tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post7377543349273309900..comments2024-03-22T11:27:03.707+05:30Comments on साहित्यम्: इक शाम सरयू में स्वयं को, होम करना है तुझेwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-43370572375550434592013-01-05T15:19:40.395+05:302013-01-05T15:19:40.395+05:30बहुत सुन्दर...बहुत सुन्दर...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-44353330606080367312011-11-14T12:52:56.334+05:302011-11-14T12:52:56.334+05:30इक नायिका है अंक शायी --दूसरी में ध्यान है।आश्वस्त...इक नायिका है अंक शायी --दूसरी में ध्यान है।<br>आश्वस्त हैं दोनो कि उनका --बालमा नादान है।३<br><br>sabhi chhand sundar...सुरेन्द्र सिंह " झंझट "http://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-3548821009097914842011-11-14T13:28:10.720+05:302011-11-14T13:28:10.720+05:30है कामना, “ माधव “ तुम्हारा -- हर घडी दीदार हो।...है कामना, “ माधव “ तुम्हारा -- हर घडी दीदार हो।<br>सब वेदना मिट जायँ मेरी -- ज़िन्दगी त्यौहार हो।७।<br><br>---अति-सुन्दर ....हर छन्द सुन्दर ...डा. श्याम गुप्तhttp://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-42289320693264294462011-11-15T02:19:18.527+05:302011-11-15T02:19:18.527+05:30नाजनीन-ए-अरब, यानि ग़ज़ल कहने वाली कलाम के क़दम जब भा...नाजनीन-ए-अरब, यानि ग़ज़ल कहने वाली कलाम के क़दम जब भारतीय सनातनी छंदों की जानिब कामजन हो जाएँ तो क्या मोजिज़ा हो सकता है, इसकी जिंदा-ताबिंदा मिसाल हैं भाई मयंक अवस्थी जी के ये मन्दर्ज़ा ज़ैल हरिगीतिका छंद ! विदेशो से आई विधाएं बेशक हमारे दिल-ओ-ज़ेहन पर छा चुकी हैं लेकिन हमारे अपने छंद शायद हमारे खून में ही शामिल हैं ! भाई मयंक अवस्थी जी के छंद कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से तो बेजोड़ व निर्दोष तो हैं Yograj Prabhakarhttp://www.blogger.com/profile/08110021103580620658noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-20646044634704446112011-11-15T14:56:54.822+05:302011-11-15T14:56:54.822+05:30श्रद्धेय श्री सुरेन्द्र सिह “ झंझट” जी !! मै ह्रदय...श्रद्धेय श्री सुरेन्द्र सिह “ झंझट” जी !! मै ह्रदय से आपका आभारी हूँ कि आपने इन छन्दों को पसन्द किया और मेरा उत्साहवर्धन किया । <br> डा श्याम गुप्त साहब !!-अतिशय कृतज्ञ हूँ !! आपने छन्द पसन्द किये और इस पोस्ट को सकारात्मक टिप्प्णी के योग्य समझा ! बहुत बहुत आभार !! <br>भाई योगराज प्रभाकर जी !!! आपकी टिप्पणी प्रशंसा पत्र और आतिशी शीशा दोनो ही है !!! आपने इन छन्दों के प्रथम दृष्टया प्रछन्न Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-69517099218176050452011-11-15T14:58:49.214+05:302011-11-15T14:58:49.214+05:30Plese edit as --प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मे –रा...Plese edit as --प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मे –राम लोकप्रिय हैं –लेकिन कृष्ण तो जीवन पर्यंत आलोकप्रिय ही हैंMayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-14321451110003920912011-11-15T18:27:11.372+05:302011-11-15T18:27:11.372+05:30तुम राधिका के मीत मोहन -- रुक्मिणी के हार होसब गोप...तुम राधिका के मीत मोहन -- रुक्मिणी के हार हो<br>सब गोपियाँ ये जानती हैं -- प्रेम के दरबार हो ...