tag:blogger.com,1999:blog-41622537414489773852024-03-19T14:18:38.090+05:30साहित्यम्हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger998125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-86212196045109449742023-07-25T15:15:00.002+05:302023-07-25T15:15:36.442+05:30वंदन शुभ अभिवन्दन - रमेश कँवल हमारे यहाँ बहुत पहले से गणपति, सरस्वती और गुरुवन्दन की परिपाटी रही है . किसी भी कवि गोष्ठी या कवि सम्मलेन का श्रीगणेश विधिवत दीप प्रज्ज्वलित करने के उपरान्त माँ शारदे की वन्दना के साथ होता रहा है. किसी भी कवि की प्रथम परीक्षा यही मानी जाती थी कि उसने माँ शारदे की वन्दना में क्या लिखा है. नवोदितों से कार्यक्रमों के आरम्भ में गुरू, गणपति, सरस्वती एवं अन्य ईश आराधनाएँ करवाना सामान्य बात होती www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-69255628824188444192023-07-22T14:40:00.002+05:302023-07-22T14:42:05.753+05:30ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है - पवन कुमारज़मीं को नाप
चुका आसमान बाक़ी है अभी परिन्दे
के अन्दर उड़ान बाक़ी है बधाई तुमको कि
पहुँचे तो इस बुलन्दी पर मगर ये ध्यान
भी रखना ढलान बाक़ी है मैं अपनी नींद
से क़िस्तें चुकाऊँगा कब तक तुम्हारी याद
का कितना लगान बाक़ी है मैं एक मोम का
बुत हूँ तू धूप का चेहरा बचेगी किसकी
अना इम्तेहान बाक़ी है मुझे यक़ीन है
हो जाऊँगा बरी एक दिन मेरे बचाव में
उसका बयान बाक़ी है ये बात कह न
दे सैलाबwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-89536403168367648962023-07-22T14:37:00.005+05:302023-07-22T14:41:59.160+05:30सबब पूछो न क्यों हैरतज़दा हूँ - शेषधर तिवारीसबब पूछो न
क्यों हैरतज़दा हूँमैं अपनी चीख
सुनकर डर गया हूँ वाही पीछे पड़े
हैं ले के पत्थर मैं जिनकी
फ़िक्र में पागल हुआ हूँ मेरे सीने पै
रख के पाँव बढ़ जा तेरी मंज़िल
नहीं मैं रास्ता हूँ मुझे अपनों ने
क्यों ठुकरा दिया है ये ग़ैरों से
लिपट कर पूछता हूँ किसी को भी
बना सकता हूँ पानी बज़ाहिर यूं तो
पत्थर दिख रहा हूँ सबब दरिया है
या बेचारगी है जो पत्थर हो
के भी मैं बह चला हूँ www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-48339539933990409792023-07-22T14:35:00.003+05:302023-07-22T14:42:10.160+05:30जब भी कोई अपनों में दिल का राज़ खोलेगा - ज़ाहिद अबरोलजब भी कोई
अपनों में दिल का राज़ खोलेगा आँसुओं को
समझेगा आँसुओं से बोलेगा क्यूँ बढ़ाये
रखता है उसकी याद का नाख़ुनरोते रोते
अपनी ही आँख में चुभो लेगा ताजिराने-
मज़हब को नींद ही नहीं आती आदमी तो बरसों
से सो रहा है सो लेगा आँख, कान, ज़हनो-दिल बेज़ुबाँ नहीं कोई जिस पै हाथ रख
दोगे ख़ुद ब ख़ुद ही बोलेगा आज ही कि
मुश्किल है लड़ रहे हैं हम तनहा कल तो यह जहाँ
सारा अपने साथ हो लेगा तू www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-87091224976928162352023-07-22T14:29:00.001+05:302023-07-22T14:41:51.107+05:30 शैख़ साहिब! शराब पी लीजै - विजय ‘अरुण’ शैख़ साहिब! शराब पी लीजै
मेरे आली जनाब पी लीजै
कीजिए कोई भी न इस पै सवाल
चीज़ है लाजवाब पी लीजै
इसमें नश्शा है और महक भी है
ये नशीला गुलाब पी लीजै
अब तो पीने पिलाने के दिन हैं
जोश पर है शबाब पी लीजै
