आहत अनुबन्धों में उलझे
कल का उपसंहार
मुबारक।
एक बार फिर मेरे प्रियतम
रंगों का त्यौहार
मुबारक।
चलो बढ़ाओ हाथ, उठालो
दुहरा कर लिखने का
बीड़ा।
किसी द्रौपदी के आँचल
पर
नये महाभारत की पीड़ा।
कर्म बोध की शर शैया
पर
हम तो मर कर भी जी लेंगे।
दुःशासन दे अगर तुम्हें
नवजीवन का उपहार मुबारक।
धरती के सच को झुठला कर
सपने सजा लिये अम्बर
में।
हो बैठे अपनों की खातिर
परदेसी अपने ही घर में।
थके-थके से इस चौखट तक
जब आये तुम लगे अतिथि से।
सहज हुए तो आज यहीं
गृहस्वामी सा व्यवहार मुबारक।
अभी और इतिहास
बनेंगे
यह अन्तिम विस्तार नहीं है।
यही आखिरी जीत नहीं है
यही आखिरी हार नहीं है।
सोचो कौन जीत कर हारा
कौन हार कर जीता बाजी।
तुम्हें तुम्हारी जीत मुबारक
हमें हमारी हार
मुबारक।
वाह ... मधुर गीत ...
जवाब देंहटाएंमधुरं मधुरं....
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