है दसूं दिश अमूझो घणो श्हैर में
म्हैं रैवूं बैवतो आपरी लै’र
में
दसों दिशाओं में दमघोटू गुम्फन है इस शहर में
(लेकिन) मैं अपनी ही मौज में (इन सबसे अछूता) घूमता रहता हूं
भीड़ मांहीं मुळकता म्हनैं बै मिळ्या
ले लियो म्हैं अमी रौ मज़ो ज्हैर में
भीड़ में मुझे मुस्कुराती हुई वे मिल गईं
मैंने ज़हर में भी अमृत का आनंद पा लिया
कोई अणजाण बाथां में जद आयग्यो
भेद रैयो कठै आपणै-गैर में
जब कोई अपरिचित बाहों में समा गया तो
अपने-पराये का भेद कहां रहा
भाव कंवळा सवाया हुया प्रीत में
ज्यूं कै बिरखा रौ पाणी मिळ्यो न्हैर में
प्यार में कोमल भावों में श्रीवृद्धि हुई
मानो नहर में वर्षा का शुद्ध जल मिल गया
रीस रै मिस लड़ण’ बै घरै आयग्या
नीं इंयां धन कियो बै म्हनैं म्हैर में
गुस्से के बहाने झगड़ने वे घर आ गईं
मेहरबां हो'कर कभी उन्होंने ऐसे धन्य नहीं किया
आवो बैठो , करो बात मीठी कोई
कैवै राजिंद कांईं पड़्यो बैर में
आओ बैठो , कुछ मीठी बातें करें
राजेन्द्र कहता है कि बैर-विरोध में पड़ा क्या है
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
:- राजेन्द्र स्वर्णकार
:- राजेन्द्र स्वर्णकार
गुस्से के बहाने झगड़ने वे घर आ गईं
जवाब देंहटाएंमेहरबां हो'कर कभी उन्होंने ऐसे धन्य नहीं किया
:-)
क्या बात
क्या बात
क्या बात
जब बात यहाँ तक आ गयी तो आपका ये कहना भी मुनासिब ही है.....
"आओ बैठो, कुछ मीठी बातें करें...."
सुभान अल्लाह
सुभान अल्लाह
☆★☆★☆
आदरणीया
आपने भी कम धन्य नहीं किया
:)
हृदय से आभारी हूं...
मंगलकामनाओं सहित...
आ. राजेंद्र भाईसाहब
जवाब देंहटाएंघणा मान सूं जै चारभुजा री
आपरी मायेड़ बोली री ग़ज़ल बांच र मजो आग्यो
भाव कंवळा सवाया हुया प्रीत में
ज्यूं कै बिरखा रौ पाणी मिळ्यो न्हैर में
काईं कैणी ,मतलो अऱ ओ मिसरो तो सवायो है |हिवडे री उन्ड़ाई सूं आपने बधाई अरज है
आपरो हेतालू
'खुरशीद' खैराड़ी
☆★☆★☆
आदरजोग भाई खुर्शीद खैराडी जी
घणी खम्मा
सिलाम
घणैमान रामाश्यामा
:)
आपनैं म्हारी ग़ज़ल दाय आई , औ म्हारौ सौभाग्य है...
आपरौ म्हारै दोन्यूं ब्लॉगां पर भी घणैमान स्वागत है , ज़रूर पधारजो सा...
ऐ रैया लिंक -
शस्वरं
ओळ्यूं मरुधर देश री...
मोकळी मंगळकामनावां सागै...