tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post4043466938791421703..comments2024-03-22T11:27:03.707+05:30Comments on साहित्यम्: अपनों से अपनी सी. . . - आ. संजीव वर्मा 'सलिल'www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-4117341391829120492012-10-29T18:08:58.642+05:302012-10-29T18:08:58.642+05:30------बहुत सही कहा आदम साहब ने---- इसका अर्थ यही ह...------बहुत सही कहा आदम साहब ने---- इसका अर्थ यही है की वे चाहते थे की अदबी -झमेले से ग़ज़ल बाहर निकले .....हो सकता है वे किसी कारणवश स्वयं नहीं कर पा रहे हों परन्तु दिल की टीस दर्ज है ...यहाँ .....<br /><br />इन अदबी इदारों से भी हाँ फन की तवज्जो है, <br />सुखनवर का तो सुख है किन्तु शहनाई में भावों की । डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-87871712852581280462012-10-23T00:07:57.690+05:302012-10-23T00:07:57.690+05:30अब क्या कहूँ? अदम गोंडवी साहब ने लिखा है कि
"...अब क्या कहूँ? अदम गोंडवी साहब ने लिखा है कि<br />"ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में।<br />मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में॥"<br />लेकिन उनकी ग़ज़लों में बहर का या काफ़िए रदीफ़ का दोष ढूँढना भूसे के ढेर में से सुई ढूँढने के बराबर होता है। जब एक साधारण किसान ग़ज़ल के शिल्प पर ऐसी महारथ हासिल कर सकता है तो विद्वान क्यों अपनी विधा के शिल्प में कोई कमी छोड़े?‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-5933263974277792042012-10-22T23:44:08.210+05:302012-10-22T23:44:08.210+05:30 कमल जी ...आपने अच्छी व्याख्या की है ...प्रायः यह ... कमल जी ...आपने अच्छी व्याख्या की है ...प्रायः यह हो रहा है कि कुछ साहित्यकार...उसी लीक पर चलने के आदी होजाते हैं वे उस घेरे से आगे देख ही नहीं पाते.. ---क्योंकि प्रयोगों व नवीनता एवं गतिशीलता के लिए सिर्फ उपलब्ध पुरा-शिल्प का ही समुचित ज्ञान नहीं अपितु साहित्य की आत्मा एवं भाषा, संस्कृति, विविध साहित्य एवं विविध विषयक ज्ञान की आवश्यकता होती है ... <br />--- आपने सही कहा कि पाठक क्या अधिकाँश डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-13298596629058254822012-10-22T19:42:07.374+05:302012-10-22T19:42:07.374+05:30आ० श्याम गुप्त के सुझावों से सहमत हूँ | विषय को आध...आ० श्याम गुप्त के सुझावों से सहमत हूँ | विषय को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी देखना आवश्यक है | हिंदी का अध्ययन और अध्यापन दोनों हिंदी के काम चलाऊ ज्ञान तक सीमित हो चुके हैं |छात्र को पास होने और अध्यापक को उसे पास कराने तक ही कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है | भाषा, साहित्य, व्याकरण, शब्द-ज्ञान, रचना कौशल, शिल्प आदि गंभीर अध्ययन और मनन का विषय हैं जिसके लिए पर्याप्त समय,साधन, साधना, गहरी रुचि और Kamalhttps://www.blogger.com/profile/16327379175327363662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-70258412772769614822012-10-22T17:36:32.391+05:302012-10-22T17:36:32.391+05:30मुझे आश्चर्य नहीं हुआ इस विस्तृत चर्चा को पढ़कर,...