19 अगस्त 2016

कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित - अशोक चतुर्वेदी

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पिछले दिनों राज्य विधान सभा में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के संबंध में दिए बयान पर राजनीति गरमा गयी ! महबूबा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को कबूतरों को बिल्ली के आगे फेंकने की तरह घाटी में वापस नहीं बसाया जा सकता अर्थात पंडितों को कश्मीर घाटी में उनके मूल स्थानों में बसाकर उन्हें आतंकवादियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ा जा सकता ! महबूबा का यह बयान कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के उन बयानों के उत्तर में था जिसमें हुर्रियत के दोनों धड़ों के नेताओं सहित अन्य सभी अलगाववादी नेता मिलकर कश्मीर घाटी में पंडितों के लिए अलग कालोनी का विरोध करते हुए उन्हें उनके मूल स्थानों  में ही बसाने का कह रहे थे ! 

मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद से कश्मीर के मुख्य धारा के राजनैतिक दलों से लेकर अलगाववादी तक सब महबूबा के पीछे पड़ गये ! मुख्य विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और माकपा ने मुख्यमंत्री पर बरसते हुए आरोप लगाया कि महबूबा ने अपने बयान से पंडितों को कबूतर बताने की तुलना में कश्मीरी मुसलमानों को बिल्ली बताकर, उन सभी को आतंकवादी बताया है जिनसे पंडितों को खतरा है और इसके लिए उन्हें कश्मीरियों से माफी माँगनी चाहिए, वहीँ हुर्रियत नेता गिलानी ने तो महबूबा का दिमाग ख़राब हो गया बताते हुए कहा कि सत्ता उनके दिमाग को चढ़ गयी है ! 

अपने पर हर कश्मीरी को आतंकवादी बताने के आरोप लगाने वालों का महबूबा ने बहुत सटीक उत्तर से मुंह बंद कर दिया ! विधान सभा में ही इन आरोपों का जबाब देते हुए उन्होंने कहा कि मेने तो  एक उदाहरण दिया था कि कबूतरों को बिल्ली के आगे नहीं छोड़ा जा सकता ! पंडितों को डर आम कश्मीरी मुस्लिम से नहीं बल्कि उन लोगों से है जिन्होंने संग्रामा, बंदहामा जैसे नरसंहार किये या जिन लोगों ने मीरवाइज फारुख और अब्दुल गनी लोन जैसे नेताओं की हत्या की ! आज भी जब घाटी में आतंकवाद है और पार्टियों चाहे वह पीडीपी हो, भाजपा हो ,नेशनल कांफ्रेंस हो या कांग्रेस, सबके नेता या वर्कर अपने मूल निवासों में न रह कर श्रीनगर के होटलों में रहते हैं,सुरक्षा कर्मियों के बिना कहीं जाने की हिम्मत नहीं कर सकते तो कश्मीरी पंडित कैसे अपने मूल निवासों में जा कर रहने की सोच सकते हैं !

महबूबा मुफ्ती की कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के बारे में कही गयी बात,कि उन्हें उनके मूल स्थानों पर रहने के लिए नहीं भेजा जा सकता, बिलकुल सही है पर लगता है अलगाववादी तत्वों की धमकियों के आगे वे भी झुक गयी हैं तभी तो उनकी सरकार ने पंडितों के लिए अलग कालोनी का विचार त्याग दिया और अब उनके अनुसार कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर में ट्रांजिट कालोनीयां बनेंगी जिनमें ५०% कश्मीरी पंडित तथा शेष ५०% में कश्मीर से गए हुए सिख और मुस्लिम बसेंगे, इन कालोनियों में भी ये सभी विस्थापित अस्थायी रूप से एक ट्रांजिट केंप की तरह रहेंगे और कुछ समय बाद जब हालात ठीक हो जायें या वे खुद को सुरक्षित महसूस करने लगें तब उन सभी को  अपने अपने मूल स्थानों में रहने जाना होगा और जैसा केन्द्रीय गृह मंत्री राज नाथ सिंह के बयान से भी लगता यही है कि केन्द्र सरकार का भी इसी योजना को समर्थन है! पर यह सरकारी योजना कश्मीरी पंडितों की उस मांग के विपरीत है जो उनके संगठन पुनून कश्मीर के १९९१ के मार्गदर्शन प्रस्ताव में थी जिसके अनुसार कश्मीरी पंडित तभी कश्मीर लौटेंगे जब उनके लिए कश्मीर में एक अलग केन्द्र शासित होम लैंड बनाया जायेगा और यही कारण है कि २००१ से लेकर अब तक केन्द्र और जम्मू कश्मीर सरकार की पंडितों के पुनर्वास की विभिन्न योजनायें आने के बाद भी आज तक सिर्फ एक कश्मीरी पंडित परिवार घाटी में लौटा है !

