सभी साहित्यरसिकों का सादर अभिवादन
शायद आप को भी आश्चर्य न होगा क्योंकि आप ने भी अपने बचपन में अपने घर-परिवार-पड़ौस में ऐसे कुछ एक पुरुषों-महिलाओं को अवश्य ही देखा-सुना होगा जो बातों-बातों में ही दोहे गढ़ देते थे। उस से पहले भी अगर ग़ौर करें तो कहा जाता है कि हिंदुस्तान में तोते संस्कृत के श्लोक बोलते थे, जो आदत डलवा दी जाये वो आदत पड़ जाती है। दोहे हमारी धमनियों में हैं बस अन्तर सिर्फ़ इतना ही है कि हम [आज के इंसान] उपदेशक या विदूषक या निंदक मात्र हो कर रह गए हैं। कोमल भावनाओं को कैसे पहिचाना जाये इस का पैमाना हम से विलग हो गया है। तकलीफ़ होती क्या है अस्ल में, दरअस्ल हमें पता ही नहीं है। छुट-पुट झटकों को भी बड़ी दुर्घटना की तरह परोसते माध्यमों को दोष देने की बजाय बेहतर है कि हम ख़ुद ही आत्म-चिन्तन करें। समस्या-पूर्ति मंच के दूसरे चक्र के पहले आयोजन का उद्देश्य यही था और अब तो इसे अगले आयोजनों में आगे बढ़ाना [सब की सहमति के साथ] और भी ज़ियादा जुरुरी लग रहा है।
वर्तमान आयोजन की 10 वीं पोस्ट में पढ़ते हैं मंच के 39वें सहभागी संजय मिश्रा 'हबीब' के शानदार दोहे:-
संजय मिश्रा 'हबीब' |
ठेस-टीस
मैया सपने कातती, तकली बन नौ माह
उम्मीद
हर मन में आशा यही, तम जायेगा हार
सच्चाई की रौशनी, पायेगी विस्तार
सौन्दर्य
कैसा मधुरिम सुर लगा, जंगल गाये गीत
हरी भरी सी संपदा, सम्मुख स्वर्ग प्रतीत
आश्चर्य
कदम कदम आघात है, झूठ खड़ा हर राह
सत्य कलंकित हो रहा, 'हमें नहीं परवाह'
हास्य-व्यंग्य
संसद में खेले सभी, हिल-मिल कर फ़ुटबाल
लोकपाल बिल बन गया, अब जी का जंजाल
विरोधाभास
बच्चे मिहनत कर रहे, सपने लेकर हाथ
किस्मत की देवी गई, आरक्षण के साथ
सीख
निद्रा तक ही रख नहीं, सपनों का संसार
नींद चुरा ले, 'ख्वाब', जो, 'उस' से कर ले प्यार
संजय भाई ने एकाधिक बार अपने दोहों का पोस्ट-मार्टम ख़ुद किया है। नई बातों को दिये गये संकेतों के इर्द-गिर्द बुनने का सार्थक और प्रभावशाली प्रयास। वरच्युअल वर्ल्ड में हम सभी को नहीं जानते, जानते हैं तो उन के विचारों को - उन के प्रयासों को। कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी, परन्तु आने वाले आयोजनों में हम संजय भाई से और भी बहुत कुछ की उम्मीद रख सकेंगे, ऐसा feel हो रहा है।
आप इन दोहों का आनंद लें, उत्साह-वर्धन सहित आकलन भी करें तथा हम इस आयोजन की समापन पोस्ट की तैयारी करते हैं।
बतौर रिवाज़ दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए रिमाइन्डर:-
आप इन दोहों का आनंद लें, उत्साह-वर्धन सहित आकलन भी करें तथा हम इस आयोजन की समापन पोस्ट की तैयारी करते हैं।
बतौर रिवाज़ दिवाली स्पेशल पोस्ट के लिए रिमाइन्डर:-
- संभवत: अपने घर की भाषा / बोली में दोहे रचें
- दिवाली विषय केंद्र में होना चाहिये, यानि दिवाली शब्द भले ही दोहे में न आये, परंतु दोहा पढ़ कर प्रतीत होना चाहिये कि बात दिवाली की या तत्संबंधित विषयवस्तु की ही हो रही है - भाव - कथ्य आप की रुचि अनुसार
- प्रत्येक रचनाधर्मी कम से कम एक [1] और अधिक से अधिक [3] दोहे प्रस्तुत करें, मंच की अपेक्षा है कि आप अपने तमाम दोहों में से छांट कर उत्तम दोहे ही भेजें
- दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर अपनी डिटेल, फोटो, भाषा / बोली / प्रांत का उल्लेख करते हुये 5 नवंबर तक भेजने की कृपा करें
- यदि आप को हमारा भाषा / बोलियों के सम्मान में किया जा रहा यह दूसरा प्रयास उचित लगे, तो हमारा निवेदन योग्य व्यक्तियों तक पहुंचाने की कृपा करें
!जय माँ शारदे!
bahut acche dohe.....