मुझे आश्चर्य नहीं हुआ इस विस्तृत चर्चा को पढ़कर, इतना अवश्य कहूँगा कि इससे संबंधित अन्य पोस्ट मैनें नहीं पढ़ीं। मेरी टिप्पणी केवल सलिल जी के आलेख से उत्पन्न हुई है। <br />हिन्दी में काव्य विधा का पटल विस्तीर्ण है और मैं मूलत: कवि नहीं इसलिये इन विधाओं में प्रयास करने का साहस कभी नहीं जुटा पाया। सबकी अपनी निजि क्षमता होती है। आयोजक के लिये यह भी व्यवहारिक नहीं कि वो विश्लेषण कर कमज़ोरतिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-27953200854598918162012-10-22T16:53:54.367+05:302012-10-22T16:53:54.367+05:30पोस्ट और संवाद सभी पठनीय हैं । बधाई आप सभी को और आ...पोस्ट और संवाद सभी पठनीय हैं । बधाई आप सभी को और आयोजन के लिये नवीन जी को --मयंकMayank Awasthihttps://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-1293019366726124132012-10-22T10:28:50.047+05:302012-10-22T10:28:50.047+05:30भाई नवीनजी, पुनः क्षमा, चाह कर रेगुलर नहीं हो पा र...भाई नवीनजी, पुनः क्षमा, चाह कर रेगुलर नहीं हो पा रहा हूँ. खैर..<br />आदरणीय सलीलजी की प्रस्तुत पोस्ट सारगर्भित है, स्पष्ट है और साहसी है. इसके कथ्य पर फिर आऊँगा.<br />अभी इस दोहा के साथ कि,<br />निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय<br />बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय<br />यहाँ निंदक की निंदा को हम समालोचना के समकक्ष रख स्वयं के अंदर सकारात्मक परिवर्तन की चेष्टा करते हैं.<br />मुझे यह देख कर Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-69843806042164976982012-10-22T10:24:33.103+05:302012-10-22T10:24:33.103+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-60756168709179417312012-10-22T09:55:45.451+05:302012-10-22T09:55:45.451+05:30बिलकुल सही कहा आशा जी ...मेरे विचार से इसी अभिप्रा...बिलकुल सही कहा आशा जी ...मेरे विचार से इसी अभिप्राय: हेतु इस मंच का आयोजन है..<br /><br />-"साहित्य भाव जगत की रागात्मक वृत्ति है .गूंगे का गुड़ इसके निष्पादन के लिए किसी तर्क पंडित की ज़रुरत नहीं |"<br />---गूंगे का गुड़...सिर्फ आत्मानंद-संतोष-वृत्ति तक है ...समष्टि-भाव एवं प्रगति हेतु ...विचार विनिमय, विमर्श व तर्क की आवश्यकता है ताकि उपयुक्तता स्थित हो सके......साहित्य सिर्फ रागात्मक डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-11466002842457386732012-10-22T09:34:55.537+05:302012-10-22T09:34:55.537+05:30"पोस्ट दर पोस्ट न सिर्फ़ खुले-विचारों को राह द..."पोस्ट दर पोस्ट न सिर्फ़ खुले-विचारों को राह दे रहा हूँ, बल्कि कुछ न कुछ विचार-विमर्श हेतु बिन्दु भी उपलब्ध रहने दे रहा हूँ..."<br /><br />-- बहुत अच्छा कर रहे हैं नवीन जी ...साहित्य की प्रगति हेतु यह उचित है...हो सकता है इस प्रकार के मंथन द्वारा कोई २४ वाँ ..प्रकार का दोहा आजाय...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-42316269702547100082012-10-22T09:31:40.092+05:302012-10-22T09:31:40.092+05:30"धर्मेन्द्र कुमार सज्जन के दोहे आयें तो पढ़ के..."धर्मेन्द्र कुमार सज्जन के दोहे आयें तो पढ़ के देखना - उस बंदे ने एक नहीं दो नहीं चार बार अपने दोहों को बदला है, पाँचवीं बार भी बदलवा दे तो मुझे आश्चर्य न होगा, वह व्यक्ति साहित्य से सच्ची मुहब्बत करता है।"