२००८ में मनमोहन सिंह सरकार ने पंडितों की घर वापसी के लिए १६०० करोड़ का पैकेज लाया जिसमे उनकी नौकरी, घर और रोजगार का इंतजाम किया जाना था पर उस पैकेज पर सिर्फ एक परिवार के अलावा कोई पंडित नहीं लौटा ! २०१४ चुनावों में भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में ससम्मान वापसी का वायदा था,जम्मू कश्मीर विधान सभा चुनावों के लिए जारी पार्टी के विजन डाकूमेंट में भी जिसे दुहराया गया था पर इसके लिए सिर्फ बातों,बयानों या वायदों के अतिरिक्त कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया ! पिछले माह केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर सरकार से कश्मीरी पंडितों की कालोनीयों के लिए स्थान चिन्हित करने का कहा जिसके लिए राज्य सरकार ने तीन स्थान चिन्हित किये !

     पंडितों की कालोनियों के लिए ये स्थान चुने जाने की खबर से अलगाववादियों की नींद उड़ गयी,उनके सभी गुट इसके विरुद्ध एक हो गए और कश्मीर में हड़तालों और बंद का एक दौर शुरू हो गया ! उनका कहना था पंडितों का स्वागत है लेकिन अलग कालोनियों में नहीं बल्कि वे अपने पुराने घरों में ही वापस आयें ! पहली बात तो यह की पंडितों के पुराने घर अब रहे ही नहीं,उनमे से अधिकतर तो जला दिए गए और बचे खुचे जबरदस्ती खरीद लिए गए फिर पंडित वापस उन घरों में कैसे रहें जहाँ चारों ओर उनके खिलाफ वातावरण हो और उनके स्वागत की बात कोन लोग कह रहे हैं,यासीन मलिक जैसे आतंकवादी जो पंडितों के पलायन के जिम्मेदार हैं,जो पंडितों की कालोनी बनने पर खून बहाने की बात कर रहे हैं और जिन्हें ६२००० पंडित परिवारों के लगभग तीन लाख लोगों के वापस अपने कश्मीर आ जाने से कश्मीर की डेमोग्राफी बदलने का डर सता रहा है !

पर ये अलगाववादी अपने उद्देश्य में सफल हो गए,जम्मू कश्मीर सरकार और केंद्र दोनों के सुर इन धमकियों के आगे बदल गए और कश्मीरी पंडितों की विशुद्ध कालोनियों की जगह अब उनके लिए ट्रांजिट कालोनियों ने ले ली,मतलब पंडितों पर एक प्रयोग कर के देख लिया जाय,अच्छी तरह यह जानते हुए कि कोई भी कश्मीरी पंडित इन ट्रांजिट कालोनियों में जाने के लिए कभी तैयार नहीं होगा!

असल में कश्मीरी पंडितों के साथ उन कबूतरों की तरह ही बरताव किया जा रहा है जिनके घोंसले उजाड़ दिए गए हैं और पिछले २६ वर्षों से जिन्हें फिर बसाने के नाम पर कभी कुछ चुग्गा डाला जाता है और कभी कुछ, पर उन्हें उनके घोंसले देने के लिए गंभीर कोई नहीं !      
               