जवाब देंहटाएंkhoobsurat dohe..abhar
जवाब देंहटाएंअति-सुन्दर दोहे --- हाँ विरोधाभास में मुझे विरोध का कुछ कम आभास हो रहा है ...मेहनत व आरक्षण मेरे विचार से विरोधाभासी नहीं हैं ...
जवाब देंहटाएंठेस –ह्रदय को द्रवित करने वाले दोहे हैं साथ ही गहरा आघात पहुँचाने वाली बातें अभिव्यक्त हो रही है
जवाब देंहटाएंह्रदय अश्रु मय हो गए,लागी गहरी ठेस
टुकड़ा दिल का छोड़ के,बदले अपना भेष
आदरणीय भाई संजय मिश्र हबीब जी हार्दिक बधाई
उम्मीद –सर्वभौमिक सच्चाई वाली बात है दोहों में प्रदर्शित उम्मीद
हर व्यक्ति की उम्मीद है
हर कोई है चाहता, ऐसा जगे प्रकाश
सच्चाई हो सब तरफ,झूठों का हो नाश
सौंदर्य –दोहों में प्राकृतिक सौन्दर्यता की प्रस्तुति उम्दा है
ऐसा चित्रण मन को प्रफ्फुलित कर रहा है
आश्चर्य- आश्चर्य के रूप में बहुत ही गहरी बातें कही गई है
सभी तरफ अन्याय है, झूठों का है राज
फिर भी हम है कर रहे, हमको उनपे नाज
हास्य व्यंग –निश्चित ही हंसने को मजबूर कर रहे हैं
विरोधाभास के रूप में कटु सच को सामने लाने का अच्छा प्रयास
सपना बन कर रह गई, सपनों वाली बात
सपने सारे छीनते, वर्ण भेद जज्बात
सीख- बहुत ही उम्दा किस्म की सीख
अलग हट कर बहुत ही सुन्दर लाजवाब है
आदरणीय संजय भाई ह्रदय से बधाई स्वीकारें
ऐसा चित्रण मन को प्रफ्फुलित कर रहा है
जवाब देंहटाएंआश्चर्य- आश्चर्य के रूप में बहुत ही गहरी बातें कही गई है
सभी तरफ अन्याय है, झूठों का है राज
फिर भी हम है कह रहे, हमको उनपे नाज
हास्य व्यंग –निश्चित ही हंसने को मजबूर कर रहे हैं
विरोधाभास के रूप में कटु सच को सामने लाने का अच्छा प्रयास
सपना बन कर रह गई, सपनों वाली बात
सपने सारे छीनते, वर्ण भेद जज्बात
सीख- बहुत ही उम्दा किस्म की सीख
अलग हट कर बहुत ही सुन्दर लाजवाब है
आदरणीय संजय भाई ह्रदय से बधाई स्वीकारें
सटीक व सार्थक दोहों की प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंआ. संजय जी आपको अनेकों सुभेछओं सहित हार्दिक बधाई
ऊपर प्रदर्शित मेरी प्रतिक्रिया से कुछ अंश लुप्त हो गए थे अतः पुनः ....
जवाब देंहटाएंठेस –ह्रदय को द्रवित करने वाले दोहे हैं साथ ही गहरा आघात पहुँचाने वाली बातें अभिव्यक्त हो रही है
ह्रदय अश्रु मय हो गए,लागी गहरी ठेस
टुकड़ा दिल का छोड़ के,बदले अपना भेष
आदरणीय भाई संजय मिश्र हबीब जी हार्दिक बधाई
उम्मीद –सर्वभौमिक सच्चाई वाली बात है दोहों में प्रदर्शित उम्मीद
हर व्यक्ति की उम्मीद है
हर कोई है चाहता, ऐसा जगे प्रकाश
सच्चाई हो सब तरफ,झूठों का हो नाश
सौंदर्य –दोहों में प्राकृतिक सौन्दर्यता की प्रस्तुति उम्दा है
ऐसा चित्रण मन को प्रफ्फुलित कर रहा है
बहुत सुंदर दोहे हैं ..
