19 मई 2012

अफ़सोस ! अपनी जान का सौदा न कर सके - विकास शर्मा 'राज़'

विकास शर्मा 'राज़'

जिस वक़्त रौशनी का तसव्वुर मुहाल था
उस शख़्स का चिराग़ जलाना कमाल था

रस्ता अलग बना ही लिया मैंने साहिबो
हालाँकि दायरे से निकलना मुहाल था

उसके बिसात उलटने से मालूम हो गया
अपनी शिकस्त का उसे कितना मलाल था

अंजाम उसका देख के मैं काँपता रहा
सूली पे चढ़ने वाला मेरा हमख़याल था

मैं भी नए जवाब से परहेज़ कर गया
उसने भी मुझसे पूछा पुराना सवाल था

अफ़सोस ! अपनी जान का सौदा न कर सके
उस वक़्त क़ीमतों में बला का उछाल था
:- विकास शर्मा 'राज़'


मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ

13 टिप्‍पणियां:

  1. रस्ता अलग बना ही लिया मैंने साहिबो
    हालाँकि दायरे से निकलना मुहाल था

    उसके बिसात उलटने से मालूम हो गया
    अपनी शिकस्त का उसे कितना मलाल था

    बहुत खूब ....अच्छी गजल

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  2. अफ़सोस ! अपनी जान का सौदा न कर सके
    उस वक़्त क़ीमतों में बला का उछाल था

    बहुत सुंदर गजल ,..अच्छी प्रस्तुति

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
    MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

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  3. बहुत बढ़िया |
    बधाई स्वीकारें ||

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  4. मैं भी नए जवाब से परहेज़ कर गया
    उसने भी मुझसे पूछा पुराना सवाल था

    लाजवाब!!

    शानदार प्रस्तुति

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  5. बेहतरीन गज़ल....

    उसके बिसात उलटने से मालूम हो गया
    अपनी शिकस्त का उसे कितना मलाल था

    लाजवाब शेर....

    शुक्रिया

    सादर.

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  6. अंजाम उसका देख के मैं काँपता रहा
    सूली पे चढ़ने वाला मेरा हमख़याल था

    ...बहुत खूब!....बेहतरीन गज़ल...

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  7. मैं भी नए जवाब से परहेज़ कर गया
    उसने भी मुझसे पूछा पुराना सवाल था
    वाह वाह क्या शेर कहा विकास बहुत ही लाजबाब ग़ज़ल है

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  8. aapkee ghazal ka har sher bahut umda hai...kuch kathin shbdon ke arth bhee daal diya keejiye...muhal ka matlab mujhe samajh me nahi aaya..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

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  9. वाह ! बहुत खूब !!
    अंजाम उसका देख के मैं काँपता रहा
    सूली पे चढ़ने वाला मेरा हमख़याल था........खूब कहा .....

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  10. बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने वाह दाद क़ुबूल कीजिये

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