       

कश्मीर पर साहसिक कदम - अशोक चतुर्वेदी

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भारत की स्वतंत्रता के बाद पहली बार इतने वर्षों में देश की किसी सरकार ने कश्मीर पर एक सही स्टैंड लिया है ! राज्यसभा में कश्मीर पर हुई बहस के बाद इसी मसले पर विचार विमर्श के लिए बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है और जब हम जम्मू कश्मीर की बात करते हैं तो राज्य के चारों भागों जम्मू,लद्दाख,कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की चर्चा करनी चाहिए, प्रदेश के इन  चारों भागों के लोग राज्य के स्टेक होल्डर हैं अतः राज्य के बारे में किसी भी निर्णय करने में इनकी हिस्सेदारी होनी चाहिए ! मतलब साफ़ था कि न तो सिर्फ कश्मीरियों की हिंसा पूरे राज्य के विकास और शांति को बंधक बना सकती है और न ही पाकिस्तान, जिसने राज्य के एक बड़े हिस्से पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है, कश्मीर के अंतर्राष्ट्रीयकरण के नाम पर भारत को हमेशा ब्लैकमेल कर सकता है , उल्टे भारत ही अब पाकिस्तान को पीओके और बलूचिस्तान में उसके द्वारा वहां के लोगों पर किये जा रहे अत्याचारों पर बेनकाब करेगा ! अब भारत दुनिया को बताएगा कि कैसे पाकिस्तान पीओके के लोगों को उनके मूल अधिकारों तक से वंचित रखे हुए है और कैसे पाकिस्तानी अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले बलूचों को बेरहमी से मारा जा रहा है ! 

असल में आज़ादी के बाद से अब तक जम्मू कश्मीर के मसले में पाकिस्तान के आक्रामक रुख के मुकाबले भारत का रुख हमेशा रक्षात्मक ही रहा, 1948 में पाकिस्तानी आक्रामकों द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य की कब्जाई हुई भूमि को दुश्मनों से छुड़ाने में लगी बढ़ती हुई भारतीय सेना को रोककर हम ही इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए अन्यथा कुछ दिनों की ही बात थी जब पूरे जम्मू कश्मीर राज्य से हमारी सेना उन्हें खदेड़ देती किन्तु हमने खुद संयुक्तराष्ट्र की पंचायत के चक्कर में कि संयुक्तराष्ट्र हमें उस हिस्से को पाकिस्तान से वापिस दिला देगा, राज्य के ऐक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में रह जाने दिया और पाकिस्तान की नीयत जानते हुए भी इस अस्वाभाविक और बेवकूफी भरे सपने के सच होने का हमें इतना विश्वास था कि हमने इसी आशा में पीओके के क्षेत्रों और लोगों के नाम पर जम्मू कश्मीर राज्य विधान सभा में 24 सीटें खाली रखी कि उन क्षेत्रों के संयुक्तराष्ट्र द्वारा पाकिस्तान से वापिस दिला देने पर इन सीटों को वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा भरा जायेगा ! 68 वर्ष बीत जाने पर आज भी पीओके के नाम पर खाली रखी ये सीटें आज भी नहीं भरी गयीं !

तीन युद्ध और ऐक कारगिल के बाद भी स्तिथि वही की वही है, पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर का वह हिस्सा वापिस लेना तो दूर, हमने इन युद्धों में जीते हुए सामरिक महत्त्व के क्षेत्र भी पाकिस्तान को वापिस दे दिए  ! हाँ 22 फरवरी 1994 को हमारी संसद ने सर्वसम्मति से ऐक प्रस्ताव अवश्य पारित किया जिसके अनुसार पाकिस्तान उन क्षेत्रों को खाली कर दे जो उसने भारतीय राज्य जम्मूकश्मीर के अपने आक्रमण द्वारा कब्ज़ा लिए हैं ! लेकिन ये प्रस्ताव सिर्फ कागजी प्रस्ताव ही रह गया और पाकिस्तान यथावत पीओके को भूल कर भारतीय कश्मीरियों के आत्मनिर्णय का सबसे बड़ा हिमायती होने के नाम पर हमें धमकाते हुए विश्व के हर फोरम पर कश्मीर का मसला उठता रहा और हम सिर्फ अपनी सफाई देते रहे बिना विश्व को ये बताये कि असली अपराधी तो पाकिस्तान है जिसने जम्मू कश्मीर के ऐक बड़े भू भाग पर न केवल अवैध कब्जा कर रखा है बल्कि इसका ऐक हिस्सा चीन को भी दे दिया है !

