29 मार्च 2014

हिवड़ो रंगियो प्रीत सूं - राजेन्द्र स्वर्णकार

मदन हिलोरा लेंवतो , सज’ सोळै सिणगार !
आयो म्हारै देश में , होळी रौ त्यौंहार !!

मेरे देश में प्रणय-हिचकोलों से तरंगित , सोलह शृंगार से सुसज्जित  होली का त्यौंहार आया है ।

तनड़ो तरसै परस नैं , प्रीत करै मनवार !
आवो प्यारा पीवजी , सांवरिया सिरदार !!

देह स्पर्श को तरस रही है , प्रीत मनुहार कर रही है । हे सांवरे सरताज , प्रिय प्रियतम !
आपका स्वागत है… आइए !

होळी खेलण’ मिस गयो , कान्हो राधा-द्वार !
धरती सूं आभो मिळ्यो , स्रिष्टी सूं करतार !!

होली खेलने के बहाने कन्हैया राधा के द्वार पर पहुंचे …
मानो धरा से गगन का और सृष्टि से विधाता का मिलन हुआ … ।

बाथां में कान्हो भर्’यो ; राधा हुई निहाल !
झिरमिर बरसी प्रीतड़ी , आभै रची गुलाल !!

कृष्ण कन्हैया ने बाहों में भरा तो राधिका निहाल हो गई ।
रिमझिम प्रीत बरसने लगी , आकाश में गुलाल रच गई ।

भींजी राधा प्रीत में , कान्है रै अंग लाग’ !
रूं-रूं गावण लागग्यो , सरस बसंती राग !!

कन्हैया के अंग से लग कर राधा प्रीत में भीग गई ।
रोम रोम से सुमधुर बसंती राग की स्वर लहरियां प्रस्फुटित हो उठीं ।

मन भींज्यो , तन भींजग्यो , गई आतमा भींज !
नैण मिळ्या जद नैण सूं , मुळक’ हरख’ अर रींझ’ !!

मुस्कुरा कर , हर्षित नयन जब नयन से मिलन में रींझ गए, …तो
मन भीग गया , देह भीग गई , प्राण कैसे अछूते रहते … आत्मा भी भीग गई ।

फूलगुलाबी सांवरो अर राधाजी श्याम !
मोवै युगल सुहावणा , सुंदर ललित ललाम !!

रंग रंग कर नीलवर्ण कन्हैया गुलाबी और गौरवर्ण राधाजी सांवले रंग के दृष्टिगत हो रहे हैं ।
यह सुंदर , लावण्यमयी , सुहावनी  युगल छवि मोहित कर रही है ।

हिवड़ो रंगियो प्रीत सूं , छिब सूं रंगिया नैण !
होठ होठ सूं रंग दिया , कर’ चतराई सैण !!

चतुराई के साथ प्राणप्रिय साजन कान्हा ने हृदय को प्रीत से , नेत्रों को निज छवि से
और अधरों को स्वअधरों से रंग डाला ।

ओळ्यूं रंगदी काळजो , नैण रंग्या चितराम !
स्रिष्टी नैं विधना रंगी , अर राधा नैं श्याम !!

इधर वृषभान लली राधिका को  नंदनंदन कृष्ण ने रंगा कि
मधुर स्मृतियों-सुधियों से अंतःस्थल रंग गया । विविध लीला रूपों से चक्षु रंग गए ।
सृष्टि को साक्षात् विधाता ने रंग डाला …

चोवै राधा नांव रस , पीवै गोकुळ गांव !
बरसाणो छाकै अमी , सिंवर सलोणो श्याम !!

पूरे ब्रह्माण्ड में हो रही राधा राधा नाम की रस वर्षा का रसपान कर’
गोकुल गांव तृ्प्त हो रहा है ।
सलोने श्याम के सुमिरन से बरसाना गांव जी भर कर अमृत छक रहा है ।

भगती रंग जमुना बहै , रंग्या बाल-नर-नार !
रसभीनी राधा रट्यां , तूठै क्रिषण मुरार !!

भक्ति-रंग की बहती यमुना में बाल वृंद नर नारी रंग गए हैं ।
रसभीनी राधा राधा रटन से कृष्ण मुरारी की सहज कृपा अनुकंपा मिल जाती है 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा छंद है । अन्य भाषाओं या बोलियों के छन्दों को अनुवाद सहित प्रकाशित करने का प्रयास बेहद सराहनीय है । यह शायद गुजराती छंद है ।

    जवाब देंहटाएं