tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post6855188654852045397..comments2024-03-22T11:27:03.707+05:30Comments on साहित्यम्: छंद - नव-कुण्डलिया - IND SA 2nd ODI 15.01.11www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-9992250705548093862015-06-04T19:20:04.534+05:302015-06-04T19:20:04.534+05:30चार साल पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं। रुचि दरशाने के ...चार साल पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं। रुचि दरशाने के लिये आभार।<br /><br />साहित्यम् पर बातों को हवा में नहीं उड़ाया जाता। उस समय न सिर्फ़ शास्त्री जी बल्कि और भी कई अग्रजों-अनुजों के साथ विचार-विमर्श हुआ था। उस दौरान चर्चा में रही कुछ बातों पर ध्यान देना अपेक्षित है। <br />कुण्डलिया छन्द के मूल-प्रारूप से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती - सहमत। <br /><br />साथ ही काका हाथरसी ने हिन्दी साहित्य को जो रचनाएँ दींwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-47939523900034444552015-06-04T11:35:56.294+05:302015-06-04T11:35:56.294+05:30बहुत सुन्दर नवीन जी।आपकी सज्जनता को प्रणाम।साथ ही ...बहुत सुन्दर नवीन जी।आपकी सज्जनता को प्रणाम।साथ ही मयंक जी की बात हवा मे नहीं उडा देनी चाहिये।आपको व आपके गुरुदेव को सादर नमन,परन्तु कुन्डल शब्द का अर्थ ही है "गोल" अर्थात जहाँ से शुरु वही पर खतम। हिन्दी मे नये प्रयोग तो होते ही रहते हैं, परन्तु मनमाने तरीके से नही,शास्त्र संगत तरीके से।आप ही बताइए यदि हर कोई अपनी सुविधानुसार नये नये छन्द बनाने लगे तो हुनर किस बात का? अभी मै कहूँ कि मैनेAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/01614882507629167441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-47131953577438281842011-01-17T11:22:16.340+05:302011-01-17T11:22:16.340+05:30हम तो ट्रेन में बैठ गये थे, सुबह पता चला।हम तो ट्रेन में बैठ गये थे, सुबह पता चला।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-77740318218912989162011-01-17T11:19:20.078+05:302011-01-17T11:19:20.078+05:30धर्मेद्र भाई आभार उत्साह वर्धन के लिए| छंदों के आत...धर्मेद्र भाई आभार उत्साह वर्धन के लिए| छंदों के आती प्राचीन विधा 'समस्या पूर्ति' को ध्यान में रखते हुए, वरिष्ठों के आदेशानुसार एक नया ब्लॉग शुरू कर दिया है कुछ दिन पहले| भाई उमा शंकर जी और आचार्य सलिल जी ने अपना अपना अमूल्य योगदान भी प्रदान कर दिया है| आपसे विनती है कि इस दिशा में यथोचित सहयोग प्रदान करें|<br /><br />जी मनोजभाई एक ऐतिहासिक मेच हो गया ये तो| बहुत बहुत आभार यहाँ पर भ्रमण www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-23993107478506901252011-01-17T09:47:02.455+05:302011-01-17T09:47:02.455+05:30अच्छी रचना ,अच्छी समसामयिक अभिव्यक्ति, वो भी उस वि...अच्छी रचना ,अच्छी समसामयिक अभिव्यक्ति, वो भी उस विषय पर जिस पर सामान्यत: साहित्यकार की लेखनी नहीं चलती, आप कुछ तो नया करने का प्रयास कर रहे हैं वगरना हम लोग तो उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। इस रचना को चाहे कुन्डली का ख़िताब मिले न मिले पर छंद बद्ध तो है। बधाई। मयंक जी की बातें उनसे ही समझने की कोशिश करें व्यक्तिगत संपर्क द्वारा,कुछ त्रुटि है तो आगे की रचनाओं में दुरूस्त हो जायेगी। बहरहाल बधाई।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-22380258008584315062011-01-17T08:27:50.471+05:302011-01-17T08:27:50.471+05:30कुण्डलिया तो कुण्डलिया ही होती हैं नई या पुरानी का...कुण्डलिया तो कुण्डलिया ही होती हैं नई या पुरानी का तो प्रश्न ही नहीं उठता!<br />यह तो छन्दविशेष का नाम है!<br />फिर भी आप अपने तर्कों से इसे कुण्डलिया छन्द मन रहे हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-1780244285193300612011-01-16T21:50:05.771+05:302011-01-16T21:50:05.771+05:30काफ़ी रोचक। हमें तो पढकर मज़ा आया। हम भी कल बंद कर...काफ़ी रोचक। हमें तो पढकर मज़ा आया। हम भी कल बंद कर ही सो गए थे।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-547024557322749492011-01-16T20:45:56.507+05:302011-01-16T20:45:56.507+05:30सुंदर प्रस्तुति नवीन भाई। आपको छंदों के बारे में इ...सुंदर प्रस्तुति नवीन भाई। आपको छंदों के बारे में इतना गहरा ज्ञान है। इस ज्ञान को हम जैसे लोगों में बाँटने के लिए एक ब्लॉग शुरू कर दीजिए छंदशास्त्र का।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-26812243642723696482011-01-16T20:30:15.522+05:302011-01-16T20:30:15.522+05:30आदरणीय शास्त्री जी सादर नमस्कार| गुरुमुख से सीखे ह...आदरणीय शास्त्री जी सादर नमस्कार| गुरुमुख से सीखे हुए कुंडलिया के तीन प्रारूप जानता हूँ मैं, वो इस प्रकार हैं:-<br /><br />एक दम पुरानी कुण्डलिया<br />पहली दो पंक्ति दोहा की<br />तीसरी और चौथी पंक्ति रोला की<br />पाँचवी और छठी पंक्ति छप्प्य की<br />शुरू और अंत में समान शब्द<br /><br />गिरिधर कविराय से सन्दर्भित कुण्डलिया<br />पहली दो पंक्ति दोहा की<br />तीसरी से छठी पंक्ति रोला की<br />शुरू और अंतwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-46752001166196049382011-01-16T18:04:45.927+05:302011-01-16T18:04:45.927+05:30कुण्डलिया लिखने वाले तो
इसे पढ़कर आँसू बहाते होंग...कुण्डलिया लिखने वाले तो <br />इसे पढ़कर आँसू बहाते होंगे!<br />--<br />यह कुण्डलिया तो नहीं है <br />मगर छक्का बहुत अच्छा है!<br />--Anonymousnoreply@blogger.com