अब जब पाकिस्तान के प्रति नीति में आक्रामक रुख अपनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं विदेश मंत्रालय को पीओके पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे और वहां के नागरिकों पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा अत्याचार के मामले उठाने का निर्देश दिए गए हैं तो ऐक ही दिन में पाकिस्तान की अकड़ ढीली पड़ गयी है और अब सरताज अजीज कश्मीर पर भारत को बातचीत के निमंत्रण की बात करने लगे हैं !

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक ने कश्मीर में हालात की जानकारी और वहां जा कर लोगों से मिलने के लिए वहां सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया, मतलब साफ़ है कि कोई सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर नहीं जायेगा ! समझने की बात है कि 2008 और 2010 के बिगड़े हालातों में वहां संसदीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गए थे पर क्या परिणाम रहे, समस्या की जड़ में के लोग इनसे मिलने ही नहीं आये, हाँ प्रतिनिधिमंडल के सदस्य खुद गिलानी जैसे हुर्रियत नेताओं को महत्त्व देते हुए उनके घर उनसे मिलने गए और नतीजा क्या निकला, गिलानी आज फिर वहीँ का वहीँ है ! हाँ इनमे से कुछ वहां जा कर अपने बेतुके बयानों से राज्य सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं या सुरक्षाबलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं !     

इस सर्वदलीय बैठक में ऐक और नीतिगत बदलाव आया जब यह निर्णय लिया गया कि कश्मीर के मुख्यधारा के राजनैतिक दल,सिविल सोसाइटी या हर किसी से तो बातचीत की जाय लेकिन हुर्रियत जैसे अलगाववादियों को कोई महत्त्व न देते हुए उनसे कोई बातचीत न की जाय ! ऐसे देश द्रोहियों से बात की भी कैसे जा सकती है जो इस देश के,भारत के हर प्रतीक से नफरत करते हों और उसका अपमान भी ! जो पाकिस्तानी पिट्ठू कश्मीर की दीवारों पर गो इंडिया गो बैक के नारे लिख रहे हैं, जो पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर 14 अगस्त को कश्मीर भर में पाकिस्तानी झंडे फहराने की घोषणा कर रहे हैं और भारतीय स्वतंन्त्रता दिवस पर सिविल कर्फ्यू और घरों पर काले झंडे लगाने की योजना बना रहे हैं ! इन पाकिस्तान परस्तों को न कश्मीर की आज़ादी से कोई मतलब है और न कश्मीरियों के भविष्य से, इन्हें तो बस लाशों के ढेर पर अपनी नेतागीरी चमकानी है ! अतः कश्मीरियों के इन स्वयंभू नेताओं से तो बात करने में कोई तुक ही नहीं है !

प्रधानमंत्री के उठाये गए इन साहसिक कदमों से निश्चय ही बिगड़े हुए पड़ोसी को दूसरों के घर में आग लगाने का तापमान पता चलेगा और कश्मीर घाटी में उसके पिट्ठूओं को भी अपनी औकात समझ आएगी !                                   

चार ग़ज़लें - अजीत शर्मा 'आकाश'

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ये तय है कि जलने से न बच पाओगे तुम भी ।
शोलों को हवा दोगे, तो पछताओगे तुम भी ।

पत्थर की तरह लोग ज़माने में मिलेंगे
शीशे की तरह टूट के रह जाओगे तुम भी ।

बाज़ार में ईमान को तुम बेच तो आये
आईना जो देखोगे तो शरमाओगे तुम भी ।

मंज़िल की तरफ़ शाम ढले चल तो पड़े हो
रस्ता वो ख़तरनाक है, लुट जाओगे तुम भी ।

रावण की तरह हश्र न हो जाए तुम्हारा
सीता को छलोगे तो सज़ा पाओगे तुम भी ।

बहरे हजज़ मुसमन अख़रब
मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊलु मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
221 1221 1221 122