<br><br>छंदों को इतनी आसान सीधी और सरल भाषा में गूंथना ... और वो भी इस निराले अंदाज़ में ... योग राज ने ने जो भी कहा है वह सत्य है ... गहरे अनुभव और मेहनत के बाद ऐसी रचनाएं बनती हैं ... मयंक जी को हार्दिक बधाई इन लाजवाब छंदों की ...दिगम्बर नासवाhttp://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-55394379596521516952011-11-15T18:28:31.696+05:302011-11-15T18:28:31.696+05:30बहुत खूब लिखा है |बधाई आशाबहुत खूब लिखा है |बधाई <br>आशाआशाhttp://www.blogger.com/profile/16407569651427462917noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-44240843169259016572011-11-15T19:31:53.551+05:302011-11-15T19:31:53.551+05:30अद्भुत!अनूपम!अद्वितीय!...बधाई|अद्भुत!अनूपम!अद्वितीय!...बधाई|ऋता शेखर 'मधु'http://www.blogger.com/profile/00472342261746574536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-30640507448479007712011-11-15T22:08:50.478+05:302011-11-15T22:08:50.478+05:30भाषा विशेष के शब्दों के प्रति मोहग्रस्तता की चाहरद...भाषा विशेष के शब्दों के प्रति मोहग्रस्तता की चाहरदीवारी को लाँघ चुकी रचना प्रस्तुत छंद की गेयता को बहुगुणित कर रही है. और कवि यहीं सफल है. संप्रेष्य भाव निर्द्वंद्व शब्दों की नौका के सहारे हर विस्तार को सुगम बनाते दीख रहे हैं. <br><br>देवकीनन्दन या राघव के प्रति व्यक्त भाव कालजयी हैं. <br><br>मयंकजी को हार्दिक बधाई. <br><br>--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)Saurabhhttp://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-18883173071478686302011-11-15T23:09:22.521+05:302011-11-15T23:09:22.521+05:30बहुत सुन्दर छंद रचे हैं मयंक जी ने ! उनकी सरल सहज ...बहुत सुन्दर छंद रचे हैं मयंक जी ने ! उनकी सरल सहज भाषा एवं अद्भुत शब्द विन्यास बरबस ही ध्यान आकर्षित करते हैं ! उन्हें बहुत बहुत बधाई एवं शुभकानाएं !Sadhana Vaidhttp://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-82347989962424908222011-11-16T11:12:30.555+05:302011-11-16T11:12:30.555+05:30दिगम्बर नासवा !! श्रद्धेय !! आपका ह्रदय से आभार !!...दिगम्बर नासवा !! श्रद्धेय !! आपका ह्रदय से आभार !!! इस टिप्पणी से मुझे बहुत सम्बल मिला !! मुझे संशय था कि यह पोस्ट असफल हो गयी है क्योंकि इस पोस्ट के विज्ञ सदस्य इस पर मौन रहे लेकिन पहले योगराज प्रभाकर साहब और फिर आपके शब्दों ने इस विचार को श्लथ किया और आंतरिक विश्वास दिया !! बहुत बहुत आभार!!!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-66326227211206615042011-11-16T11:18:13.358+05:302011-11-16T11:18:13.358+05:30आशा !! उत्साह वर्धन के लिये आपका अतिशय आभार !!आशा !! उत्साह वर्धन के लिये आपका अतिशय आभार !!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-21816203456798503142011-11-16T11:18:13.357+05:302011-11-16T11:18:13.357+05:30ऋता शेखर “मधु” – आपके चारों शब्द रचनाकार के लिये श...ऋता शेखर “मधु” – आपके चारों शब्द रचनाकार के लिये शक्तिदायी है!! मैं आपको धन्यवाद दूँ तो यह बहुत बहुत छोटा शब्द होगा !! कृतज्ञ हूँ !!!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-57881990505507794542011-11-16T11:23:15.534+05:302011-11-16T11:23:15.534+05:30सौरभ पाण्डेय !! सौरभ जी !! आपके शब्दो में भी सौरभ ...सौरभ पाण्डेय !! सौरभ जी !! आपके शब्दो में भी सौरभ है और अनुभूति बन रहा है !! टिप्पणी टिप्पणीकार के व्यक्तित्व को भी अनुमोदित कर रही है –इतनी परिष्कृत और संश्लिष्ट भाषा !!! हिन्दी साहित्य विकेन्द्रित हो कर भी उतना ही सशक्त रहेगा – आप जैसों की तलाश और ज़रूरत है हिन्दी साहित्य को !! ईश्वर से कामना है कि यह कलम ऐसे ही गतिशील रहे !! बहुत बहुत आभार !!!