चादर बिछाता फिर, ठेंगा दिखलाता है.
हेमन्त :
प्यार हार नहीं मान, कुछ करने की ठान, दरीचे से झाँक-झाँक, झलक दिखाता है.
वसंत :
रति-रतिनाथ साथ, हाथों में लेकर हाथ, तन-मन में उमंग, नित नव जगाता है.
ग्रीष्म :
देख क्रुद्ध होता सूर्य, खिलते पलाश सम, आसमान से गरम, धूप बरसाता है..
*
मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त
जवाब देंहटाएंसंजीव 'सलिल'
*
मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.
इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घंक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक/श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है.
घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है. ८-८-८-७ की बंदिश कई बार शब्द संयोजन को कठिन बना देती है. किसी भाव विशेष को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होने पर कवि १६-१५ की बंदिश अपनाते रहे हैं. इसमें आधुनिक और प्राचीन जैसा कुछ नहीं है. यह कवि के चयन पर निर्भर है. १६-१५ करने पर ८ अक्षरी चरणांश की ३ आवृत्तियाँ नहीं हो पातीं.
मेरे मत में इस विषय पर भ्रम या किसी एक को चुनने जैसी कोई स्थिति नहीं है. कवि शिल्पगत शुद्धता को प्राथमिकता देना चाहेगा तो शब्द-चयन की सीमा में भाव की अभिव्यक्ति करनी होगी जो समय और श्रम-साध्य है. कवि अपने भावों को प्रधानता देना चाहे और उसे ८-८-८-७ की शब्द सीमा में न कर सके तो वह १६-१५ की छूट लेता है.
सोचने का बिंदु यह है कि यदि १६-१५ में भी भाव अभिव्यक्ति में बाधा हो तो क्या हर पंक्ति में १६+१५=३१ अक्षर होने और १६ के बाद यति (विराम) न होने पर भी उसे घनाक्षरी कहें? यदि हाँ तो फिर छन्द में बंदिश का अर्थ ही कुछ नहीं होगा. फिर छन्दबद्ध और छन्दमुक्त रचना में क्या अंतर शेष रहेगा. यदि नहीं तो फिर ८-८-८ की त्रिपदी में छूट क्यों?
उदाहरण हर तरह के अनेकों हैं. उदाहरण देने से समस्या नहीं सुलझेगी. हमें नियम को वरीयता देनी चाहिए. इसलिए मैंने प्रचालन के अनुसार कुछ त्रुटि रखते हुए रचना भेजी ताकि पाठक पढ़कर सुधारें और ऐसा न हों पर नवीन जी से अनुरोध किया कि वे सुधारें. पाठक और कवि दोनों रचनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं कि बहुधा कवि भाव को प्रमुख मानते हुए और शिल्प को गौड़ मानते हुए या आलस्य या शब्दाभाव या नियम की जानकारी के अभाव में त्रुटिपूर्ण रचना प्रचलित कर देता है जिसे थोडा सा प्रयास करने पर सही शिल्प में ढाला जा सकता है.
अतः, मनहरण घनाक्षरी छंद का शुद्ध रूप तो ८-८-८-७ ही है. ८+८, ८+७ अर्थात १६-१५, या ३१-३१-३१-३१ को शिल्पगत त्रुटियुक्त घनाक्षरी ही माँना जा सकता है. नियम तो नियम होते हैं. नियम-भंग महाकवि करे या नवोदित कवि दोष ही कहलायेगा. किन्हीं महाकवियों के या बहुत लोकप्रिय या बहुत अधिक संख्या में उदाहरण देकर गलत को सही नहीं कहा जा सकता. शेष रचना कर्म में नियम न मानने पर कोई दंड तो होता नहीं है सो हर रचनाकार अपना निर्णय लेने में स्वतंत्र है.
घनाक्षरी रचना विधान :
आठ-आठ-आठ-सात पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
वर्षा-वर्णन :
उमड़-घुमड़कर, गरज-बरसकर,
जल-थल समकर, मेघ प्रमुदित है.
मचल-मचलकर, हुलस-हुलसकर,
पुलक-पुलककर, मोर नरतित है..
कलकल,छलछल, उछल-उछलकर,
कूल-तट तोड़ निज, नाद प्रवहित है.
टर-टर, टर-टर, टेर पाठ हेर रहे,
दादुर 'सलिल' संग स्वागतरत है..
*
भारत गान :
भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम,
नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,
माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
सुंदर है स्वर्ग से भी, पावन है, भावन है,
शत्रुओं को घेर घाट मौत के उतारेंगे-
कंकर भी शंकर है, दिक्-नभ अम्बर है,
सागर-'सलिल' पग नित्य ही पखारेंगे..
*
लघु वर्ण अंत में जहाँ आए, उन कवित्तों / घनाक्षरी में 31 की बजाय 32 वर्ण लेना चाहिए|
जवाब देंहटाएंचरण चार ही होते हैं|
अगली पोस्ट समस्या पूर्ति मंच पर लगने वाली है, हम इस चर्चा को वहाँ जारी रख सकते हैं|
चर्चा को सार्थक बनाने के लिए आप सभी का साधुवाद व्यक्त करना मैं अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ| मनहर कवित्त / घनाक्षरी छन्द पर यह चर्चा अगली पोस्ट में जारी रहेगी|
मुझे औडियो क्लिप लगाने में समस्या आ रही है| क्लिप रेडी है, यदि आप में से कोई मदद कर सके, तो प्लीज मुझे पर navincchaturvedi@gmail.com लिखें|
बहुत सुन्दर...बहुत अच्छी जानकारी...
जवाब देंहटाएंआभार कैलाश शर्मा जी
जवाब देंहटाएंNAVEEN JI ,AAPKE BLOG PAR AANE SE BAHUT KUCHH
जवाब देंहटाएंSEEKHAA JAA SAKTA HAI .
पूज्यवर , वन्दन-अभिनन्दन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय व सुन्दर छंद जिसे पढकर मनप्रफुल्लित हो उठता है
जवाब देंहटाएंदुःख दर्द में हो साथ, हमेशा बढ़ाओ हाथ,
संकट के काल में ही, भली देखरेख हो।।
पलभर के ही लिये, मन में मुटाव रखो,
अंततः सोचना पर, भाई भाई एक हो।।
एक रहो नेक रहो, मिलके अनेक रहो,
देश भर चाहे संघ, बने जो अनेक हो।।
अनेकता में एकता, हो भिन्नता में भव्यता,
प्रान्त वेश भिन्न पर, दिल रखो नेक हो।।
शक्ति कलयुग में ही, कहते संगठन की,
संगठित होके सब, एकता दिखाइए।।
डराता डराने वाला, डरना कभी भी नहीं,
डरा डरा डर को ही, डरा के भगाइए।।
बाहर अभेद दिखो, चाहे मन भेद रखो,
नहीं भेद भेदियों को, तुम बतलाइये।।
खींच लेने का ही पैर, प्रावधान रखो नहीं,
सावधान हरदम, सभी को कराइये।।