7 अप्रैल 2012

दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ


संस्कार पत्रिका ने इस कविता को अप्रैल'१२ के 'पर्यटन विशेषांक' में [भारत पर केन्द्रित करते हुए] छापा है।



देश-गाँव-शहरों-कस्बों से अनुभव का हर पृष्ठ भरूँ
दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

सात अरब वाली दुनिया की भाषा-बोली सात हज़ार
ढाई लाख तरह के पौधे सुरभित करते रहें बयार
सब से मिलना है बस अपने घर से बाहर पाँव धरूँ
दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

विद्या विनिमय हुआ और इंसानों में भी प्यार बढ़ा
इसी पर्यटन के बलबूते देशों में व्यापार बढ़ा
मेरे पास आत्म-बल मेरा, खतरों से किसलिए डरूँ
दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

कुछ ले कर जाना है तो संस्कारों को ले जाऊँगा
कुछ ले कर आना है तो सु-विचारों को ले आऊँगा
देश देश की घुमक्कड़ी से अंतर्मन की पीर हरूँ
दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

18 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना....................
    पर्यटन विशेषांक के लिए एकदम उपयुक्त...

    बधाई!!!!

    सादर
    अनु

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  2. कुछ ले कर जाना है तो संस्कारों को ले जाऊँगा
    कुछ ले कर आना है तो सु-विचारों को ले आऊँगा

    वाह! मन में बस जाने वाली पंक्तियाँ...
    बहुत बहुत बधाई!!!

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  3. रचना पढकर मेरा मन टिप्पणी को ललचाया है।
    इतनी सुन्दर रचना पढ़ कर मन मेरा हर्षाया है।

    एक सुन्दर व उम्दा रचना पढवानें के लिये धन्यवाद स्वीकारें।

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  4. सैर कर दुनिया की ग़ालिब जिंदगानी फिर कहाँ ||

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  5. सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ

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  6. कुछ ले कर जाना है तो संस्कारों को ले जाऊँगा
    कुछ ले कर आना है तो सु-विचारों को ले आऊँगा
    देश देश की घुमक्कड़ी से अंतर्मन की पीर हरूँ
    दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ
    वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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  7. उम्दा...खास कर पर्यटन विशेषांक के लिए तो विशिष्ट!

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  8. कुछ ले कर जाना है तो संस्कारों को ले जाऊँगा
    कुछ ले कर आना है तो सु-विचारों को ले आऊँगा

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  9. देश देश की घुमक्कड़ी से अंतर्मन की पीर हरूँ
    दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

    ऐसा ही कुछ मेरा भी सपना है !
    सादर !!

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  10. देश देश की घुमक्कड़ी से अंतर्मन की पीर हरूँ
    दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ.....

    सैर तो सिर्फ बहाना था....मन की पीड़ा से पार पाना था .... सुन्दर रचना

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. सच है दुनिया की सैर करने से अच्‍छा और कुछ नहीं है।

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  13. पर्यटन विशेषांक पर सचमुच विशेष.

    बधाई.

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  14. भ्रमण को लेकर लिखा गया यह गीत बहुत सुंदर बन पड़ा है।
    नितांत मौलिक विषय !

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  15. प्रिय बंधुवर नवीन जी
    सस्नेहाभिवादन !
    संस्कार पत्रिका में रचना प्रकाशित होने पर बधाई !
    आप जैसे गुणी रचनाकार की रचना पाठकों तक पहुंचाने के लिए संस्कार पत्रिका का भी आभार !

    पूरा गीत ही सुंदर है … स्वआस्वादनार्थ यह बंद उद्धृत कर रहा हूं-
    कुछ ले कर जाना है तो संस्कारों को ले जाऊँगा
    कुछ ले कर आना है तो सु-विचारों को ले आऊँगा
    देश देश की घुमक्कड़ी से अंतर्मन की पीर हरूँ
    दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

    ऐसे ही समाज को उत्कृष्ट रचनाएं अनवरत सौंपते रहें …
    तथास्तु !

    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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