<br /><br />---- नवीन जी मुझ से पूछे गए अपने प्रश्न का उत्तर तो आपने स्वयं ही उपरोक्त कथन में देदिया है....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-90616423918568969302012-10-22T06:54:53.759+05:302012-10-22T06:54:53.759+05:30छंद लेखन बहुत ही कठिन कार्य है |पर कोशिश करने में ...छंद लेखन बहुत ही कठिन कार्य है |पर कोशिश करने में क्या बुराई है|<br />बहुत उपयोगी लेख |<br />आशा Asha Lata Saxenahttps://www.blogger.com/profile/16407569651427462917noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-42219778659487829162012-10-22T00:16:16.952+05:302012-10-22T00:16:16.952+05:30साहित्य भाव जगत की रागात्मक वृत्ति है .गूंगे का गु...साहित्य भाव जगत की रागात्मक वृत्ति है .गूंगे का गुड़ इसके निष्पादन के लिए किसी तर्क पंडित की ज़रुरत नहींvirendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-8004700685178134402012-10-22T00:14:46.191+05:302012-10-22T00:14:46.191+05:30धर्मेन्द्र कुमार सज्जन के दोहे आयें तो पढ़ के देखना...धर्मेन्द्र कुमार सज्जन के दोहे आयें तो पढ़ के देखना - उस बंदे ने एक नहीं दो नहीं चार बार अपने दोहों को बदला है, पाँचवीं बार भी बदलवा दे तो मुझे आश्चर्य न होगा, वह व्यक्ति साहित्य से सच्ची मुहब्बत करता है।<br /><br />छंद साधना का विषय है - समझने वाले समझते हैं।www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-26935643247447096472012-10-22T00:07:13.022+05:302012-10-22T00:07:13.022+05:30श्याम जी सरल दोहा ढ़ंग से आने लगें एक बार, फिर सर्प...श्याम जी सरल दोहा ढ़ंग से आने लगें एक बार, फिर सर्प क्या वानर, मंडूक, श्येन जैसे 23 प्रकार के विभिन्न दोहों पर भी कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँगी। पहले सरल से दिखने वाले प्रारूप पर तो ठीक-ठाक दोहे पढ़ने को मिल जाएँ, ऐसे दोहे जिन को सम्पादन की आवश्यकता ही न हो। www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-48479335408449133242012-10-21T23:59:31.593+05:302012-10-21T23:59:31.593+05:30महेंद्र जी
सहमत, सीखने वालों में ख़ुद मैं भी तो श...महेंद्र जी <br /><br />सहमत, सीखने वालों में ख़ुद मैं भी तो शामिल हूँ। आप सभी के अर्जित ज्ञान और अनुभव से मैं भी तो लाभान्वित हो रहा हूँ। परंतु जिस सहृदयता से आप ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया, ऐसे प्रसंग कम हैं।www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-77549730342277847982012-10-21T23:57:50.710+05:302012-10-21T23:57:50.710+05:30तिलक जी
दादा आप के मत से सहमत हूँ इसीलिए तो पोस्...तिलक जी <br /><br />दादा आप के मत से सहमत हूँ इसीलिए तो पोस्ट दर पोस्ट न सिर्फ़ खुले-विचारों को राह दे रहा हूँ, बल्कि कुछ न कुछ विचार-विमर्श हेतु बिन्दु भी उपलब्ध रहने दे रहा हूँ..... परन्तु अब तक की पोस्ट्स ने ही माहौल इस क़दर बोझिल कर दिया है कि आगे आयोजन किस तरह बढ़ाऊँ ये प्रश्न उपस्थित हो रहा है।<br /><br />अव्वल तो छंद पर काम करना ही टेढ़ी खीर है, उस पर भी एक-एक व्यक्ति से व्यक्तिगत संपर्क कर केwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-69675645218328996822012-10-21T23:51:00.294+05:302012-10-21T23:51:00.294+05:30श्याम जी