आप को भी है पीने की ख़्वाहिश
छोड़िए सब हिजाब पी लीजै
आप के नाम की ‘अरुण’ साहिब
कुछ बची है शराब पी लीजै
विजय ‘अरुण’ www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-36808979832144302822023-07-22T14:28:00.002+05:302023-07-22T14:41:55.737+05:30रोक नहीं फ़रमाने दे - रवि खण्डेलवालरोक नहीं फ़रमाने दे मन की बात बताने दे सच का साथ न छोडूँगा चाहे जितने ताने दे मुँह मत खुलवा अब मेरा बेहतर होगा जाने दे सुर में गायेगा एक दिन जैसा भी है गाने दे खुद का केवल सोच न तू पंछी को भी दाने दे आने वाले की मर्ज़ी आता है तो आने दे
रवि खण्डेलवाल www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-6531809719562092192023-07-22T14:26:00.005+05:302023-07-22T14:42:02.875+05:30कोई बदलाव की सूरत नहीं थी - सचिन अग्रवाल कोई बदलाव की
सूरत नहीं थी
बुतों के पास
भी फ़ुर्सत नहीं थी
अब उनका हक़ है
सारे आसमाँ पर
कभी जिनके
सरों पर छत नहीं थी
वफ़ा, चाहत, मुरव्वत सब थे मुझमें
बस इतनी बात
थी दौलत नहीं थी
फ़क़त प्याले ही
प्याले क़ीमती थे
शराबों की कोई
क़ीमत नहीं थी
मैं अब तक ख़ुद
से ही बेहद ख़फ़ा हूँ
मुझे तुमसे
कभी नफ़रत नहीं थी
गये हैं पार
हम भी आसमाँ के
वहाँ लेकिन
www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-46525852719879193512023-06-28T06:10:00.002+05:302023-06-28T06:16:48.415+05:30एक और कदम हिंदी गज़ल की ओर – एम. एल. गुप्ता आदित्य<!--StartFragment-->
<!--EndFragment-->कुछ सप्ताह
पहले हिंदी गजलों
की एक पुस्तक आई है “धानी चुनर”। इस पुस्तक के लेखक हैं नवीन सी चतुर्वेदी, जो अनेक विधाओं व भाषाओँ में सृजन
करने वाले कवि / लेखक हैं। इस पुस्तक का श्रीगणेश
गणपति, शारदे, शिव, राम, कृष्ण, जगदम्बा एवं गुरू
वन्दना जैसी ईश आराधनाओं के साथ किया गया है, जो हमें पुरातन सनातन सरोकारों की याद दिलाता है
। शायर&www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-67223736224785063332023-04-09T12:25:00.003+05:302023-04-09T12:28:21.133+05:30अन्तर्मन से - सरल और मृदुल कविताओं का संकलन आभा दवे मूलतः गुजराती भाषी हैं साथ ही हिंदी भाषा पर उनका अधिकार दर्शनीय है . विवेच्य कविता संग्रह में आप ने भाषा के सरल और सरस प्रारूप को चुना है . विषय भी बहुत बोझल न हो कर आम जन से जुड़े&www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-83535281621585961692023-04-07T16:58:00.002+05:302023-04-07T16:59:57.692+05:30रमेश कँवल - लीक से हटकर चलने वाले व्यक्ति सामान्यतः लेखक टाइप लोग रिटायरमेण्ट पर एकमुश्त रकम साइड में रखकर उस रकम से अपनी ढेर सारी किताबें छपवाते हैं, उन किताबों के विमोचन करवाते हैं और समीक्षाएँ लिखवाते तथा छपवाते हैं । मगर रमेश कँवल जी ने ऐसा न कर के कुछ नया करने की ठानी
और कर के दिखला भी दिया ।
सबसे पहले 2020 की नुमाइन्दा ग़ज़लों का संकलन प्रकाशित किया . उसके बाद इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लों का www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-45258684099599186322022-10-27T11:56:00.002+05:302022-10-27T21:12:49.199+05:30हिंदी ग़ज़ल के प्रति आस्था का उद्घोष हैं 'धानी चुनर' की हिन्दी ग़ज़लें - देवमणि पाण्डेयनवीन चतुर्वेदी के नए ग़ज़ल संग्रह का नाम है धानी चुनर।
