17 जनवरी 2012

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को - नवीन

सच्ची श्रद्धा व सबूरी की सदारत देखी
मैं जो शिर्डी को गया मैंने ये जन्नत देखी
उस के दर पे जो गया मैंने ये जन्नत देखी

कोई मुज़रिम न सिपाही न वक़ीलों की बहस
ऐसी तो एक ही साहिब की अदालत देखी

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

बीसियों श़क्लों में हर और से मिट्टी की तरह
उस के चरणों से लिपटती हुयी दौलत देखी

मैंने जैसे ही ये सोचा कि फिर आना है यहाँ
उस की नज़रों में भी फिर मिलने की चाहत देखी

बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन

२१२२ ११२२ ११२२ २२

3 टिप्‍पणियां:

  1. उस के चरणों से लिपटती हुयी दौलत देखी
    जिसपर उसकी कृपा हो वही देख सकता है यह दृश्य... और वही लिख सकता है उसकी महिमा...
    ॐ साईं राम!

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  2. .




    बीसियों श़क्लों में हर ओर से मिट्टी की तरह
    उस के चरणों से लिपटती हुई दौलत देखी

    जय साईं नाथ !

    अच्छा , तो हमारे नवीन जी शिर्डी धाम हो आए …
    धन्य भाग्य !!

    सुंदर पावन रचना के लिए आभार !
    हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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