सभी साहित्य रसिकों का पुन: सादर अभिवादन और होली की अग्रिम शुभकामनाएँ
आज के इस सत्र में सिर्फ़ एक ही कवि को पढ़ेंगे हम लोग| इनका परिचय देना सूर्य को दिया दिखाने के समान होगा| वो क्या हैं, सभी जानते हैं, और उन्होने क्या भेजा है आइए अब पढ़ते हैं उसे|
1
बरसाने बरसन लगी, नौ मन केसर धार ।
ब्रज मंडल में आ गया, होली का त्यौहार ।।
2
लाल हरी नीली हुई, नखरैली गुलनार ।
रंग-रँगीली कर गया, होली का त्यौहार ।।
3
आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद ।
साजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद ।।
4
कस के डस के जीत ली, रँग रसिया ने रार ।
होली ही हिम्मत हुई, होली ही हथियार ।।
5
हो ली, हो ली, हो ही ली, होनी थी जो बात ।
हौले से हँसली हँसी, कल फागुन की रात ।।
6
होली पे घर आ गया, साजणियो भरतार ।
कंचन काया की कली, किलक हुई कचनार ।।
7
केसरिया बालम लगा, हँस गोरी के अंग ।
गोरी तो केसर हुई, साँवरिया बेरंग ।।
8
देह गुलाबी कर गया, फागुन का उपहार ।
साँवरिया बेशर्म है, भली करे करतार ।।
9
बिरहन को याद आ रहा, साजन का भुजपाश।
अगन लगाये देह में, बन में खिला पलाश ।।
10
साँवरिया रँगरेज ने, की रँगरेजी खूब ।
फागुन की रैना हुई, रँग में डूबम डूब।।
11
सतरंगी सी देह पर, चूनर है पचरंग ।
तन में बजती बाँसुरी, मन में बजे मृदंग ।।
12
जवाकुसुम के फूल से, डोरे पड़ गये नैन ।
सुर्खी है बतला रही, मनवा है बेचैन ।।
13
बरजोरी कर लिख गया, प्रीत रंग से छंद ।
ऊपर से रूठी दिखे, अंदर है आनंद ।।
14
होली में अबके हुआ, बड़ा अजूबा काम ।
साँवरिया गोरा हुआ, गोरी हो गई श्याम ।।
15
कंचन घट केशर घुली, चंदन डाली गंध ।
आ जाये जो साँवरा, हो जाये आनंद ।।
16
घर से निकली साँवरी, देख देख चहुँ ओर ।
चुपके रंग लगा गया, इक छैला बरजोर ।।
17
बरजोरी कान्हा करे, राधा भागी जाय ।
बृजमंडल में डोलता, फागुन है गन्नाय ।।
18
होरी में इत उत लगी, दो अधरन की छाप ।
सखियाँ छेड़ें घेर कर, किसका है ये पाप ।।
19
कैसो रँग डारो पिया, सगरी हो गई लाल ।
किस नदिया में धोऊँ अब, जाऊँ अब किस ताल ।।
20
फागुन है सर पर चढ़ा, तिस पर दूजी भाँग ।
उस पे ढोलक भी बजे, धिक धा धा, धिक ताँग ।।
21
हौले हौले रँग पिया, कोमल कोमल गात ।
काहे की जल्दी तुझे, दूर अभी परभात ।।
22
फगुआ की मस्ती चढ़ी, मनुआ हुआ मलंग ।
तीन चीज़ हैं सूझतीं, रंग, भंग और चंग ।।
वाह वाह पंकज भाई वाह वाह वाह|
एक नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं पूरे के पूरे २२ रंगों में सजे २२ दोहे| वो भी एक से बढ़ कर एक| कविता, आलेख, कहानी वग़ैरह तो पढ़ी थीं आपकी और आज आप के दोहे भी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| मैं तो निशब्द हूँ आप की कलम की इस कारीगरी पर| आपकी लेखनी का शत-शत अभिनन्दन| आपने इस मंच से जुड़ कर इस साहित्यिक प्रयास को और भी गति प्रदान कर दी है| आगे भी आप के साहित्यिक सहयोग के मुंतज़िर रहेंगे हम|
अत्यंत सुन्दर रचना है.
जवाब देंहटाएंशब्दों का चयन, भावों की गहनता और मृदुल प्रवाह के साथ बृज का तड़का.