अनेक साथियों के सम्पादन के आग्रह के बीच...श्याम जी <br /><br />अनेक साथियों के सम्पादन के आग्रह के बीच आप हठ करते रहे हैं कि रचनाएँ सम्पादन किए बिना ही पोस्ट की जाएँ, परंतु जब आप के दोहों के बारे में पूछा गया कि यूँ ही पोस्ट कर दें या सुधार कर? तो उस वक़्त फिर आप ने अपने हठ को क्यूँ छोड़ दिया?www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-76318952626364357942012-10-21T23:48:10.561+05:302012-10-21T23:48:10.561+05:30रचना विधान:
सम पदांत में गुरु - लघु अनिवार्य। ये ...रचना विधान:<br /> सम पदांत में गुरु - लघु अनिवार्य। ये कुछ नियम हैं जो सर्वमान्य हैं, ...?<br /><br />--- सर्प दोहे में यह नियम लागू नहीं होता <br />उथल-पुथल नित-नित नवल,समय अनवरत करत.<br />कण-कण पर निज परम-पद, धमक-धमक कर धरत...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-30357784855048611142012-10-21T23:34:49.284+05:302012-10-21T23:34:49.284+05:30इस मंच से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। सीखने की प...इस मंच से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। सीखने की प्रक्रिया तो गर्भ से कब्र तक जारी रहती है। <br />आभार।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-51678524906142775212012-10-21T23:15:24.090+05:302012-10-21T23:15:24.090+05:30कपूर जी...
----टिप्पणियाँ सत्य से दूर कैसे हो सकती...कपूर जी...<br />----टिप्पणियाँ सत्य से दूर कैसे हो सकती हैं ...आपका सत्य आपके ज्ञान के अनुरूप है टिप्पणीकार का सत्य उसके ज्ञान के अनुरूप ....किसका ज्ञान वास्तविक सत्य है ...कैसे निर्धारण होगा?...इसी तर्कपूर्ण विवेचना, व्याख्या विविध विचार, उदाहरण आदि की प्रस्तुतियों द्वारा....<br />---क्या आपके विचार में नवीनतम-पोस्ट पर साधना वैद जी के दोहे श्रेष्ठ नहीं थे ...कोई भी रचना श्रेष्ठतम नहीं होती जिस डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-40106513988508302962012-10-21T23:00:47.277+05:302012-10-21T23:00:47.277+05:30"रचनाकार की श्रेष्ठ रचनाएँ ही सामने आएं और अन...<br />"रचनाकार की श्रेष्ठ रचनाएँ ही सामने आएं और अनावश्यक वाद-विवाद भी न हो इस हेतु बेहतर है कि दोषपूर्ण रचना प्रस्तुत ही न हो।"<br /><br />---फिर तो प्रसिद्द कवियों की रचनाएँ छापते/ पढवाते रहिये ...नए कवियों से क्या लेना देना..<br />इस मंच का क्या अभिप्राय है ...<br />--मेरे विचार से तो नवीन जी का आयोजन सफलतापूर्वक, मंच के उद्देश्य के तहत चल रहा है ....<br />---कौन सुनिश्चित करेगा कि डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-42257830625186304932012-10-21T23:00:29.641+05:302012-10-21T23:00:29.641+05:30आदरणीय सलिल जी, आपके इस सारगर्भित आलेख में स्पष्...आदरणीय सलिल जी, आपके इस सारगर्भित आलेख में स्पष्टता का साहस प्रशंसनीय है। दुर्भाग्य ही कहूँगा कि इतना भी सुनने को तैयार नहीं है कोई। टिप्पणियॉं भी सत्य से दूर एक अलग दुनिया बसाये हुए हैं। दु:खद प्रतीत होता है जब व्यक्तिगत संबंध टिप्पणी पर भारी पड़ने लगते हैं। कहीं चाटुकारिता तो कहीं मात्र विरोध के लिये विरोध। साहित्य अभिव्यक्ति का माध्यम है तो सहज संप्रेषण तो इसकी पहली आवश्यकता हो गयातिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.com