मैं
दिल की स्लेट पे जो ग़म तमाम लिख देता
कोई न कोई वहीं इन्तक़ाम लिख देता
कोई न कोई वहीं इन्तक़ाम लिख देता
इंतक़ाम
- प्रतिशोध / बदला
ख़मोशियों
को इशारों से भी रहा परहेज़
वगरना कैसे कोई शब को शाम लिख देता
वगरना कैसे कोई शब को शाम लिख देता
शब -
रात
मेरे
मकान की सूरत बिगाड़ने वाले
तू इस
मकान पे अपना ही नाम लिख देता
वहाँ पहुँच के भी उस की तलाश थी कुछ और
फ़क़ीर कैसे खँडर को मक़ाम लिख देता
वहाँ पहुँच के भी उस की तलाश थी कुछ और
फ़क़ीर कैसे खँडर को मक़ाम लिख देता
मक़ाम - मंज़िल
मेरे
भी आगे कई पगड़ियाँ फिसल पड़तीं
जो अपने नाम के आगे इमाम लिख देता
जो अपने नाम के आगे इमाम लिख देता
इमाम
- पंडित / मौलवी / पादरी वग़ैरह
बहार
आती है मुझ तक, मगर बुलाने पर
तो फिर मैं कैसे उसे फ़ैज़-ए-आम लिख देता
तो फिर मैं कैसे उसे फ़ैज़-ए-आम लिख देता
फ़ैज़-ए-आम - वह प्रगति / सुविधा / सुख जो
जन-साधारण को सहज
उपलब्ध हो
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
मुफ़ाएलुन
फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22
बहरे
मुजतस मुसमन मखबून
बहार आती है मुझ तक, मगर बुलाने पर
जवाब देंहटाएंतो फिर मैं कैसे उसे फ़ैज़-ए-आम लिख देता,,,,
वाह !!! बहुत उम्दा गजल ,आभार नवीन जी
Recent Post : अमन के लिए.
मेरे मकान की सूरत बिगाड़ने वाले
जवाब देंहटाएंतू इस मकान पे अपना ही नाम लिख देता
यह तो बहुत उपयोगी सुझाव है।
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
वाह...
जवाब देंहटाएंमेरे भी आगे कई पगड़ियाँ फिसल पड़तीं
जो अपने नाम के आगे इमाम लिख देता
बेहतरीन ग़ज़ल...
सादर
अनु
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
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