26 सितंबर 2013

बोल-बचनों को सदाचार समझ लेते हैं - नवीन

बोल-बचनों को सदाचार समझ लेते हैं।
लोग टीलों को भी कुहसार समझ लेते हैं॥

दूर अम्बर में कोई चश्म लहू रोती है।
हम यहाँ उस को चमत्कार समझ लेते हैं॥

कोई उस पार से आता है तसव्वुर ले कर।
हम यहाँ ख़ुद को कलाकार समझ लेते हैं॥

भूल कर भी कभी पैजनियाँ को पाज़ेब न बोल।
किस की झनकार है फ़नकार समझ लेते हैं॥

पहले हर बात पे हम लोग उलझ पड़ते थे।
अब तो बस रार का इसरार समझ लेते हैं॥

एक दूजे को बहुत घाव दिये हैं हमने।
आओ अब साथ में उपचार समझ लेते हैं॥

अपनी बातों का बतंगड़ न बानाएँ साहब।
सार एक पल में समझदार समझ लेते हैं॥

टीला – मिट्टी या रेट की बड़ी छोटी सी पहाड़ीकुहसार – पहाड़ [बहुवचन], चश्म – आँख, तसव्वुर – कल्पना, रार – लड़ाईइसरार – जिद / हठ [लड़ाई की वज़्ह]


फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फ़ालुन. 
बहरे रमल मुसम्मन मख़्बून मुसक्कन. 
2122 1122 1122 22 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
    नक़्शे-मामूल को मेयार समझ लेते हैं
    लोग टीलों को भी कुहसार समझ लेते हैं
    कान आहट से भी रफ़्तार समझ लेते हैं
    किस की झनकार है फ़नकार समझ लेते हैं
    शनिवार 28/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  2. अब अर्थ देखने के लिये कई बार ऊपर नीचे करना पड़ता है।

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  3. हर शेर कमाल का ... किसी एक को नहीं लिख सकता नवीन जी ... गहरा अर्थ ओर जीवन दर्शन लिए ..

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