ख़ुद अपनी हक़परस्ती के लिये जो अड़ नहीं सकता।
ज़माने से लड़ेगा क्या, जो खुद से लड़ नहीं सकता।१।
तरक़्क़ी चाहिए तो बन्दिशें भी तोड़नी होंगी।
अगर लंगर पड़ा हो तो सफ़ीना बढ़ नहीं सकता।२।
शराफ़त की हिमायत शायरी में ठीक लगती है।
सियासत में भले लोगों का झण्डा गड़ नहीं सकता।३।
सभी के साथ हैं कुछ ख़ूबियाँ तो ख़ामियाँ भी हैं।
भले हो शेर बब्बर, पेड़ों पर वो चढ़ नहीं सकता।४।
अब अच्छा या बुरा, जैसा भी है ये मूड है मेरा।
अगर मैं छोड़ दूँ इस को तो ग़ज़लें पढ़ नहीं सकता।५।
ज़माने से लड़ेगा क्या, जो खुद से लड़ नहीं सकता।१।
तरक़्क़ी चाहिए तो बन्दिशें भी तोड़नी होंगी।
अगर लंगर पड़ा हो तो सफ़ीना बढ़ नहीं सकता।२।
शराफ़त की हिमायत शायरी में ठीक लगती है।
सियासत में भले लोगों का झण्डा गड़ नहीं सकता।३।
सभी के साथ हैं कुछ ख़ूबियाँ तो ख़ामियाँ भी हैं।
भले हो शेर बब्बर, पेड़ों पर वो चढ़ नहीं सकता।४।
अब अच्छा या बुरा, जैसा भी है ये मूड है मेरा।
अगर मैं छोड़ दूँ इस को तो ग़ज़लें पढ़ नहीं सकता।५।
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गाँवों से चौपाल, बातों से हँसी गुम हो गयी।
सादगी, संज़ीदगी, ज़िंदादिली गुम हो गयी।१।
सादगी, संज़ीदगी, ज़िंदादिली गुम हो गयी।१।
क़ैद में थी बस तभी तक दासतानों में रही।
द्वारिका जा कर, मगर, वो 'देवकी' गुम हो गयी।२।
द्वारिका जा कर, मगर, वो 'देवकी' गुम हो गयी।२।
वो ग़ज़ब ढाया है प्यारे आज के क़ानून ने।
बढ़ गयी तनख़्वाह, लेकिन 'ग्रेच्युटी' गुम गयी।३।
बढ़ गयी तनख़्वाह, लेकिन 'ग्रेच्युटी' गुम गयी।३।
चौधराहट के सहारे ज़िंदगी चलती नहीं।
देख लो यू. एस. की भी हेकड़ी गुम हो गयी।४।
देख लो यू. एस. की भी हेकड़ी गुम हो गयी।४।
आज़ भी ‘इक़बाल’ का ‘सारे जहाँ’ मशहूर है।
कौन कहता है जहाँ से शायरी गुम हो गयी।५।
कौन कहता है जहाँ से शायरी गुम हो गयी।५।
दूसरी ग़ज़ल में नए काफ़ियों का प्रयोग किया है उम्मीद है गुणी जन पसंद करेंगे|
आपकी उत्कृष्ट कविताओं को कविताकोष में शामिल करने की बधाईयाँ।
जवाब देंहटाएंकविता कोश में शामिल होने के लिए बधाई ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़लें
वो ग़ज़ब ढाया है प्यारे आज के क़ानून ने।
जवाब देंहटाएंबढ़ गयी तनख़्वाह, लेकिन 'ग्रेच्युटी' गुम गयी।३।
कमाल की अभिव्यक्ति।
बढ़िया ग़ज़ल... कविताकोश में शामिल होने के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ||
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये गजलें |
जवाब देंहटाएंनए प्रयोग के लिए बधाई |
आशा
शराफ़त की हिमायत शायरी में ठीक लगती है।
जवाब देंहटाएंसियासत में भले लोगों का झण्डा गड़ नहीं सकता।३।निहायत ही खूब सूरत हैं इस ग़ज़ल के तम्मा अशआर ,किस किस का ज़िक्र करें ,"देविकी गम हो गई "और "यू एस "का प्रयोग बड़ा अभिनव और भला सा लगा .भाव और विचारों का गाढापन छलकता है है अशआर से ,अलफ़ाज़ से ......
नाट्य रूपांतरण किया है किरण बेदी ने .;
तरक़्क़ी चाहिए तो बन्दिशें भी तोड़नी होंगी।
जवाब देंहटाएंअगर लंगर पड़ा हो तो सफ़ीना बढ़ नहीं सकता।२।
...दोनों गज़ल बहुत ख़ूबसूरत और लाज़वाब..