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-47155284866564328962011-11-16T11:30:01.948+05:302011-11-16T11:30:01.948+05:30Sadhana Vaid – साधना जी !! मेरा नमन स्वीकार करें !...Sadhana Vaid – साधना जी !! मेरा नमन स्वीकार करें !!! नवीन भाई की भावना के आरोह और सहयोग की प्रतिध्वनि भी है इस पोस्ट में !! उन्होंने कई बार फोन कर इस पोस्ट के स्वरूप को तब्दील कराया !! अब प्रशंसा और आलोचना दोनो में वो बराबर के हकदार हैं !! आपके आशीष और शुभकामनायें मेरे साहित्यकार के लिये निधि समान हैं – बहुत सम्बल और बहुत उत्साह आपके शब्दो ने दिया । आभार !!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-90836303618311791442011-11-16T13:38:42.895+05:302011-11-16T13:38:42.895+05:30आघात से टूटा नहीं जो -- ये वही अरमान है।है इश्...आघात से टूटा नहीं जो -- ये वही अरमान है।<br>है इश्क का सीमेण्ट इस पर --और इसमे "जान" है।।<br>किसके लिये पागल हुये हम --ये सभी को ज्ञान है।<br>सारा ज़माना जानता है --बस वही अनजान है।२।<br>बहुत सुन्दर प्रस्तुति आधुनिक प्रतीक विधान लिए व्यंग्य विनोद लिए दिल की आवाज़ लिए .veerubhaihttp://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-60366554095867853292011-11-16T14:57:27.783+05:302011-11-16T14:57:27.783+05:30Veerubhai !! मुहत्तरम !! बहुत बहुत आभार !! पोस्ट प...Veerubhai !! मुहत्तरम !! बहुत बहुत आभार !! पोस्ट पढने के लिये और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिये ! आपको छन्द और उसका मेयार पसन्द आया यह रचनाकार की कामयाबी है और अभीष्ट भी ! अर्से बाद ग़ज़ल से पारम्परिक छन्द की ओर मुड़ने पर संशय रहता है –लेकिन आप की साथ ही अन्य मर्मज्ञों की टिप्पणियों ने बहुत तसल्ली दी और बहुत आश्बस्त किया !!! पुन:आभार !!Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-674314881058049982011-11-16T21:51:53.643+05:302011-11-16T21:51:53.643+05:30आ. मयंक भाई जी आप तो मुझे बस यूँ ही क्रेडिट दिए जा...आ. मयंक भाई जी<br> <br>आप तो मुझे बस यूँ ही क्रेडिट दिए जा रहे हैं| मैंने तो बस अपना फ़र्ज़ निभाया है, जो कि मैं पिछली जनवरी से निभाता चला आ रहा हूँ, और इस मंच के फेज़ वन यानि हरिगीतिका के समापन तक [शायद अगली दो या तीन पोस्ट] तक निभाना भी है| ये तो आप का बड़प्पन है कि आपने अपने छोटे भाई के अनुरोध का सम्मान रखा| हाँ मंच संचालक होने के नाते आलोचना का भार सब से पहले उठाना मेरा नैतिक दायित्व है|<br> <brNavin C. Chaturvedihttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-67054390263862057832011-11-17T11:29:33.764+05:302011-11-17T11:29:33.764+05:30आ. मयंक जी की गज़लें कई बार पढ़ी हैं,गुनगुनायी हैं...आ. मयंक जी की गज़लें कई बार पढ़ी हैं,गुनगुनायी हैं , जाहिर है की वो दिलकश होती हैं | यहाँ उनके द्वारा रचित पारंपरिक <br>छंद पढ़कर मन भाव विभोर हो गया | एक एक छंद कई कई बार पढ़ा | क्या बात है !!! आपकी शब्दों की समझ , शिल्प , भाव सब बेजोड़ हैं|<br><br>[मेरी प्रणय प्रस्तावना का -- कुछ हुआ प्रतिरोध भी।<br>जब मैं विमुख होने लगा तो -- फिर हुआ अनुरोध भी।।<br>गतिशील करने को उठाये -- एक दो गतिरोध भी।<brशेखर चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/03570068972021024352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-91251359072757489692011-11-17T12:06:30.610+05:302011-11-17T12:06:30.610+05:30नवीन भाई !! पहले मुझे भी इस बात पर संशय था कि शायद...