वाह वाह.
पंकज जी को इसके लिए हार्दिक बधाई.
राकेश तिवारी
वाह ! सभी दोहे फागुन के रसरंग में सराबोर .......मन आनंदित हो गया इन्हें पढ़कर |
जवाब देंहटाएंहोली के त्यौहार की, धूम मची चहूँ ओर |
जवाब देंहटाएंदोहे पढ़ कर आपके, मन हो गया विभोर ||
बहुत खूब ! सभी दोहे होली के रंग से सराबोर..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे
जवाब देंहटाएंसारे के सारे होली के रंग में सराबोर
गुरुदेव, आपके तो हर रंग निराले हैं
:) :) :).... अग्रज जब रंग में हो तो बहनों को मुस्कुरा कर दूसरा कोन देख लेना चाहिये....!:D
जवाब देंहटाएं@कंचन
जवाब देंहटाएंबहन, खास कर छोटी वाली बहन भी भाइयों को रंगों से नहला सकती है.............
आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद ।
जवाब देंहटाएंसाजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद ।।
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हो ली, हो ली, हो ही ली, होनी थी जो बात ।
हौले से हँसली हँसी, कल फागुन की रात ।।
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सतरंगी सी देह पर, चूनर है पचरंग ।
तन में बजती बाँसुरी, मन में बजे मृदंग
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होली में अबके हुआ, बड़ा अजूबा काम ।
साँवरिया गोरा हुआ, गोरी हो गई श्याम ।।
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फागुन है सर पर चढ़ा, तिस पर दूजी भाँग ।
उस पे ढोलक भी बजे, धिक धा धा, धिक ताँग ।।
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हौले हौले रँग पिया, कोमल कोमल गात ।
काहे की जल्दी तुझे, दूर अभी परभात ।।
वाह...वाह...वाह...अद्भुत...माने कमाल के दोहे...ऐसे दोहे जो पहले कभी नहीं पढ़े...हर दोहा होली की मस्ती की रहनुमाई कर रहा है...एक से बढ़ कर एक...ऐसी विलक्षण प्रतिभा है तभी पंकज जी ब्लॉग जगत में गुरु कहलाते हैं...तभी उनकी कहानियां, उपन्यास ज्ञान पीठ द्वारा पुरुस्कृत किये जाते हैं...सच बात तो ये है के ऐसे दोहे कोई स्वयं नहीं लिख सकता, ऐसे दोहे माँ सरस्वती स्वयं अपने लाडलों के हाथ पकड़ कर लिखवाती है...परमानन्द को प्राप्त हुए हम तो इन्हें पढ़ कर...आपके आभारी हैं जो आपने पंकज जी इस विधा से भी हमें अवगत करवाया...
नीरज
आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद ।
जवाब देंहटाएंसाजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद ।।
नहुत खूबी से कहा है आपने
वाह वाह वाह !इन्हें कहते हैं दोहे!----
जवाब देंहटाएंआंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद ।
साजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद ।।
हो ली, हो ली, हो ही ली, होनी थी जो बात ।
हौले से हँसली हँसी, कल फागुन की रात ।।
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सतरंगी सी देह पर, चूनर है पचरंग ।
तन में बजती बाँसुरी, मन में बजे मृदंग
फागुन है सर पर चढ़ा, तिस पर दूजी भाँग ।
उस पे ढोलक भी बजे, धिक धा धा, धिक ताँग ।
सभी दोहे पढ कर हमे तो बिना पीये ही भाँग चढ गयी। अखिर गुरूैऐसे ही नही कहते लोग हर विधा मे अब्बल एक एक दोहे पर हजारों लाखों बधाईयाँ सुबीर जी को असल मे हम जैसे लोग तो चंद शब्दों से खेलते हैं मगर सुबीर जी की शब्द साधना को नमन है। नवीन जी बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद।
भाई वाह, प्रशंसक तो पहले से ही थे हम सुबीर जी के आज तो गजब हो गया, क्या दोहे कहे हैं। मानना पड़ेगा लेखनी में अपार धार है सुबीर जी के। बहुत बहुत बधाई नवीन भाई को जो इतने शानदार दोहे पढ़वाए।
जवाब देंहटाएंPANKAJ SUBEER KE PREM MEIN RACHE - BASE DOHON
जवाब देंहटाएंSE HOLI SAARTHAK HO GAYEE HAI .