इससे पहले ब्रज ग़ज़लों के उनके दो संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इस संग्रह में 87
रसीली एवं व्यंजनात्मक हिंदी ग़ज़लें शामिल हैं। संग्रह की पहली ग़ज़ल में
उन्होंने हिंदी ग़ज़ल के प्रति अपनी आस्था का उद्घोष किया है- ओढ़कर धानी चुनर हिंदी ग़ज़ल बढ़ रही सन्मार्ग पर हिंदी ग़ज़ल देवभाषा की सलोनी संगिनी मूल स्वर में है प्रवर हिंदी ग़ज़ल www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-45223191605797914702022-06-01T15:31:00.001+05:302022-06-01T15:31:27.977+05:30'लव की हॅप्पी एंडिंग' एवं 'कुछ दिल की कुछ दुनिया की' - पुस्तक समीक्षाअब जरूर हम मथुरा को
ठीकठाक सा एक टाउन कह सकते हैं मगर 1990 के आसपास मथुरा इतना डिवैलप नहीं हुआ था ।
हालाँकि रिफायनरी आ चुकी थी, टाउनशिप बस चुकी थी, कॉलोनियों की बात हवाओं में तैरने लगी थी फिर भी 1990 का मथुरा 1980 के
मथुरा से बहुत अधिक उन्नत नहीं लगता था ।
उस मथुरा की एक गली में
जन्मी हुई लड़की की शादी महानगर में होती है । मथुरा के संस्कारों को मस्तिष्क में
और महानगर वाले पतिदेव के अहसासात को दिलwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-17505306074855532632022-05-31T17:07:00.000+05:302022-05-31T17:07:39.910+05:30श्राद्ध के दिन पर्व मनाएँ या नहीं How to celebrate
Diwali If shradham falls on that day?
प्रश्न पूछा गया है कि श्राद्ध तिथि अगर दिवाली को
पड़ जाये तो दिवाली को कैसे सेलिब्रेट किया जाये ?
सबसे पहले तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम श्राद्ध
क्यों मनाते हैं और श्राद्ध का अर्थ क्या होता है ?
श्राद्ध का अर्थ
अपने पितरों को याद कर के उन के कल्याण हेतु अपनी-अपनी
लोक रीतियों के अनुसार जो कुछ भी पुण्य काम हम सच्ची श्रद्धा के साथ करते www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-59361529488992342202022-05-28T17:30:00.002+05:302022-05-31T16:46:48.169+05:30हम ग़ालिबो-नज़ीर नहीं बन सके तो क्या हम ग़ालिबो-नज़ीर नहीं बन सके तो क्याशेरो-सुख़न में हमने गुज़ारी तमाम उम्रउर्दू ज़बाँ पै अपना भी है क़र्ज़ दोसतोहमने इसी की ज़ुल्फ़ सँवारी तमाम उम्रहिमाचल
प्रदेश के भाषा व संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित उर्दू साहित्य की त्रैमासिक
पत्रिका “ जदीद फ़िक्रो-फ़न” का 102 वाँ अंक प्राप्त हुआ । पत्रिका के मुख्य सम्पादक
हैं डॉ. पंकज ललित और अतिथि सम्पादक हैं श्री विजय कुमार अबरोल उर्फ़ ज़ाहिद अबरोल
साहब । www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-26447035036682025242021-10-31T12:55:00.001+05:302021-10-31T12:55:24.747+05:30सदियों का सारांश - द्विजेन्द्र द्विज - एक समीक्षा पहाड़ों पर जाना किसे
अच्छा नहीं लगता ? कौन है जिसे पहाड़ों से मुहब्बत नहीं है? पहाड़ों का हुस्न, पहाड़ों का पानी, पहाड़ों की चढ़ाई, पहाड़ों की उतराई, पहाड़ों की गर्मी, पहाड़ों की सर्दी, पहाड़ों का खाना, पहाड़ों के सरोकार ऐसे अनेक विषयों से आप अवश्य ही दो-चार हो चुके होंगे अब
तक । पहाड़ों पर अनेक कविताएँ, गीत, शेर
आदि भी पढे होंगे आप ने अब तक । परन्तु किसी एक ही काव्य संग्रह विशेष कर ग़ज़ल संग्रह