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बाग़ों की रौनक़ ख़तरे में, हरियाली ख़तरे में है ।
कुछ तो सोचो, पेड़ों की डाली-डाली ख़तरे में है ।

जाने कैसे दिन आयें, अब जाने कैसा दौर आये
कहते हैं अख़बार वतन की खुशहाली ख़तरे में है ।

धीरे-धीरे जाग रही है मुद्दत से सोयी जनता
तुमने धोखे से जो सत्ता हथिया ली, ख़तरे में है ।

लाखों नंगे-भूखों से अपने भोजन की रक्षा कर
चांदी की चम्मच और सोने की थाली ख़तरे में है ।

मज़हब के मारों से हमको बचकर रहना है आकाश
ख़तरे में है ईद-मुहर्रम, दीवाली ख़तरे में है ।

*****

आंखों का हर ख़्वाब सुनहरा तेरे नाम ।
अब जीवन का लमहा-लमहा तेरे नाम ।

मुरझायी पंखुड़ियां मेरा सरमाया
ताज़ा फूलों का गुलदस्ता तेरे नाम ।

गहरे अंधेरे मुझको रास आ जायेंगे
जुगनू, तारे, सूरज-चन्दा तेरे नाम ।

तेरे होठों की सुर्ख़ी बढ़ती जाए
मेरे ख़ूं का क़तरा-क़तरा तेरे नाम ।

ख़ारों पे मेरा हक़ क़ायम रहने दे
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा तेरे नाम ।

*****

मन्दिरों में, मस्जिदों में पायी जाती है अफ़ीम ।
आदमी का ख़ून सड़कों पर बहाती है अफ़ीम ।

राम मन्दिर जानती है, या कि मस्जिद बाबरी
आदमी का मोल कब पहचान पाती है अफ़ीम ।

आपसी सद्भाव जलकर ख़ाक हो जाता है दोस्त
आग नफ़रत की हरेक जानिब लगाती है है अफ़ीम ।

धर्म, ईश्वर के अलावा और कुछ दिखता नहीं
यों दिमाग़ो-दिल पे इन्सानों के छाती है अफ़ीम ।

बिछ गयी लाशें ही लाशें, शहर ख़ूं से धुल गया
फिर भी कहते हो कि इक अनमोल थाती है अफ़ीम ।

है कोई सच्चा मुसलमां, और कोई रामभक्त
देखिये आकाशक्या-क्या गुल खिलाती है अफ़ीम ।

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212


*****


अजीत शर्मा 'आकाश' 
098380 78756

दोहे - श्लेष चन्द्राकर

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देखो कितना आजकल, बदल गया संसार |
अपने ही करने लगे, अपनों पर ही वार ||

