न जाने कब से कहा जा रहा था कि 21 दिसंबर 2012 को दुनिया तहस-नहस हो जायेगी। वैसा तो कुछ नहीं हुआ। मगर हाँ, हमारी अस्मिता, हमारी सभ्यता, हमारे संस्कार ज़ुरुर टुकड़ा-टुकड़ा हो गये। दामिनी के प्रसंग को ले कर तमाम हल्कों में अमूमन सब ही अपनी-अपनी राय ज़ाहिर कर रहे हैं। दर्ज़ किए गए मामलात को आधार बनाएँ तो हर 54वें मिनट में एक बलात्कार हो रहा है... इस तरह दर्ज़ न हो पाने वाले केसेस को भी अनुमानित आधार पर यानि दस गुना जोड़ें तो लगभग हर 5 मिनट में एक बलात्कार हो रहा है यानि हर दिन क़रीब-क़रीब 250। आँकड़ों के शोधकर्ता इसे अपने नज़रिये से यानि अरबों की जनसंख्या से जोड़ कर
31 दिसंबर 2012
27 दिसंबर 2012
अमावस रात को अम्बर में ज़ीनत कोई करता नईं - नवीन
अमावस रात को अम्बर में ज़ीनत कोई करता नईं
मेरे
हालात पे नज़रेइनायत कोई करता नईं
मैं टूटे दिल को
सीने से लगाये क्यूँ भटकता हूँ?
यहाँ टूटे नगीनों की मरम्मत कोई करता नईं
फ़लक
पे उड़ने वालो ये नसीहत भूल मत जाना
यहाँ उड़ते परिंदों की हिफ़ाजत कोई करता नईं
मुहब्बत
का मुक़दमा जीतना हो तो, लड़ो ख़ुद ही
यहाँ
दिल जोड़ने वाली वकालत कोई करता नईं
ख़यालो-ख़्वाब
पर पहरे ज़बानो-जोश पर बंदिश
परेशाँ हैं सभी लेकिन शिकायत कोई करता नईं
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
13 दिसंबर 2012
मेरी पहिचान - अनासिर मेरे - नवीन
मेरी
पहिचान - अनासिर मेरे
मुझ
को ढ़ोते हैं मुसाफ़िर मेरे
इस क़दर
बरसे हैं मुझ पर इल्ज़ाम
पानी-पानी
हैं मनाज़िर मेरे
अस्ल
में सब के दिलों में है कसक
ख़ुद
मकीं हों कि मुहाजिर मेरे
अब कहीं
जा के मिला दिल को सुकून
मुझ
से आगे हैं मुतअख्खिर मेरे
8 दिसंबर 2012
हैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहिये - नवीन ज
हैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
हम चाहते थे आप हम से नफ़रतें करने लगें
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इक तर्जुमानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
हम चाहते थे आप हम से नफ़रतें करने लगें
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इक तर्जुमानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
: नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रजज मुसम्मन सालिम
2212 2212 2212 2212
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
4 दिसंबर 2012
१६ मात्रा वाले ७ छंद - नवीन
सूर तुलसी की तरह ग़ालिब भी मुझको है अज़ीज़
शेर हों या छन्द, हर इक फ़न से मुझ को प्यार है
जब मैं ग़ज़लें पेश कर रहा होता हूँ तो छन्द प्रेमी सकते में आ जाते हैं और जब छंदों के चरण चाँप रहा होता हूँ तो कुछ और तरह की बातें ही मेरे कानों तक पहुँचने लगती हैं, ये बातें कहने वाले ख़ुद ग़ज़ल या छंद के कितने क़रीब हैं, वो एक अलग मसअला है :)। अपने सनेहियों की ऐसी शंकाओं के समाधान के लिये ही मैंने कभी उक्त शेर कहा था। ख़ैर.......
वो कहते हैं न कि जब-जब जो-जो होना है तब-तब सो-सो होता है। मेरे छन्द सहकर्मियों को याद होगा -
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