में www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-79646770758182227952021-10-31T11:29:00.007+05:302021-10-31T13:01:08.963+05:30मनसुख विरह - एक उत्तम ब्रजभाषा काव्य संग्रह ऐसा
शायद ही कोई साहित्य प्रेमी होगा जिसे ब्रजभाषा के बारे में जानकारी न हो - जिसने ब्रज
भाषा की रचनाओं का रसास्वादन न किया हो,
जिसने ब्रजसरोवर में गोते न लगाये हों,
जिसने सूरदास सहित अष्टछाप के विविध कवियों की अमृतवाणी चखी न हो,
जिसने दीवानी मीरा के निश्छल और निष्कपट प्रेम की अनुभूति न की हो,
जिसने रहीम के दोहों में छुपे जीवन दर्शन का अवलोकन न किया हो,
जिसने भूषण के अर्थ विस्फोट वाले छंदों www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-17660618459889802802021-10-24T19:16:00.000+05:302021-10-24T19:16:06.026+05:30करवा चौथ कविता - मेरे तो तुम ही ईश्वर हो - अटल राम चतुर्वेदी तुम ढूँढ़ो दुनिया में ईश्वर।मेरे तो तुम ही ईश्वर हो।मेरी है हर साँस तुम्हारी।तुम पर ही मैं सब कुछ हारी।सदा तुम्हारी आस करूँ मैं।तुम ही तो शीतल तरुवर हो।मेरे तो तुम ही ईश्वर हो।तुम बिन मैं तड़फूँ बन मछली।तुम्हें देखकर ही मैं सँभली।होश नहीं रहता मुझको कुछ।तुम हो तो मुझ पर है सब कुछ।तुम ही तो मेरे सहचर हो।मेरे तो तुम ही ईश्वर हो।"अटल" प्रीत का तुमसे बंधन।तुमसे बिंदिया, चूड़ी, कंगन।www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-36213705035048471302021-10-24T11:58:00.000+05:302021-10-24T11:58:07.239+05:30बदन की आग दिखाई गई थी साज़िश से - मयंक अवस्थी बदन
की आग दिखाई गई थी साज़िश से ।
बदन
में आग लगा दी गई थी साज़िश से ॥
हम
उसको धर्म की आँधी समझ रहे थे मगर ।
वो धूल आँख में झोंकी गई थी साज़िश से ॥
मिलेगी
राह तो मुर्दे भी उठ के दौड़ेंगे ।
वो
कब्र इसलिए खोदी गई थी साज़िश से ॥
उस
एक बेल ने पानी पे कर लिया कब्ज़ा ।
जो
बेल ताल में डाली गई थी साज़िश से ॥
नदी
को पार कराने का आसरा दे कर ।
भँवर
www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-45986674264713878802021-10-24T11:56:00.002+05:302021-10-24T11:56:08.788+05:30यही इक मुख़्तसर सी दास्ताँ सब को सुनानी है - प्रेम भटनेरीयही
इक मुख़्तसर सी दास्ताँ सब को सुनानी है ।
हर
इक मौसम में ख़ुश रहना यही तो ज़िंदगानी है ॥
मिरे
दिल पर हुई दस्तक न जाने कौन आया है ।
फ़ज़ा
की आहटों में आज ख़ुशबू ज़ाफ़रानी है ॥
तुम्हें
जब मुझ से मिलना हो तो अपने आप से मिल लो ।
तुम्हारे
दिल में रहता हूँ तुम्हारी बात मानी है ॥
कहीं
बालू कहीं पत्थर कहीं कटते किनारे हैं ।
कोई
कुछ भी नहीं कहता ये दरिया की रवानी है ॥
&www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-60631703950978007612021-10-24T11:43:00.005+05:302021-10-24T11:43:40.949+05:30इस ग़लाज़त को साफ़ कर देना - चेतन पंचाल इस ग़लाज़त को साफ़ कर देना ।
मुझको
दिल से मुआफ़ कर देना ॥
मैं अगर
भूलना तुम्हें चाहूँ ।
मुझको
मेरे खिलाफ़ कर
देना ॥
ग़लतियाँ बाद
में बताना मेरी ।
पहले
मुझको मुआफ़ कर देना ॥
मैं
करूँ गर त’अल्लुक़ात को तर्क ।
तुम ज़रा
इख़्तिलाफ़ कर देना ॥
गर&www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-10890081033437706422021-10-24T11:15:00.010+05:302021-10-24T11:38:29.574+05:30मिरे क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या - असलम राशिद मिरे
