14 मई 2013

तेरी हर एक बात मानी है - नवीन

जोश मलीहाबादी साहब की ग़ज़ल  “जब से मरने की जी में ठानी है” की ज़मीन पर एक कोशिश



तेरी हर एक बात मानी है ।
जान! तुझ पे ही जाँ लुटानी है॥

किस तरह तुझ को भूल जाएँ हम। 
हर कहानी की तू कहानी है॥

सिर्फ़ इक बार तूने देखा था।
बस वही पल तेरी निशानी है॥

कितनी आसाँ है लय मुहब्बत की।
ताल से ताल ही मिलानी है॥

हम को कैसे हरायेगी दुनिया। 
हम ने दिल जोड़ने की ठानी है॥

इस पे सारे ही रङ्ग खिलते हैं।
रूह का रङ्ग आसमानी है॥

है जो सूरजमुखी सहर के पास।
रात के पास रातरानी है॥

ज़िन्दगी है अगर समन्दर तो।
आदमीयत जहाज़रानी1 है॥

सीख ही लो मुसव्विरी2 ऐ ‘नवीन’।
अपनी तस्वीर ख़ुद बनानी है॥


1 नौचालन की कला, नेविगेशन 
2 चित्रकारी



:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22


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