30 अप्रैल 2013

मेरे बच्चो ! इस धरती पर प्यार की गंगा बहती थी - आलम ख़ुर्शीद

जीवन तो है खेल तमाशा , चालाकी, नादानी है
तब तक ज़िंदा रहते हैं हम जब तक इक हैरानी है

आग हवा और मिटटी पानी मिल कर कैसे रहते हैं
देख के खुद को हैराँ हूँ मैं , जैसे ख़्वाब कहानी है

इस मंज़र को आखिर क्यूँ मैं पहरों तकता रहता हूँ
ऊपर ठहरी चट्टानें हैं , तह में बहता पानी है

मेरे बच्चो ! इस धरती पर प्यार की गंगा बहती थी
देखो ! इस तस्वीर को देखो ! ये तस्वीर पुरानी है

आलम ! मुझको बीमारी है नींद में चलते रहने की
रातों में भी कब रुकता है मुझ में जो सैलानी है
:- आलम ख़ुर्शीद

3 टिप्‍पणियां:






  1. आग हवा और मिट्टी पानी मिल कर कैसे रहते हैं
    देख के खुद को हैरां हूं मैं , जैसे ख़्वाब कहानी है

    वाह वाह !
    आदरणीय आलम ख़ुर्शीद साहब को इस सहज रचना के लिए
    बहुत बहुत बधाई !

    नवीन भाई आपको इस सुंदर रचना की प्रस्तुति के लिए
    बहुत बहुत साधुवाद !


    हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं...

    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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  2. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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