नवीन भाई !! <br>पहले मुझे भी इस बात पर संशय था कि शायद पोस्ट इस लायक नहीं है कि ध्यान आकृष्ट कर सके –लेकिन योगराज भाई की टिप्पणी और इसके बाद अन्य मित्रों के उत्साह वर्धक बयान आश्वस्त कर गये कि नहीं ऐसा नहीं है ! मेरे परिचित आपके ब्लाग पर कुछ लोग हैं जिनमे से कुछ ने समयाभाव के कारण और कुछ ने व्यक्तिगत पूर्वाग्रह के कारण इस पोस्ट को नहीं अटेण्ड किया – इनके न आने का स्वागत है !!! <br>आपका सहयोग –Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-56904399548279645132011-11-18T06:44:48.603+05:302011-11-18T06:44:48.603+05:30हमारे यहां कहा जाता है कि ऊंट के चरने के बाद बकरिय...हमारे यहां कहा जाता है कि ऊंट के चरने के बाद बकरियों के चरने के लिए कुछ नहीं बचता । :) <br>कुछ वैसी ही स्थिति यहां भी है … <br>छंद के सशक्त हस्ताक्षर <b> योगराज प्रभाकर जी </b> जैसे मूर्धन्य विद्वान के कह चुकने के बाद कुछ कहने को अधिक शेष नहीं रह जाता …<br>फिर भी हरिगीतिका छंद की इस मनभावन शृंखला में <b> मयंक अवस्थी जी</b> के छंद पढ़कर मन आनंदित हो गया । <b> मयंक अवस्थी जी</b> को पहली बार ही Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttp://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-18210551561696430792011-11-18T06:46:16.603+05:302011-11-18T06:46:16.603+05:30…और हां , अभी कुछ सामाजिक दायित्व ऐसे आए हुए हैं ...…और हां , अभी कुछ सामाजिक दायित्व ऐसे आए हुए हैं कि आपकी पोस्ट पर गंभीरता से लिखने का पर्याप्त समय ही नहीं निकाल पा रहा था … रात भर जाग कर यह सब लिखा है :) <br>…और दूसरी बात , <br><b>मयंक जी </b> मैं आपको कुछ ऐसे ब्लॉग्स के लिंक भी दे सकता हूं जहां हर पोस्ट पर 80-90 से 100-125 कमेंट मिल जाएंगे … लेकिन आप-हम जैसे गुणवत्ता के तलबगार के लिए उनकी एक पोस्ट पर कमेंट भी भारी धर्मसंकट का काम हो जाता Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttp://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-12805644588483691912011-11-18T11:11:50.884+05:302011-11-18T11:11:50.884+05:30आदरणीय राजेन्द्र भाई !! बहुत बहुत धन्यवाद !! खरी औ...आदरणीय राजेन्द्र भाई !! बहुत बहुत धन्यवाद !! खरी और सटीक समीक्षा के लिये और आपने बहुत समय दिया इस पोस्ट के लिये जो कि सामान्यत्:कुशादादिल लोग ही दूसरों की रचनाओं पर देते हैं --ह्रदय से आभार!!!!--कुछ स्पष्टीकरण --- चौबिस और छत्तिस=दोनो उच्चारण के आधार पर इस्तेमाल किये गये जैसे " बहन" शब्द सही है लेकिन बहिन और बहना लोकप्रतिष्ठा प्राप्त करने के बाद अब कविता में इस्तेमाल किये जाते हैं Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-27110210495223530832011-11-18T13:35:14.635+05:302011-11-18T13:35:14.635+05:30सम्माननीय मयंक जी आप मेरी बातों से सहमत हुए , नही...<b>सम्माननीय मयंक जी </b><br>आप मेरी बातों से सहमत हुए , नहीं हुए …यह इतना महत्वपूर्ण नहीं । <br>महत्वपूर्ण यह है कि आपने सब कुछ सहजता से लिया …<br>मैं कुछ भी दोहराऊंगा नहीं … अब <b> नवीन जी</b> की बारी है :)<br><br>आपके बारे में बातचीत होते समय मैंने <b> नवीन जी</b> से कहा भी था कि <b> मयंक अवस्थी</b> नाम अपरिचित भी नहीं लग रहा और स्मरण भी नहीं हो रहा कि कहीं पढ़ा है क्या ! … :) <br>आपका Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttp://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.com