क़दमों में दुनिया के ख़ज़ाने हैं उठा लूँ क्या ।
ज़माना
गिर चुका जितना मैं ख़ुद को भी गिरा लूँ क्या ॥
तिरा
चेहरा बनाने की जसारत कर रहा हूँ मैं ।
लहू
आँखों से उतरा है तो रंगों में मिला लूँ क्या ॥
सुना
है आज बस्ती से मुसाफ़िर बन के गुज़रोगे ।
अगर
निकलो इधर से तो मैं अपना घर सजा लूँ क्या ॥
भरा
हो दिल हसद से तो नज़र कुछ भी नहीं आता ।
मैं
नफ़रत में अदावत में www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-34652978551003342322021-10-23T14:50:00.007+05:302021-10-23T15:01:04.121+05:30ख़ुद भले ही झेली हो त्रासदी पहाड़ों ने - द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ख़ुद
भले ही झेली हो त्रासदी पहाड़ों ने ।
बस्तियों
को दी लेकिन हर ख़ुशी पहाड़ों ने ॥
ख़ुद
तो जी अज़ल ही से तिश्नगी पहाड़ों ने ।
सागरों
को दी लेकिन हर नदी पहाड़ों ने ॥
आदमी
को बख़्शी है ज़िंदगी पहाड़ों ने ।
आदमी
से पायी है बेबसी पहाड़ों ने ॥
मौसमों
से टकरा कर हर कदम पै दी यारो ।
जीने
के इरादों को पुख़्तगी पहाड़ों ने ॥
देख
हौसला इनका और शक्ति सहने की ।
टूट
कर www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-20848260401737201412021-10-23T14:42:00.006+05:302021-10-23T18:37:47.547+05:30मैं अपने होठों की ताज़गी को तुम्हारे होठों के नाम लिख दूँ - रमेश प्रसाद कँवल
मैं अपने होठों की ताज़गी को तुम्हारे होठों के नाम लिख दूँ । हिना
से रौशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ ॥
अगर
इजाज़त हो जानेमन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर ।
मैं
सुबहे-काशी की रौशनी में अवध की मस्तानी शाम लिख दूँ ॥
बदन
पै सावन की है इबारत नज़र में दौनों की एक चाहत ।
मेरे लबों को जो हो इजाज़त वफ़ा का पहला सलाम लिख दूँ ॥
जो
दिलनशीं है सितम पै माइल www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-45083518235568884012021-10-23T14:20:00.009+05:302022-05-28T05:27:49.382+05:30कभी तो दीन के दुखड़े कभी दुनिया नहीं मिलती - नवीन जोशी 'नवा'कभी
तो दीन के दुखड़े कभी दुनिया नहीं मिलती ।
कभी
गायब है खेवय्या,
कभी नय्या नहीं मिलती ॥
न
कोई पेड़ मिलता है न कोई छत ही मिलती है ।
जहां
हो धूप विधिना की वहीं छाया नहीं मिलती ॥
बड़ा
संघर्ष हो जितना बड़ी उतनी ही होगी सीख ।
महाभारत
न होता तो हमें गीता नहीं मिलती ॥
उसे
राधा भी मिलती है उसे मीरा भी मिलती है ।
मगर
कान्हा को राधा में कभी मीरा नहीं मिलती ॥
सिया-वर
को www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-78684405062474343802020-12-07T22:24:00.005+05:302020-12-07T22:24:45.400+05:30भाड़ में जाय ऐसा इन्क़लाब - नवीन सी. चतुर्वेदीक़स्बाई संस्कृति के वाहक मध्यवर्गीय परिवार का एक होनहार लड़का रोज़ सुबह उठते ही घर के बाहर के चबूतरे पर बैठ जाता। अख़बार पढ़ता और रूस, अमरीका, जर्मन, जापान, चीन आदि-आदि की बातें ज़ोर-ज़ोर से बोलते हुए करता। साथ ही हर बार यह कहना नहीं भूलता कि अपने यहाँ है ही क्या? आदि-आदि। उस के अपने घर के लोग उसे डाँटते हुए कहते कि अरे बेटा अभी-अभी उठा है। ज़रा दातुन-जंगल कर ले। स्नान कर ले। घड़ी दो घड़ी रबwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.com2