tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post2341404841877438216..comments2024-03-22T11:27:03.707+05:30Comments on साहित्यम्: त्यौहार बिन जीवन-जगत बस व्यर्थ का व्यापार हैwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-78851612260243464922011-12-07T20:53:31.622+05:302011-12-07T20:53:31.622+05:30dhanyavaad ---avasthee jee...aabhaar...dhanyavaad ---avasthee jee...aabhaar...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-67911593700800201582011-10-18T23:23:58.030+05:302011-10-18T23:23:58.030+05:30हाँ, चाँद -सूरज की चमक थी क्षीण उसकी चमक से । वह च...हाँ, चाँद -सूरज की चमक थी क्षीण उसकी चमक से । <br>वह चमक आज विलीन है निज देह- दर्शन दमक से।<br>क्या बात है!! सुन्दर और सामयिक छंद है.वन्दना अवस्थी दुबेhttp://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-44119325026275318052011-10-19T00:14:08.625+05:302011-10-19T00:14:08.625+05:30बहुत ही सुन्दर छंद हैं श्याम जी के ! मेरे छंद के प...बहुत ही सुन्दर छंद हैं श्याम जी के ! मेरे छंद के प्रत्युत्तर में उनके इस छंद का स्वागत है ! दिग्भ्रमित नारी का मार्गदर्शन करने के लिये आपका धन्यवाद श्याम जी ! <br><br>अपनी छवि स्थापना हित सोचना होगा उसे, <br>निज देह दर्शन दमक का सुख छोड़ना होगा उसे,<br>अपने सुयश की ध्वजा को ऊँचा उड़ाने के लिये <br>दम घोंटती हर हवा का मुख मोड़ना होगा उसे ! <br><br>साभार !Sadhana Vaidhttp://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-86731387190305058052011-10-19T05:18:10.981+05:302011-10-19T05:18:10.981+05:30बहुत सुन्दर...आनन्द आ गया.बहुत सुन्दर...आनन्द आ गया.Udan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-90776551266086687272011-10-19T08:39:59.126+05:302011-10-19T08:39:59.126+05:30बहुत बहुत आभार ||बहुत बहुत आभार ||रविकरhttp://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-89006656746394424582011-10-19T08:49:01.697+05:302011-10-19T08:49:01.697+05:30आप सभी के छंद पढने के बाद तो लग रहा है कि हमें तो ...आप सभी के छंद पढने के बाद तो लग रहा है कि हमें तो सबसे अन्त में आना चाहिए था। बडा काम्पलेक्स सा हो रहा है। बहुत ही अच्छे छंद।ajit guptahttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-85302965762062500232011-10-19T13:35:34.604+05:302011-10-19T13:35:34.604+05:30त्यौहार बिन जीवन-जगत बस व्यर्थ का व्यापार हैहिल मि...त्यौहार बिन जीवन-जगत बस व्यर्थ का व्यापार है<br>हिल मिल उठें बैठें चलें यह भाव ही त्यौहार है...<br><br>श्याम जी के छंदों ने तो मन मोह लिया ... सामयिक और वर्तमान को परिलक्षित करते हुवे रचनाएं होँ तो समाज का आइना बन जाती हैं ... ये छंद भी इसी श्रेणी में हैं ...दिगम्बर नासवाhttp://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-88457480198478007782011-10-19T15:37:55.001+05:302011-10-19T15:37:55.001+05:30तीनों ही छंद भाव और कला की दृष्टि से संपूर्ण हैं। ...तीनों ही छंद भाव और कला की दृष्टि से संपूर्ण हैं। बहुत बहुत बधाई श्याम गुप्त जी कोधर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’http://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-28296835158838185452011-10-19T17:56:49.123+05:302011-10-19T17:56:49.123+05:30सुन्दर प्रस्तुतिसुन्दर प्रस्तुतिसुरेन्द्र सिंह " झंझट "http://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-39358282321896690992011-10-19T19:05:17.532+05:302011-10-19T19:05:17.532+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुति..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..Kailash C Sharmahttp://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-73732511411039538502011-10-20T18:27:16.996+05:302011-10-20T18:27:16.996+05:30हर प्रविष्टि में हरिगीतिका का भिन्न-भिन्न रूप मन औ...हर प्रविष्टि में हरिगीतिका का भिन्न-भिन्न रूप मन और इस मंच को सरस बना रहा है।<br>श्री श्याम गुप्त जी को सुंदर छंदों के लिए बधाई।mahendra vermahttp://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-44896085231509790552011-10-23T09:51:04.948+05:302011-10-23T09:51:04.948+05:30धन्यवाद नवीन जी ,सुंदर व समीक्षात्मक प्रस्तुति के ...धन्यवाद नवीन जी ,सुंदर व समीक्षात्मक प्रस्तुति के लिए ....<br>---धन्यवाद महेंद्र जी ,कैलाश जी ,झंझट जी,सज्जन जी, <br>धन्यवाद -रविकर, उड़न तश्तरी व वन्दना जी ...डा. श्याम गुप्तhttp://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-86782765507319531202011-10-23T09:54:41.734+05:302011-10-23T09:54:41.734+05:30धन्यवाद --साधना जी ---आभार ..सुंदर प्रति-छंद हेतु ...धन्यवाद --साधना जी ---आभार ..सुंदर प्रति-छंद हेतु ..<br><br>धन्यवाद ..दिगंबर जी..साहित्य होना ही चाहिए समाज का आइना ...<br><br>धन्यवाद ..अजित जी ...अप तो ध्वज-वाहक हैं जो सदा ही वरेण्य होते हैं ... आभार ..डा. श्याम गुप्तhttp://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-8761591675971966462011-11-17T17:11:04.211+05:302011-11-17T17:11:04.211+05:30आप सरस्वती -पुत्र है नि:सन्देह !! भाषा बोल रही है ...आप सरस्वती -पुत्र है नि:सन्देह !! भाषा बोल रही है और विन्यास भी !! हरिगीतिका और त्यौहार दोनो की समर्थ परिभाषा आपने शब्दबद्ध की है बहुत ही खूबसूरती के साथ -quotable है!!! -- लेकिन युग श्रम विभाजन के समय नारी ने गृहकार्य चुना --वर्तमान समय नैतिक पतन की पराकाष्ठा पर जी रहाहै इसलिये स्त्री ज़िस बन रही है -- आभा मन्द हो रही है -- बहुत हे समर्थ पंक्तियाँ जिनमें समय विडम्बना उभर आयी है !! आपको नमन Mayank Awasthihttp://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.com