सच कहना लगने लगा, मुझको तो अब पाप |
सच कहने वाले यहाँ, झेल रहे संताप ||

तन मन चंगा हो तभी, मन में उठे हिलोर |
वरना सुर संगीत भी, लगने लगता शोर ||

मिली भगत का खेल है, समझो मेरे यार |
रिश्वतखोरी का यहाँ, चलता है व्यापार ||

पग पग पर मिलने लगे, अब तो बंधु दलाल |
करवट कैसी ले रही, देख समय की चाल ||

सहते आये हैं सदा, सहना अपना काम |
क्योंकि भैया लोग हम, कहलाते हैं आम ||

चुनकर भेजा था जिन्हें, आयेंगे कुछ काम |
नेता जी लेकिन वहाँ, करते है आराम ||

किस हद तक गिरने लगा, देखो अब इंसान |
नियम कायदे तोड़ना, समझे अपनी शान ||

मर्यादा को भूल कर, करता पापाचार |
मानव अब करने लगा, पशुओं सा व्यवहार ||

किसकी ये करतूत है, किसकी है ये भूल |
बगिया में खिलते नही, पहले जैसे फूल ||

लागू करते योजना, जोर शोर के साथ |
आता है क्या बोलिए, जनता के कुछ हाथ ||

इंसानों को भी लगा, साँपों वाला रोग |
बात बात पर आजकल, उगल रहे विष लोग ||

बना रहे हैं किस तरह, जहरीला माहौल |
इक दूजे के धर्म का, उड़ा रहे माखौल ||

पाक साफ दामन कहाँ, नेताओं के आज |
नित्य उजागर हो रहे, उनके नये कुकाज ||

दहशत के माहौल में, थम जाती है साँस |
दहशतगर्दी बन गयी, आज गले की फाँस ||

बच्चों को ये क्या हुआ, ओ मेरे करतार |
बहकावे में आ, करें, आतंकी व्यवहार ||

लड़ने में सब व्यस्त है, यहाँ जुबानी जंग |
हर घटना को दे रहे, राजनीति का रंग ||

अपने घोड़ों की कभी, कसते नही लगाम |
नाकामी अपनी छुपा, लगा रहे इल्ज़ाम ||

आजादी के बाद भी, समय नहीं उपयुक्त |
यारो! भ्रष्टाचार से, कब होंगे हम मुक्त ||

नेताओं की मति गई, सत्ता का सुख भोग |
शब्दों का करने लगे, स्तरहीन प्रयोग ||

कोरे भाषण से नही, बनने वाली बात |
सच्चा नेता है वही, बदले जो हालात ||

इमारतें बहुमंजिला, ढँक लेतीं आकाश |
झोपड-पट्टी को मिले, कैसे स्वच्छ प्रकाश ||

मार काट से क्या कभी, निकला है हल यार |
राह गलत आतंक की, छोड़ो तुम हथियार ||

रिश्वत का पैसा अगर, घर में लाये बाप |
बच्चो! कहना तुम उन्हें, रिश्वत लेना पाप ||

चुप रहने से तो नही, सुधरेंगे हालात |
चुभती है खामोशियाँ, कह दो मन की बात ||
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* श्लेष चन्द्राकर, 

09926744445

दोहे - राजपाल सिंह गुलिया

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नयनों में धनवान के , जब जब उतरा खून !
   नजर मिलाते हो गया , अंधा  ये  कानून !

ठगिनी माया को कहें , कलयुग के अवधूत !
   उनके ही आसन तले , माया मिली अकूत !

भरे पेट को रोज ही , लगते छप्पन भोग !
   लड़कर कितने भूख से , सो जाते हैं लोग !

मतलब जब तक मन बसा , मीठा था वो नीम !
   रोग   कटा  तो   देख    लो , बैरी हुआ हकीम !

ये तो तनिक मजाक था , बुरा गए क्यों मान !
   चतुराई   से   लोग     अब , करते हैं अपमान !

मुकर गए जब बात से , राजा संग वजीर !
   हाल  देख   रोने   लगी , पत्थर पड़ी लकीर !

दर्शक बन करता रहा , लम्बी चौड़ी बात !
   उतरा   जब  मैदान में , पता चली औकात !

सोन चिड़ी को नोचकर , चले बेढ़बी चाल !
  थाती    धरें   विदेश   में , भारत माँ के लाल !

निराधार आरोप पर , बात बढ़ाए कौन !
     सबसे अच्छा झूठ का , उत्तर है बस मौन !

माधव के दरबार में , कैसा ये अंधेर !
         अंधों के हाथों लगे , देखो आज बटेर !

जग में जो सबकी सुने , फिर मन की ले मान !
      उस जन का होता सदा लोगों में गुणगान !

सब के सिर है आ चढ़ा , आज नशे का भूत !
      बाप  अहाते  में  पड़ा , पब में थिरके पूत !

पोरस की बातें सुनी , गया सिकंदर जान !
     नहीं  टूटता  शक्ति से ,  जन का स्वाभिमान !

गंगा मैली देखकर , उभरा यही सवाल !
      आज भगीरथ देखते , होता बहुत मलाल !
     


राजपाल सिंह गुलिया 
9416272973