गुरूदेव के इस रंग और तेवर से थोड़ा बहुत तो परिचय है मेरा...लेकिन अभी तो फिलहाल चारो खाने चित्त....सबको सेव किया जा रहा है अभी परसों गाँव मे सुनाने के वास्ते....
जवाब देंहटाएंकाश की ये ब्लौग का पब्लिक फोरम न होता, फिर देखते नवीन जी आप गुरूदेव के तेवर..... उफ़्फ़!!!!
@गौतम
जवाब देंहटाएंमैं समझ सकता हूँ गौतम भैया| खग जानें खगही की भाषा| पंकज भाई तो आज मानो छा ही गये हैं|
आप लोगों ने पंकज जी के दोहे तो पढ़ लिए और होली के रंग में सराबोर और भांग के नशे मो जो मन में आया लिख मारा पर किसी ने वो नाही देखा जो मैंने देखा ..... ये दोहे भैया पंकज जी ने नही..... आधुनिक तुलसी दास जी ने लिखे हैं. फोटो को ध्यान से देखिये फिर से... ये फोटो ऐसे ही नही चिपक गया है यहाँ.
जवाब देंहटाएंपंकज भाई, तारीफ तो बनती है. हर दोहा अपने को सहोदर साबित कर रहा है.
Kis kis ko padhiye kis kis ko gungunaiye
जवाब देंहटाएंsab sher shava-sher hain salaam thonkiye
नवीन भाई अब तो कोई शिकायत नहीं है न ग़ज़ल कहने वालों से।
जवाब देंहटाएंपंकज भाई के दोहे कुछ ऐसे हैं कि:
दोहे लेकर आ गया, होरी में हुरियार
पढ़-पढ़ पढ़ते जायें सब इनको बारम्बार।
बारहमासी फूल मैं, तुम मेरे कचनार,
तुम्हें बधाई दे रहा, कर लेना स्वीकार।
नवीन जी,
जवाब देंहटाएंये बाईस दोहे जो खुल कर श्रंगार रस को रसमय कर रहे हैं, यकीन मानिए इनसे कहीं और घनघोर रस लिए दोहे उनकी डायरी में छुपे हुये हैं... और इस बात के पूरे पुख्ता सबूत हैं मेरे पास| अब इस अद्भुत रचनाकार से आपने दोहे लिखवाये हैं...कुछ कीजिये की वो छूपे हुये रसमय भी सामने आ सकें| हाँ, प्रवेष चुनिन्दा लोगों के लिए रखा जा सकता है ताकि इन बहन नाम के प्राणियों को परेशानी न हो|
एक बात और, वो ये कि इस पंकज सुबीर नाम के इस शख्स से साहित्य की कोई विधा बच न सकेगी| मुझे फ़क्र है कि वो मेरे उस्ताद हैं और मैं उनका खास शागिर्द...इतराता फिरता हूँ अपनी खुशनसीबी पर|लगभग सारे दोहे उठा के ले जा रहा हूँ अपनी महफिल सजाने और आपके लिए चुनौती छोड़े जा रहा शेष छुपे रसमय दोहों को बाहर निकालने का|
@तिलक राज कपूर
जवाब देंहटाएंअपना एक पुराना शे'र और कुछ नये नवेले, ताजे-ताजे दोहे आप को भेंट करता हूँ तिलक भाई साब:-
होली के त्यौहार में, गुम हो क्यूँ सरकार|
कुछ दोहे तो आप भी, नज्र करो ना यार||
बारहमासी फूल तुम, और हमन कचनार|
होली के त्यौहार में, जो बोलो स्वीकार||
ना शिकवा ना ही गिला, सिर्फ़ सिर्फ़ इज़हार|
छन्द-ग़ज़ल सँग नित मने, होली सा त्यौहार||
अद्भुत प्रेम, लगन गजब, आदर औ सत्कार|
यादगार ये हो गया, होली का त्यौहार||
===============================
हम कवित्तों के दिवाने हम अदब के भी मुरीद|
थोड़ी सी इज़्ज़त ज़रा से प्यार की मनुहार है||
आप को भी बहुत बहुत बधाई भाई साब| आइए होली के त्यौहार को प्रेम और सौहार्द्र के साथ मनाएँ|
@गौतम
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हो गौतम भाई| रचनाकार का परिचय खुद उस की लेखनी ही होती है| भाई मैं तो इन को चंद महीनों से ही जानता हूँ, और इतने महान कार्य के लिए शायद मैं उपयुक्त भी नहीं हूँ| हाँ, अब आप ने कहा है तो प्रयास अवश्य करूँगा| और भाई जिसे बहर में ग़ज़ल कहना आ गया उस के लिए दोहे लिखना बड़ी बात नहीं है| तो मुझे तो आप और आप के अन्य मित्रों से भी कुछ दोहों की अपेक्षा थी| खैर, अब अगली समस्या पूर्ति में अवश्य पधारिएगा|
आनन्द आ गया...दोहों की बौछार...होली का त्यौहार..वाह!!