जवाब देंहटाएंसंजय जी को बधाई एवं शुभकामनाएं
सभी उत्कृष्ट दोहों के लिए संजय जी को सादर बधाई !!
जवाब देंहटाएंसीख वाला दोहा बहुत ही अच्छा लगा...एकदम अलग हटकर!!
संजय जी के सभी दोहे प्रीतिकर एवँ सार्थक हैं ! मन के भावों को बड़ी कुशलता के साथ अभिव्यक्ति दी है उन्होंने !
जवाब देंहटाएंठेस और विरोधाभास वाले दोहे मन को ज्यादा ही छू गए ... सभी दोहे बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहों का समूह..
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों से सजे, दोहे रचें हबीब,
जवाब देंहटाएंअपनापन ऐसा बढ़ा, हम आ गए करीब।
शुभकामनाएं, हबीब जी।
सुंदर भावों से सजे, दोहे रचें हबीब,
जवाब देंहटाएंअपनापन ऐसा बढ़ा, हम आ गए करीब।
शुभकामनाएं, हबीब जी।
सुंदर दोहों के लिये शुभकामनाएं, हबीब जी को,,,,
जवाब देंहटाएंनवीन जी,,मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है,,,,,
मै तो आपका फालोवर पहले से ही हूँ,,,आप भी मेरे फालोवर बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
संजय जी के सभी दोहे अच्छे हैं, कुछ दोहे तो बहुत अच्छे बन पड़े हैं।
जवाब देंहटाएंकहावत है कि किस्मत भी मेहनत करने वालों का साथ देती है लेकिन आज आरक्षण की वजह से किस्मत मेहनत करने वालों का साथ नहीं देती। स्पष्ट विरोधाभास है। बहुत बहुत बधाई संजय जी को इन शानादार दोहों के लिए।
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बढ़िया बहुरंगी दोहे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे दोहे प्रस्तुत किये हैं आपने ...
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत बढ़िया लगे दोहे ....
जवाब देंहटाएंसंजय मिश्रा ने लिखे, दोहे कितने खास।
जवाब देंहटाएंसरस्वती जी का रहे, सबके उर में वास।।
संजय जी के दोहों में खरापन है और अभिव्यक्ति की स्पष्टता । दोहे सराहनीय हैं ।
जवाब देंहटाएंकमल
ठेस-टीस
जवाब देंहटाएंमैया सपने कातती, तकली बन नौ माह
बिटवा दिखला दे उसे, वृद्धाश्रम की राह
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जीवन भर काता बहुत,उलझ गया वह सूत
श्रवण समझती थी जिसे,निकला वही कपूत
उम्मीद
हर मन में आशा यही, तम जायेगा हार
सच्चाई की रौशनी, पायेगी विस्तार
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विपट घनेरी रात में,ज्यों नन्हें खद्योत
हर मन में जलती रही,आशाओं की ज्योत
सौन्दर्य
जवाब देंहटाएंकैसा मधुरिम सुर लगा, जंगल गाये गीत
हरी भरी सी संपदा, सम्मुख स्वर्ग प्रतीत
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हरी भरी वन-सम्पदा,मन मोहे खग गान
यहीं स्वर्ग है मानिये ,यहीं बसें भगवान |
आश्चर्य
कदम कदम आघात है, झूठ खड़ा हर राह
सत्य कलंकित हो रहा, 'हमें नहीं परवाह
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मिले चक्षु देखें नहीं,कंठ मिला पर मौन
सबके सब भयभीत हैं,सत्य कहेगा कौन |
सीख
जवाब देंहटाएंनिद्रा तक ही रख नहीं, सपनों का संसार
नींद चुरा ले, 'ख्वाब', जो, 'उस' से कर ले प्यार
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नींद चुरा ले ख्वाब जो,वे होते साकार
शेष स्वप्न रंगीन हैं,कब लाते भिनसार ||
सभी दोहे सामयिक है और ज़िंदगी के बहुत करीब...
जवाब देंहटाएंबच्चे मिहनत कर रहे, सपने लेकर हाथ
किस्मत की देवी गई, आरक्षण के साथ
संजय जी को बधाई और शुभकामनाएँ.