जवाब देंहटाएंधन्य-धन्य साहित्य है, धन्य धाम सीहोर
जवाब देंहटाएंजिसके रज कण में बसे, पंकज सा चितचोर
बस आनंद ही आनंद!!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी तो जबरदस्त बरसात कर गए.
सभी को आभार । गौतम क्यों मुझे उलझा रहे हो । पहली बार तो दोहे लिखे थे । हां नवीन जी और तिलक जी की इस बात से सहमत हूं कि ग़ज़ल का मीटर समझ में आ जाये तो छंद विधान को साधना आसान हो जाता है । और फिर दोहे तो पूरी तरह से बहर पर ही होते हैं । एक बात ज़रूर कहना चाहता हूं और वो ये कि उस्ताद कहा करे थे कि पंकज मार्च अप्रैल तथा सितम्बर अक्टूबर ये चार माह दिमाग की फसल के माह होते हैं । इन महीनों में रचनाकार को अपना सर्वश्रेष्ठ निकालने का प्रयास करना चाहिये । तिस पर होली तो मेरा पसंदीदा त्यौहार है ही ।
जवाब देंहटाएंफागुन है सर पर चढ़ा, तिस पर दूजी भाँग ।
उस पे ढोलक भी बजे, धिक धा धा, धिक ताँग ।।
इस दोहे की पहली पंक्ति लिखने के बाद दूसरी में काफिया की उलझन आ गई थी । मुश्किल को हल किया गूगल गुरू जी ने । पता चला कि बस्तर के आदिवासी इलाको में होली पर जो ढोलक बचती है उसका स्वर धिग तांग धिग तांग होता है सो बस उससे ही सीधा सीधा ले लिया । नवीन जी आपने जो काम करवा लिया है उसको लेकर नानी एक कहावत कहती हैं जो यहां कही नहीं जा सकती, लेकिन आभारी हूं आपको कि आपने मार मार के मुझसे ये काम करवा लिया । सभी का आभार और होली की शुभकामनाएं ।
एक से बढ़ कर एक.. होली का रंग खूब चढ़ा है हर दोहे में.....भाई जी हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंregards
पंकज भाई ये इल्ज़ाम न लगाओ मुझ पर| मैने तो हर बार की तरह इस बार भी सबसे सविनय निवेदन किया, पर इस बार आप ने मेरे निवेदन की लाज रख ली|
जवाब देंहटाएंआपने वाकई धमाके कर दिए| और अब तो मुझे भी प्रतीक्षा है उस तरही की जिसे आप डिले कर रहे हैं| सर जी महमूद वाली पड़ोसन वाली फिलमवा देख लो उस में भी किशोर कुमार ने यही कहा है
शुभास्तु शीघ्रम शीघ्रम शीघ्रम
प्रिय बंधुवर नवीन जी
जवाब देंहटाएंहोली का रंगारंग अभिवादन !
बहुत अच्छे दोहे हैं पंकज सुबीर जी के दोहों के लिए उनके साथ आपका भी आभार !
अच्छे आयोजन के लिए हार्दिक बधाई !
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं ! ♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह वाह .... वाह वाह ... कमाल कर दिया गुरुदेव ,.... होली के रंग बिखरे नज़र आ रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंइन दोहों में होली की खुश्बू ... प्रेम का एहसास ... मस्ती के रंग .... फागुन की उमंग ... बरसाने की तरंग .... और भी पता नही क्या क्या नज़र आ रहा है ...... बस आनद ही आनंद छा रहा है ....
सभी को बहुत बहुत मुबारक हो रंगों का त्योहार ...